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कायाबल के लिए ध्येय

ध्यान दो प्रकार के होते हैं- स्वरूपालंबी ध्यान और पररूपालंबी ध्यान. साधक को पहले यह निर्णय करना होता है कि वह क्या बनना चाहता है? यदि यह वीतराग बनना चाहता है, तो उसे स्वरूपालंबी ध्यान करना होगा. कोई दूसरा ध्यान वहां तक नहीं पहुंच पाता. शुद्ध चेतना को प्राप्त करने के लिए केवल वीतराग स्वरूप […]

ध्यान दो प्रकार के होते हैं- स्वरूपालंबी ध्यान और पररूपालंबी ध्यान. साधक को पहले यह निर्णय करना होता है कि वह क्या बनना चाहता है? यदि यह वीतराग बनना चाहता है, तो उसे स्वरूपालंबी ध्यान करना होगा. कोई दूसरा ध्यान वहां तक नहीं पहुंच पाता. शुद्ध चेतना को प्राप्त करने के लिए केवल वीतराग स्वरूप का आलंबन ही कार्यकारी होता है.
दूसरे आलंबन उसकी उपलब्धि नहीं करा सकते. यह है हमारा वह ध्यान, जैसे कोई व्यक्ति सिर पर दीया रख कर खड़ा रहता है, तो चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाता है. वैसे ही इस ध्यान से चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाता है, शुद्ध चेतना का अनुभव हो जाता है.
यदि कोई साधक मनोबली बनना चाहता है, वक्बली बनना चाहता है, इंद्रियों को पटु-पटुतर बनाना चाहता है, तो फिर उसे ध्यान की सारी ऊर्जा को, प्राण की सारी ऊर्जा को, एक दिशा में प्रवाहित करना होगा. इसके लिए साधक पहले अपने ध्येय को निश्चित करे. मान लें कि वह कायबली बनना चाहता है. यह उसका ध्येय है. अब उसे कायबली के अप्रतिम व्यक्ति की प्रतिमा का मन-ही-मन निर्माण करना होगा. उसे ऐसे व्यक्ति को ध्येय बनाना होगा, जो कायबल में उत्कृष्ट हो. बाहुबल कायबल के प्रतीक हैं. साधक उन्हें अपना ध्येय बनाता है.
उन्हें ध्येय बना कर साधक ध्यान करता है. ध्येय है बाहुबली और साधक है ध्याता. यह संभेद ध्यान है. ध्याता और ध्यान के बीच संभेद है, दूरी है. किंतु जैसे-जैसे ध्यान की पटुता बढ़ती जायेगी, उद्देश्य फलित होता जायेगा. फिर ध्येय और ध्याता अलग नहीं रहेंगे. उनमें दूरी नहीं रहेगी.
आप स्वयं बाहुबली बन जायेंगे. इतना अभेद सध जायेगा कि आप स्वयं ध्येय के रूप में परिणत हो जायेंगे. स्वयं बाहुबली बन जायेंगे. इस स्थिति तक पहुंचने के लिए आप शिथिलीकरण करें, कायोत्सर्ग करें. शरीर को शून्य कर दें, मृतवत् कर दें. स्वयं ध्येयमय बनने का प्रयत्न करें, ध्येय का अनुभव करें. आपकी भीतर की शक्ति परिणमन करना शुरू कर देगी. एक दिन अनुभव होगा कि शरीर में बहुत बड़ी शक्ति उत्पन्न हो रही है और आप कायबली बनते जा रहे हैं. इसलिए ध्येय का निर्णय करें.
– आचार्य महाप्रज्ञ

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