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भीतर से मुस्कुराना

हम जन्म के साथ इस जीवन में बहुत उत्साह लाते हैं, पर धीरे-धीरे वह कहीं खो जाता है. जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, हम सकारात्मक दृष्टिकोण से नकारात्मक दृष्टिकोण की ओर खुद को मोड़ लेते हैं. हर घटना, जिससे हम परेशान होकर शिकायत करने लगते हैं, वह एक मौका है अपने ज्ञान को और […]

हम जन्म के साथ इस जीवन में बहुत उत्साह लाते हैं, पर धीरे-धीरे वह कहीं खो जाता है. जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, हम सकारात्मक दृष्टिकोण से नकारात्मक दृष्टिकोण की ओर खुद को मोड़ लेते हैं. हर घटना, जिससे हम परेशान होकर शिकायत करने लगते हैं, वह एक मौका है अपने ज्ञान को और गहरा बनाने के लिए.

कोई अप्रिय घटना कहीं ना कहीं उस ज्ञान को उजागर करती है, जो कि जन्म से ही हमारे साथ है. हर घटना हमारे भीतर के ज्ञान को उजागर करती है. अगर कोई घटना हम पर हावी हो जाये, तो हम अपनी बुद्धि खो देते हैं. तब हमें मदद की आवश्यकता पड़ती है. यहां सत्संग का महत्व है.

हम सब साथ में मिल कर गाते हैं और बोझ हट जाता है. हरेक व्यक्ति को जीवन में कुछ समय निकालना चाहिए, जीवन के सत्य को जानने के लिए. सत्य के संग रहना सत्संग है. कुछ ही पल काफी हैं शांति, स्थिरता और ताकत लाने के लिए. कई लोगों के मन में ऐसी धारणा होती है कि यह उबाऊ होगा. उन्हें लगता है कि ज्ञान बड़ा गंभीर होता है. मैं कहता हूं, ज्ञान की तरफ जाओ तो मजा तुम्हारा पीछा करेगा. पर, अगर मजे का पीछा करोगे, तो दुख ही हाथ लगेगा. आत्मज्ञान वह चीज है, जो तुम्हें फिर से बच्चे जैसी मस्ती देता है. यह भीतर से उत्साह लाता है. यही आध्यात्म है. यह महसूस करो कि सब ठीक है. तब तुम भीतर जाकर ध्यान कर पाओगे. ध्यान में उतरते वक्त यह रवैया अपनाना जरूरी है कि सब ठीक है. पर जब तुम ध्यान से बाहर आते हो, तो पाते हो कि बहुत कुछ है, जिसे ठीक करने की आवश्यकता है. तुम जीवन और विश्व में समस्याओं के प्रति फिर सजग हो जाते हो. और फिर ध्यान से जगी ऊर्जा का प्रयोग तुम्हें इस बारे में कुछ करने ले लिए करना चाहिए.

ध्यान का अर्थ है भीतर से मुस्कुराना, और सेवा का अर्थ है इस मुस्कुराहट को औरों तक पंहुचाना. तो, पहले तुम्हें यह जान कर भीतर जाना होगा, कि ‘सब ठीक है.’ यह जान लो कि तुम सुरक्षित हो और तुम्हारी देखभाल हो रही है. यह विश्वास जरूरी है. यही ध्यान है. फिर जब तुम कर्मक्षेत्र में बाहर आओ तो तुम्हें नजर आयेगा कि क्या ठीक नहीं है और तुम उसके लिए काम करोगे.

-श्री श्री रविशंकर

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