आप जिसे पूजते हैं, उस पर विचार कर लेना. आपकी पूजा आपका मनोविश्लेषण है. किसे आप पूजते हैं? आपकी जीवन-दिशा कहां जा रही है? अगर आप सफल हो जायें, तो आप वही हो जायेंगे. अगर असफल हो जायें, तो बात अलग है. लेकिन असफल भी आप उसी मार्ग पर होंगे. अपने हृदय के कोने में इसकी जांच-पड़ताल कर लेना जरूरी है कि कौन है मेरा पूज्य?
और किस कारण मैं उसे पूजता हूं? जो पूज्य है, उसका सवाल नहीं है, इससे आप अपने को समझने में समर्थ हो पायेंगे. यह आत्मविश्लेषण होगा. अगर आप अपने को बदलते हैं, तो आपकी पूजा का भाव बदलता जायेगा. आज जैसे अभिनेता पूज्य हैं, वैसा कभी संन्यासी पूज्य था. क्योंकि लोग संन्यास को जीवन का परम मूल्य समझते थे. अभी अभिनेता पूज्य हैं, जीवन इतना झूठा हो गया है, अभिनेता से ज्यादा झूठा और क्या होगा? अभिनेता होने का मतलब ही झूठा होना है- एक असत्य, संन्यास अगर सत्य का प्रतीक था, तो अभिनेता असत्य का प्रतीक है.
अगर आप प्रसन्नचित्त हैं, आनंदित हैं, तो आप फिल्म में जाकर नहीं बैठेंगे. क्योंकि तीन घंटा समय खराब होगा; मस्तिष्क खराब होगा; तीन घंटे में आंखें खराब होंगी. स्वास्थ्य खराब होगा और मिलेगा कुछ भी नहीं. संन्यास अगर निरहंकार भाव का प्रतीक था, तो नेता अहंकार भाव का प्रतीक है. अगर भिक्षु त्याग का प्रतीक था, तो धनपति भोग का प्रतीक है. किसे आप पूजते हैं, नेता से भी ज्यादा कीमत अभिनेता की बढ़ती जा रही है, यह किस बात की खबर है? आपके भीतर झूठ की प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही है. मनोरंजन की प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही है. सत्य की कम होती जा रही है.
मनोरंजन की प्रतिष्ठा तभी बढ़ती है, जब लोग बहुत दुखी होते हैं, क्योंकि दुखी आदमी ही मनोरंजन खोजता है. सुखी आदमी मनोरंजन नहीं खोजता. सुखी आदमी एक झाड़ के नीचे बैठ कर भी आनंदित हो सकता है, अपने घर में भी बैठ कर आनंदित है, अपने बच्चों के साथ खेल कर भी आनंदित है; पत्नी के पास चुपचाप बैठ कर भी आनंदित है. कहीं जाने की जरूरत नहीं है. कहीं जाने का मतलब यह है कि जहां आप हैं, वहां दुख है- वहां से बचना चाहते हैं.
-आचार्य रजनीश ओशो