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जानें किस मंदिर में नवरात्र में महिलाओं का प्रवेश होता है वर्जित

रविशंकर उपाध्याय पटना : राजधानी पटना से सौ किमी दूर नालंदा में एक ऐसा भी मंदिर है जहां नवरात्र के दौरान महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है. सदियों से यह परंपरा निभायी जा रही है. भगवान महावीर की निर्वाण स्थली पावापुरी से महज पांच किमी की दूरी पर स्थित घोसरावां गांव में मां आशापुरी का […]

रविशंकर उपाध्याय

पटना : राजधानी पटना से सौ किमी दूर नालंदा में एक ऐसा भी मंदिर है जहां नवरात्र के दौरान महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है. सदियों से यह परंपरा निभायी जा रही है. भगवान महावीर की निर्वाण स्थली पावापुरी से महज पांच किमी की दूरी पर स्थित घोसरावां गांव में मां आशापुरी का भव्य मंदिर है. आपकी सभी आशाओं को फलीभूत करने वाली इस अति प्राचीन मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी गई मन्नत मां आशा अवश्य पूरी करती हैं.
दूर-दूर तक फैली है मंदिर की ख्याति
इस मंदिर की ख्याति काफी दूर-दूर तक फैली है. सालों भर यहां मुंडन, विवाह सहित शुभ कार्य होते हैं. नियमों के अनुसार शारदीय नवरात्र के दौरान मंदिर परिसर के साथ ही गर्भ गृह में जाने की मनाही के साथ पूर्ण प्रतिबंध रहता है. आशापुरी मंदिर के पुजारी पुरेंद्र उपाध्याय बताते हैं कि सैंकड़ों सालों से यह परंपरा चली आ रही है, जिसे हम सब फॉलो कर रहे हैं. इसमें कोई तब्दीली करने के संबंध में अभी तक कोई बात नहीं हुई है, इसी कारण नियम को सभी लोग मानते आ रहे हैं. यहां तांत्रिक विधि से माता की आराधना की जाती है.
अष्टभुजी है मां आशापुरी की प्रतिमा, पालकालीन है मंदिर
मां आशापुरी का यह मंदिर अतिप्राचीन है. इसकी स्थापना मगध साम्राज्य के पाल काल में माना जाता है. यहां मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है जो मां दुर्गा के नौ रूप में से एक सिद्धिदात्री स्वरूप में पूजित हैं. घोसरावां मंदिर के पुजारियों के मुताबिक यहां के मंदिर में सबसे पहले राजा जयपाल ने पहली बार पूजा की थी. इसी स्थापना के पीछे की कहानी यह है कि यहां एक गढ़ हुआ करता था जिस पर मां आशापुरी सिंह पर विराजमान थी. गढ़ पर ही आज भी मां का मंदिर बना हुआ है. ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक जब प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय अपने समृद्धि के दौर था उस दौरान यहां भी पढ़ाई होती थी. इस मंदिर मे आशा देवी के अलावा शिव-पार्वती और भगवान बुद्ध की भी अद्भुत मूर्तियां हैं. नौवीं शताब्दी में वज्रयान, तंत्रयान और सिद्धियान का बहुत तेजी से फैलाव हुआ था. इसी दौरान इस मंदिर में तांत्रिक विधि से आराधना होती है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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