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Shashi Tharoor : जब बात राष्ट्रीय हित की हो और मेरी सेवाओं की आवश्यकता हो तो मैं हमेशा उपलब्ध रहूंगा. उक्त बातें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरूर ने कही है. शशि थरूर ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि हाल की घटनाओं पर हमारे देश का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए पांच प्रमुख राजधानियों में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए भारत सरकार के निमंत्रण से मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं.शशि थरूर ने यह पोस्ट तब किया जब उन्हें विदेश जाने वाले सात प्रतिनिधिमंडलों में से एक का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी मिली है.
आतंकवाद के खिलाफ भारत का कूटनीतिक अभियान
पहलगाम में 26 लोगों की हत्या, ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जो कुछ हुआ, उसपर भारत का दृष्टिकोण विश्व के सामने रखने और आतंकवाद के खिलाफ नो टॉलरेंस की नीति को स्पष्ट करने के लिए भारत सरकार प्रमुख साझेदार देशों में प्रतिनिधिमंडल भेज रही है. इस कूटनीतिक प्रयास का उद्देश्य है भारत की स्थिति पूर्ण रूप से स्पष्ट करना. भारत के इस कूटनीतिक प्रयास के बारे में बात करते वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि यह स्वागत योग्य प्रयास है. ऐसा नहीं है कि इस प्रतिनिधिमंडल के जाने से कोई बड़ा बदलाव इन देशों के नजरिए में होगा, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि इस तरह के प्रयासों से यह स्पष्ट हो जाएगा कि भारत किसी देश का विरोधी नहीं है, बल्कि हम सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद का विरोध कर रहे हैं और उसपर हमारी जीरो टॉलरेंस की नीति है.
सूचना के अनुसार अमेरिका जाने वाले डेलिगेशन का नेतृत्व कांग्रेस सांसद शशि थरूर करेंगे.उनके अलावा बीजेपी सांसद रविशंकर प्रसाद, बैजयंत पांडा, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के सांसद संजय झा, द्रमुक की कनिमोई, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) की सांसद सुप्रिया सुले और शिवसेना के श्रीकांत शिंदे सात अलग-अलग प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करेंगे. इनमें से चार नेता सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन से हैं, जबकि तीन विपक्षी इंडिया गठबंधन से हैं.
शशि थरूर के सोशल मीडिया पोस्ट पर मचा बवाल

विदेश जाने वाले डेलिगेशन में जब शशि थरूर का नाम सबसे ऊपर नजर आया, तो शशि थरूर ने पीआईबी के इस सूचना को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया. उसके बाद से कयासों का बाजार गर्म है, कोई यह कह रहा है कि क्या शशि थरूर बीजेपी ज्वाइन करेंगे, जिसकी संभावना पिछले कुछ दिनों से जताई जा रही है, तो कोई ये कह रहा है कि यह विशुद्ध रूप से राजनीति है. इस संबंध में रशीद किदवई कहते हैं कि शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र के बैकग्राउंड से आते हैं, विदेशी मामलों के जानकार हैं, उनके डेलिगेशन में होने से भारत का पक्ष अच्छी तरह रखा जा सकेगा. यह राष्ट्रीय हित की बात है और इसलिए इसे शशि थरूर के कांग्रेस छोड़ देने से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के समक्ष भेजा था. इस निर्णय का उद्देश्य पाकिस्तान द्वारा कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाने के प्रयासों का कूटनीतिक रूप से विरोध करना था. इस प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद भी शामिल थे. वाजपेयी जी नेतृत्व में भारतीय दल ने पाकिस्तान द्वारा प्रस्तावित निंदा प्रस्ताव को सफलतापूर्वक विफल किया. यह घटना भारतीय कूटनीति की एक महत्वपूर्ण सफलता मानी जाती है, जिसमें सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों ने एकजुट होकर राष्ट्रीय हित में कार्य किया. इसलिए यह कोई पहली घटना नहीं है जब विपक्ष को प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व सौंपा गया है. यह बात दीगर है कि इस मसले पर राजनीति हो रही है और निश्चित तौर पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने नजरिए से इसका फायदा उठा रही है.
शशि थरूर को लेकर क्यों चर्चाओं का बाजार है गर्म
शशि थरूर काफी समय से कांग्रेस में बेचैनी महसूस कर रहे हैं. उन्होंने अपनी बेचैनी कई बार सोशल मीडिया में व्यक्त भी कर दी है. उन्होंने एक-दो बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी की है. हाल ही में जब पहलगाम की घटना हुई तो विपक्ष इंटेलिजेंस की विफलता पर सवाल उठा रहा था, उस वक्त भी शशि थरूर ने कहा था कि इंटेलिजेंस फेल हो सकता है, इजरायल जैसे देश में भी फेल्योर होते हैं. केरल की राजनीति को लेकर भी शशि थरूर के मन में संतुष्टि नहीं है और इसके बारे में वो संकेत भी दे चुके हैं.
कांग्रेस पार्टी ने नहीं भेजा था शशि थरूर का नाम
सरकार ने विपक्षी पार्टियों से प्रतिनिधिमंडल के लिए नेताओं के नाम मांगे थे. कांग्रेस पार्टी ने आनंद शर्मा,गौरव गोगोई, राजा बराबर और डॉ सैयद नासिर हुसैन का नाम भेजा था, जिसे सरकार ने शामिल नहीं किया. इससे कांग्रेस पार्टी नाराज है और कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे बेईमानी बताया है. उन्होंने कहा कि पार्टी पहलगाम की घटना के बाद से सरकार के साथ खड़ी है, लेकिन डेलिगेशन के नाम सामने आने के बाद वे चौंक गए हैं. इस मसले पर रशीद किदवई कहते हैं कि सरकार ने नाम मांगे थे, तो उन्हें कुछ नामों पर विचार करना चाहिए था, लेकिन अगर सरकार ने विचार नहीं किया और शशि थरूर को मौका दिया है, तो इसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए, मसला देश हित का है. इस मसले पर शशि थरूर की आलोचना नहीं होनी चाहिए.
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