Vizhinjam Sea Port : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में केरल के तिरुवनंतपुरम में विझिंजम सी-पोर्ट का उद्घाटन किया, जो देश का पहला डीप वाटर कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट है. यह भारत की सामुद्रिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति की दिशा में एक बड़ा कदम है. देश के पहले ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में विझिंजम सी-पोर्ट का लक्ष्य विदेशी बंदरगाहों पर देश की निर्भरता घटाना, अब तक इस मद में गंवायी गयी राशि की भरपाई करना तथा भारत को वैश्विक समुद्री परिवहन के शक्तिकेंद्र के रूप में स्थापित करना है.
ट्रांसशिपमेंट पोर्ट दरअसल ऐसा बंदरगाह होता है, जहां से माल को बड़े जहाजों से उतारकर छोटे जहाजों के जरिये गंतव्य तक पहुंचाने की तैयारी की जाती है. इन सी-पोर्ट्स का महत्व समुद्रतटीय इलाकों या आम बंदरगाहों की तुलना में ज्यादा होता है. यहां अलग-अलग हिस्सों में बंटे सामान को बड़े शिप में एक साथ लादा जाता है, या बड़े जहाज से सामान उतारकर उन्हें छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर उनके गंतव्य के लिए रवाना किया जाता है.
विझिंजम सी-पोर्ट एक रणनीतिक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट के रूप में भी काम करेगा. महत्वपूर्ण शिपिंग रूट्स के नजदीक होने के कारण (यह इस्ट-वेस्ट समुद्री कॉरिडोर से मात्र 10 नॉटिकल मील दूर है) इसे वैश्विक व्यापार नेटवर्क का भी अधिक से अधिक लाभ मिलेगा. अनेक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट टैक्स न्यूट्रल हब्स के रूप में काम करते हैं, जहां लगातार होने वाली कस्टम जांच से बचा जाता है. आम बंदरगाहों की तुलना में, जहां स्थानीय व्यापार को अधिक महत्व दिया जाता है, विझिंजम जैसे ट्रांसशिपमेंट पोर्ट में कार्यक्षमता पर अधिक ध्यान रहता है. जैसे कि यहां एक मालवाही जहाज से सामान उतारने या फिर सामान लादने में कितना समय लगता है.
ऐसे ही, कोई खास ट्रांसशिपमेंट पोर्ट तय अवधि में कितने मालवाही जहाजों का काम निपटाता है. इसमें इस पर ध्यान दिया जाता है कि पोर्ट में आये जहाज को कितनी देर तक इंतजार करना पड़ता है और कितनी जल्दी या देर से सामान उतारने या लादने का काम होता है. विझिंजम की भौगोलिक स्थिति इसके लिए सर्वाधिक लाभदायक है. इस सी-पोर्ट की प्राकृतिक गहराई 20 मीटर से अधिक है. इस कारण यहां महंगी ड्रेजिंग (खुदाई) के बगैर 24,000 टीइयू (20 फुट इक्युवेलेंट यूनिट) वेसेल्स रुक सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय शिपिंग रूट्स से नजदीक इसकी एक और विशेषता है. व्यस्ततम इस्ट-वेस्ट रूट के निकट होने के कारण यूरोप-एशिया के मालवाही जहाजों द्वारा विझिंजम सी-पोर्ट का लाभ उठाने से रूट बदलने में लगने वाला समय कम हो जायेगा.
इस सी-पोर्ट के कारण कोलंबो बंदरगाह पर हमारी निर्भरता भी कम हो जायेगी. भारत के मालवाही जहाजों का लगभग 75 प्रतिशत ट्रांसशिपमेंट अभी तक विदेशी बंदरगाहों से होता रहा है. इसके लिए देश को हर मालवाही कंटेनर पर 80 से 100 डॉलर लॉजिस्टिक्स टैक्स चुकाना पड़ता है. विझिंजम सी-पोर्ट मौजूदा क्षमताओं के जरिये देश का सालाना 22 करोड़ डॉलर बचा पायेगा. बिल्कुल नया बंदरगाह होने के कारण इस बंदरगाह में एआइ संचालित सुविधाएं हैं. आइआइटी, मद्रास द्वारा विकसित इस बंदरगाह का एआइ संचालित ट्रैफिक मैनेजमेंट डॉकिंग में होने वाली देरी कम करेगा. यहां रिमोट कंट्रोल्ड सेमी-ऑटोमेटेड क्रेन्स लोडिंग-अनलोडिंग का काम ज्यादा तेजी से करेंगे. कौशल विकास के क्षेत्र में यहां शानदार काम किया जा रहा है, जिसके तहत स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित महिलाओं की टीम स्वचालित क्रेनों का संचालन करेगी. इस बंदरगाह की क्षमता चरणबद्ध तरीके से बढ़ायी जायेगी.
इसका दूसरा चरण 2028 में पूरा हो जायेगा, जब इसकी क्षमता बढ़कर 30 लाख टीइयू हो जायेगी. यह पोर्ट सिर्फ समुद्री परिवहन तक सीमित नहीं रहने वाला. एनएच 66 और एक डेडिकेटेड रेल कॉरिडोर से सटे होने के कारण इसके जरिये सड़क और रेलमार्ग से भी माल परिवहन को अंजाम दिया जायेगा. विझिंजम सी-पोर्ट के कारण विश्व व्यापार में भारत ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनेगा. चूंकि इसके कारण देश की परिवहन लागत में 15-20 प्रतिशत की कमी आयेगी, ऐसे में भारतीय निर्यात ज्यादा प्रतिस्पर्धी और देश के लिए अधिक लाभकारी होगा. इस सी-पोर्ट के कारण भारत की भू-राजनीतिक क्षमता बढ़ेगी. कोलंबो और दुबई से मुकाबला करते हुए यह भारत को दक्षिण एशियाई ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में तो स्थापित करेगा ही, इससे भारत के समुद्री परिवहन के क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरने की उम्मीद भी है.
यह सी-पोर्ट कोलंबो पर चीनी निर्भरता घटायेगा, तो 2030 तक वैश्विक ट्रांसशिपमेंट का छह फीसदी के इस पोर्ट से अंजाम दिये जाने की बात कही जा रही है. पूर्ण क्षमता विस्तार के बाद इस सी-पोर्ट से बड़ी संख्या में रोजगार सृजन भी संभव हो सकेगा. पहले चरण में ही यहां लगभग 5,500 लोगों को सीधा रोजगार मिलने की उम्मीद है, तो परिवहन, जहाज मरम्मत और गोदामों से जुड़े कामों में एक लाख से अधिक लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा. इस बंदरगाह से जुड़े उद्योगों में चलने वाली आर्थिक गतिविधियों के कारण हमारी जीडीपी को सालाना 10 अरब डॉलर का लाभ होगा. इस सी-पोर्ट के जरिये पर्यटन को गति देने की भी योजना पर काम चल रहा है. भविष्य में क्रूज चलाकर ‘ईश्वर के इस अपने देश में’ भारी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने की तैयारी है.
इस परियोजना का दूसरा पक्ष भी है, जो पर्यावरणविदों की आशंकाओं से जुड़ी हुई है. पर्यावरण का ध्यान रखते हुए किये जाने वाले विकास कार्यों के वावजूद पर्यावरणविद इस परियोजना से बड़े पैमाने पर समुद्रतटीय क्षरण की आशंका जता रहे हैं. इसके अलावा इसके जरिये भविष्य में जिन लाभों और संभावनाओं की बात कही जा रही है, वह यहां होने वाली व्यावसायिक गतिविधियों पर ही निर्भर करेगा. राजस्व के जो लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं, उसे हासिल करने के लिए इस सी-पोर्ट को 2028 तक अपनी क्षमता तीन गुना बढ़ानी होगी. इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि दुनिया के कई बंदरगाहों में ट्रांसशिपमेंट सुविधाएं बढ़ाने पर काम चल रहा है. जैसे कि श्रीलंका के कोलंबो और मलेशिया के पोर्ट क्लैंग भी अपनी क्षमता बढ़ा रहे हैं. ऐसे में, विझिंजम को आने वाले दिनों में वैश्विक प्रतिस्पर्धाओं का भी सामना करना पड़ेगा. हिंद महासागर क्षेत्र में तो इसे कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना ही पड़ेगा, पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया में भी चुनौतियां कम नहीं हैं. लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि यह परियोजना विविध चुनौतियों का सामना करते हुए सामुद्रिक परिवहन के क्षेत्र में भारत को एक ताकत के रूप में स्थापित करेगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)