मुंबई हमले के मुख्य षड्यंत्रकारी तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाया जाना नरेंद्र मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक और कानूनी सफलता है. पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक तहव्वुर राणा ने आइएसआइ के साथ मिलकर मुंबई हमले (26/11) की योजना बनायी थी और डेविड कोलमैन हेडली की भारत यात्रा में मदद की थी, जिसने हमले से पहले मुंबई की कई बार रेकी की थी. राणा हमले को अंजाम देने वाले आतंकी संगठन और उनके आकाओं के भी संपर्क में था. मुंबई हमले से पहले उसने वहां का दौरा भी किया था. मुंबई हमला भारत में सबसे बड़े आतंकी हमलों में से एक था, जिसमें लश्कर के 10 आतंकवादियों ने देश की आर्थिक राजधानी में कई जगहों पर हमला किया था. हमले के अगले ही वर्ष तहव्वुर राणा को अमेरिका में गिरफ्तार किया गया और 2011 में उसे 13 वर्ष की कैद की सजा हुई. भारत सरकार लंबे समय से राणा के प्रत्यर्पण की कोशिश में लगी थी. भारत प्रत्यर्पण के खिलाफ राणा ने अमेरिकी अदालतों में गुहार लगायी, मगर सुप्रीम कोर्ट से अपील खारिज होने के बाद उसके भारत आने का रास्ता साफ हो गया.
इसी फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने राणा को भारत भेजने की घोषणा की थी. मुंबई हमले के 17 वर्षों बाद ही सही, तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण पाकिस्तान के लिए घबराहट भरा है. उसने यह कहते हुए राणा से दूरी बना ली है कि वह कनाडाई नागरिक है और बीते 20 वर्षों से उसने अपने पाकिस्तानी दस्तावेजों का नवीकरण नहीं कराया है. जाहिर है, राणा से पूछताछ ज्यादातर मुंबई हमले में इस्लामाबाद की लिप्तता, पाक सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोगों से उसके संपर्क, आइएसआइ नेटवर्क, लश्कर को की जाने वाली फंडिंग और भारत में उसकी कार्रवाइयों पर केंद्रित रहने की उम्मीद है. पूछताछ में मुंबई हमले की साजिश और उसमें इस्लामाबाद की भूमिका के बारे में नयी जानकारियां मिलेंगी. राणा पर भारतीय न्याय संहिता और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत हत्या, भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश और आतंकवादी कृत्यों के आरोप लगाये गये हैं. उसे कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की जा रही है. तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण भारत के लिए बड़ी सफलता है. उससे पूछताछ और कार्रवाई पूरी दुनिया के लिए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मिसाल बन सकती है.