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स्कूली शिक्षा में गणित और विज्ञान पर जोर देने की जरूरत

School Education : भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के 'परख सर्वेक्षण 2025' और वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (असर), 2024 से उजागर होता है कि कक्षा तीन से पांच के लगभग 38 फीसदी बच्चे और कक्षा छह से आठ के लगभग 46 प्रतिशत बच्चे गणित के बुनियादी सवालों को हल करने में असमर्थ हैं तथा दस तक के पहाड़े नहीं जानते.

School Education : स्कूली शिक्षा में जब-जब सुधार की बात होती है, तब भाषा या फिर इतिहास पर आ कर विवाद खड़े होते हैं. यह सच है कि भाषा पर पकड़ मजबूत होने पर ही बच्चा अन्य किसी विषय को भलीभांति समझ सकता है, पर शुरुआती शिक्षा के गुणवत्तापूर्ण और वैश्विक स्तर का होने का मूल आधार तार्किकता, वैज्ञानिक समझ और गणना है. प्राथमिक स्तर पर किताबों के मूल चार उद्देश्य हैं- बच्चा वर्णमाला पहचान सके और उसका इस्तेमाल कर सके, अंक को पहचाने, जोड़-घटाव-गुणा-भाग भलीभांति कर सके, रंग और आकृति को पहचाने और फिर मानवीय गुणों के प्रति संवेदनशील हो. लेकिन स्थिति यह है कि हमारी पाठ्यपुस्तकें एकालाप करती हैं और उत्तर न देने पर असफल घोषित होने के भय से बच्चे सशंकित रहते हैं.


भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के ‘परख सर्वेक्षण 2025’ और वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (असर), 2024 से उजागर होता है कि कक्षा तीन से पांच के लगभग 38 फीसदी बच्चे और कक्षा छह से आठ के लगभग 46 प्रतिशत बच्चे गणित के बुनियादी सवालों को हल करने में असमर्थ हैं तथा दस तक के पहाड़े नहीं जानते. यह बात सरकार स्वीकार करती है कि कक्षा छह के 71 फीसदी छात्र गणित में फ्रैक्शन अर्थात भिन्न को पहचानने और तुलना करने में असमर्थ हैं. गणित का इतना भय बच्चों में है कि कक्षा नौ में 63 फीसदी छात्र बुनियादी गणित में असफल रहे. विज्ञान के विषयों, जैसे रासायनिक परिवर्तन, विद्युत प्रवाह और जटिल जैविक प्रक्रियाओं में भी काफी बच्चों को परेशानी होती है.

रिपोर्ट में राज्य स्तर पर भी अंतर दिखा है. जैसे केरल, हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे राज्य बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, लक्षद्वीप, पुदुचेरी, गोवा, त्रिपुरा जैसे राज्यों के बच्चे गणित और विज्ञान में सबसे कमजोर हैं. वहीं सरकारी स्कूलों के बच्चों का इस संबंध में प्रदर्शन निजी स्कूलों की तुलना में कमजोर है, हालांकि निजी स्कूलों के बच्चे भी गणित में अपेक्षाकृत पिछड़े हैं. बेशक शिक्षा मंत्रालय के ‘निपुण भारत मिशन’ के तहत आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (एफएलएन) में सुधार के प्रयास किये जा रहे हैं, पर अब भी बड़ी संख्या में बच्चे बुनियादी गणित व विज्ञान के कौशल में पिछड़े हैं.


गणित को ‘तर्क की भाषा’ और ‘विज्ञान की रीढ़’ कहा जाता है. लेकिन देश में जहां हर पांचवां बच्चा सीखने की मूलभूत चुनौतियों से जूझ रहा है, वहीं गणित प्राथमिक शिक्षा की सबसे कठिन और डरावनी इकाई बनकर उभरा है. समाज यह मान बैठा है कि विज्ञान और गणित कठिन विषय हैं. इसी के चलते बच्चों में बचपन से ही विज्ञान-गणित के प्रति डर पैदा हो जाता है. यह डर उन्हें सीखने से रोकता है. जब बच्चों को सीखने में मजा नहीं आता, तो उनकी रुचि कम हो जाती है और वे इन विषयों से दूर भागने लगते हैं. अनेक अभिभावक भी बच्चों को गणित में मदद नहीं कर पाते, क्योंकि वे खुद इन दोनों विषयों से डरे हुए होते हैं. इस कारण बच्चों को घर पर पर्याप्त सहायता नहीं मिल पाती. अक्सर ऐसे घरों में बच्चे को ट्यूशन में धकेल दिया जाता है, जहां की शिक्षण प्रणाली विद्यालय से बहुत अलग नहीं होती.


गणित और विज्ञान में छात्रों के कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि इन्हें पढ़ाते समय समझने के बजाय सवालों को रटने पर जोर दिया जाता है. इससे बच्चों में अवधारणात्मक समझ विकसित नहीं हो पाती और वे यांत्रिक तरीके से सवालों को हल करते हैं. प्राथमिक स्तर पर बच्चों को मूर्त अनुभवों के माध्यम से सिखाना बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन अनेक स्कूलों में यह कमी देखी जाती है. वैसे भी हमारे यहां दूरस्थ अंचलों में प्राथमिक शिक्षा भवन, शिक्षक और मूलभूत सुविधा के अभाव से आहत है. विद्यालय में शिक्षण के अलावा मध्याह्न भोजन और ऐसी ही गतिविधियों पर अधिक चिंता रहती है, तिस पर बच्चे को उत्तीर्ण करना भी अनिवार्य है.


यह बात समझनी होगी कि हर कक्षा में कुछ बच्चे जल्दी सीखते हैं और कुछ देर से, लेकिन शिक्षक अक्सर एक ही विधि का प्रयोग करते हैं, जबकि बच्चों की सीखने की क्षमता और शैली अलग-अलग होती है. शिक्षक भी क्या करें? जब एक ही शिक्षक को पांच कक्षाओं में पढ़ाना हो, तो नवाचार से अधिक कक्षा प्रबंधन अनिवार्य होता है. यह बात भी बच्चे को भयभीत करती है कि गणित और विज्ञान को केवल संख्याओं तक सीमित रखा जाता है, जिससे बच्चों में तार्किक सोच और समस्या-समाधान का कौशल विकसित नहीं हो पाते. बच्चे को विज्ञान और गणित में सहज बनाने का काम प्राथमिक कक्षा में ही करना होगा. इसके लिए विज्ञान और गणित की प्राथमिक कक्षाएं बच्चों की मातृभाषा या स्थानीय भाषा में होनी चाहिए. यह न केवल समझ को आसान बनाती है, बल्कि बच्चों का आत्मविश्वास भी बढ़ाती है. गणित कोई कठिन पहेली नहीं, बल्कि दुनिया को समझने का तरीका है. वहीं विज्ञान उस समझ को तार्किक और आत्मविश्वास से परिपूर्ण करता है. गणित और विज्ञान के प्रति उदासीनता शिक्षा व्यवस्था के लिए गहरी चिंता का विषय है और सुधार के लिए बड़े पैमाने पर नीति व क्रियान्वयन की आवश्यकता बनी हुई है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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