अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पहलगाम हमले की पृष्ठभूमि में पाकिस्तान को रणनीतिक मदद देने से इनकार करते हुए भारत के साथ सहयोग का जो वादा किया है, वह महत्वपूर्ण है. दरअसल एक समय अफगानिस्तान को संचालित करने वाले पाकिस्तान के वहां की तालिबान सरकार से अच्छे रिश्ते नहीं हैं, जिसकी वजह पाक तालिबान हैं. तालिबान ने पिछले सप्ताह पहलगाम हमले की निंदा करते हुए कहा था कि ऐसे हमले पूरी क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं और हमलावरों को सजा मिलनी ही चाहिए. पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से घेरने के उद्देश्य से ही विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने काबुल में कार्यवाहक अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की. बैठक में भारत ने अफगानिस्तान के प्रति अपने समर्थन को दोहराया और भारत-अफगानिस्तान संबंध मजबूत करने की प्रतिबद्धता भी जतायी गयी. भारत ने कहा कि वह अफगानिस्तान में ठप पड़ी पहलों को पुनर्जीवित करेगा. जबकि मुत्ताकी ने अफगानिस्तान में उपलब्ध अनुकूल निवेश अवसरों का लाभ उठाने का आग्रह किया. बैठक में द्विपक्षीय राजनीतिक संबंधों, व्यापार, पारगमन और हाल की क्षेत्रीय राजनीतिक प्रगति पर चर्चा हुई.
हालांकि भारत द्वारा अटारी बॉर्डर बंद कर देने से पाकिस्तान के जरिये होने वाला भारत-अफगान व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. इस बॉर्डर के जरिये दोनों देशों के बीच सालाना 50 करोड़ डॉलर का व्यापार होता रहा है. यह सूखे मेवों का सीजन है और अफगानिस्तान से सूखे मेवे इसी रूट से भारत आते रहे हैं. गौरतलब है कि 2001 से 2021 तक भारत क्षेत्रीय स्तर पर अफगानिस्तान का सबसे बड़ा मददगार था, जिसने उस दौरान काबुल को तीन अरब डॉलर से अधिक की मदद की थी. तब भारत ने अफगानिस्तान के सभी प्रांतों में बिजली, जलापूर्ति, सड़क संपर्क, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कृषि और क्षमता निर्माण जैसे क्षेत्रों में 500 से अधिक परियोजनाओं को वित्तपोषित किया था. इसी कारण भारतीय प्रतिनिधि ने काबुल में पूर्व अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई से भी मुलाकात की. बेशक तालिबान को वैश्विक मान्यता नहीं मिली है, लेकिन भारत ने वहां कूटनीतिक मौजूदगी और मानवीय मदद बनाये रखी है. विगत जनवरी में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दुबई में मुत्ताकी से मुलाकात भी की थी. कुल मिलाकर, इस समय भारत को मिलता अफगानिस्तान का साथ पड़ोसी पाकिस्तान के लिए बड़ा कूटनीतिक झटका है.