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इन नतीजों की गूंज दूर तक सुनी जायेगी

इन नतीजों की गूंज दूर तक सुनी जायेगी

तरूण विजय

पूर्व राज्यसभा सांसद, भाजपा

बिहार परिणामों ने राष्ट्रवादी केसरिया विकास नीतियों और कार्यक्रमों को जो स्वीकृति दी, उसकी दमक मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में भी प्रतिभासित हो रही है. सामान्य गरीब जनता, किसान, मजदूर और उनमें सबसे बढ़कर सामान्य गृहलक्ष्मियों ने भाजपा के नेतृत्व को अपने और देश के लिए सुरक्षित माना, यह इस दशक ही नहीं, इस शताब्दी के नवीन परिवर्तन का द्योतक है.

जिसके नायक चक्रवर्ती नरेंद्र मोदी और चाणक्य अमित शाह हैं. बिहार ने लुटियन मीडिया की लुटिया डुबो दी, जिसने दो दिन पूर्व मोदी की असफलता की घोषणा की, नीतीश को नकारा और शाह को प्रभावहीन घोषित कर तेजस्वी को मुख्यमंत्री बना ही दिया था.

वैचारिक अस्पृश्यता और घृणा पत्रकारिता का पर्याय नहीं हो सकती, यह बिहार ने सिद्ध किया. जो सामने है, वह न देखते हुए वाम-दाम दिल्ली की मीडिया ने वह बताया, जो उसे सुहाता था. बिहार में महिलाओं की बढ़ती चुनावी सक्रियता ने नरेंद्र मोदी के डबल-इंजन को अपनी सुरक्षा, समृद्धि और विकास के लिए चुना. राजद-कांग्रेस-वामपंथियों का शोर पूर्णत: नकारात्मकता और अपशब्दों से भरा हुआ था, जिसमें घर-परिवार की बात नहीं, बल्कि शत्रुतापूर्ण राजनीतिक शब्द-हिंसा का आतंक था.

बिहार ने गड्ढों में सड़कें, तीन घंटे बिजली, जातिगत नरसंहार, कम्युनिस्टों की अराजकता, फिरौती के लिए अपहरण, कॉलेजों का सर्वनाश, व्यापार-उद्योग का भयादोहन और सड़कों पर मंडराते निरंकुश माफिया का राज देखा था.

नीतीश ने जोखिम उठाया-नशाबंदी की, कॉलेजों में कक्षाएं शुरू हुईं, गुंडों में भय व्यापा, अपहरण-नरसंहार पर रोक लगी, कम्युनिस्टों को नाथा, मोदी-शाह का साथ और विश्वास लिया और इसके लिए देश की सेकुलर मीडिया का विरोध सहा. सेकुलर क्या बोले? नीतीश तो प्राइम मिनिस्टर मैटीरियल हैं- भाजपा के साथ व्यर्थ गये. लालू का साथ छोड़ना बहुत बड़ी गलती थी- प्रवासी श्रमिकों के लिए न जाने क्या-क्या कहा. लेकिन, बिहार ने मोदी-शाह की शांतिपूर्ण सज्जनता और नीतीश की बेहद शालीनता और भद्रता पर भरोसा किया.

मोदी के डबल इंजन ने कमाल का समां बांधा. सीधे बात दिल में उतर गयी. डबल युवराज घोलू-झंझट से बिहार दूर हुआ. अभी तो तीन साल (2017 से 2020) एक साथ राज किये हैं. पांच साल में सुरक्षा के साथ रोजगार भी आयेगा. वह वर्ग जिसे बिहार की चुनावी भाषा में ‘पचपनिया’ कहते हैं और महादलित भाजपा-जदयू से जुड़ा.

एक और बात, केंद्र में मोदी हर वायदे की पक्की गारंटी का प्रतिरूप बन गये हैं. वैचारिक विरोधी भी मोदी पर अविश्वास नहीं कर सकता है. मोदी भरोसे का दूसरा नाम, तो नीतीश राजनीति में भद्रता, सज्जनता का ऐसा चेहरा जो किसी भी विपक्ष में नहीं दिखता. विकास होता है, तो आंखों से दिखता है- मुंगेर-भागलपुर राजमार्ग (971 करोड़ लागत), तो नवीनतम था, लेकिन इससे पहले नितिन गडकरी ने 6,943 करोड़ की लागत से 16 राजमार्ग भी बनवाये. यह देखकर आम आदमी नहीं समझ पाया कि वह बिहार में है या हरियाणा-गुजरात में है.

शाम ढले पियक्कड़ों के झुंड और महिलाओं का बाहर निकलना दूभर- यह पुरानी बात नहीं. नीतीश की नशाबंदी पर सेकुलर संपादकीय लिखे गये-कांग्रेस ने कानून ही बदलने का वचन दे दिया- 26 अक्तूबर तक अंग्रेजी पत्रकार लिख रहे थे कि ‘प्रोहिबिशन हिट बिहार-विल इट हर्ट नीतीश इलेक्शन प्रॉस्पेक्ट?’ यानी शराबबंदी से नीतीश को चुनावी क्षति होगी. वे सब ढह गये, महिलाओं की दुआओं और आशीषों ने केसरिया सज्जनता जिता दी.

ये परिणाम- जिनमें शेष प्रांतों के उपचुनावों में भाजपा की विजय भी शामिल है- देश के उस बदलाव का परिचय देते हैं, जिसमें अयोध्या का नवोदय, कश्मीर में तिरंगे की प्रभुता और विभाजनवादियों का पराभव, जिहादी-कम्युनिस्ट-कांग्रेस के घृणा पर टिके हिंदू विरोध की अस्वीकार्यता प्रकट होती है. मोदी का पराक्रम अब बंगाल में भगवा लहरायेगा. अमित शाह की घोषणाओं को समझा कीजिये. बिहार ने भगवा-पराक्रम और भद्र-विकास की ध्वजा लहरा दी है. शेष कोलकाता में बतायेंगे.

posted by : sameer oraon

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