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अमेरिकी चुनाव में कमला हैरिस

अपने साथी उम्मीदवार के रूप में बाइडेन द्वारा कमला हैरिस का चयन किया जाना इस चुनाव में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, जिसके जरिये अमेरिका के अश्वेत और भारतीय मूल के लोगों को सकारात्मक संदेश देने की बात कही जा रही है.

जे सुशील, स्वतंत्र शोधार्थी

jey.sushil@gmail.com

तीन नवंबर को होनेवाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के अभियान में अब हर दिन नयी घोषणाएं हो रही हैं और इन घोषणाओं का असर मतदाताओं पर भी बहुत साफ दिखने लगा है. रिपब्लिकन पार्टी की ओर से फिर से मैदान में उतरे वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आगे बढ़कर मतदाताओं को लुभाने के लिए चार महत्वपूर्ण घोषणाएं की हैं, तो दूसरी तरफ पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के दो कार्यकाल में आठ साल तक उपराष्ट्रपति रहे और डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से उम्मीदवार जो बाइडेन ने अपने उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में सीनेटर कमला हैरिस के नाम की घोषणा की है.

अपने साथी उम्मीदवार के रूप में बाइडेन द्वारा कमला हैरिस का चयन किया जाना इस चुनाव में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, जिसके जरिये अमेरिका के अश्वेत और भारतीय मूल के लोगों को सकारात्मक संदेश देने की बात कही जा रही है. उल्लेखनीय है कि सीनेटर हैरिस के अश्वेत पिता जमैका में जन्मे थे और उनकी माता भारतीय हैं.

हालांकि, पूर्व में नस्ल के मामले पर बाइडेन और कमला हैरिस एक-दूसरे की आलोचना कर चुके हैं, लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी हासिल करने के लिए पिछले साल तक बाइडेन के सामने खड़ी कमला हैरिस ने बीते कुछ समय में बाइडेन की सभी नीतियों का समर्थन भी किया है. पार्टी के भीतर उम्मीदवार के चुनाव के लिए मतदान से पहले ही वे बाइडेन के समर्थन की घोषणा कर दौड़ से हटी थीं.

माना जा रहा है कि हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किये जाने से अमेरिकी आबादी में 13 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले काले समुदाय के मतदाता एकमुश्त बाइडेन के पक्ष में वोट कर सकते हैं. अमेरिका के चुनावी इतिहास में कमला हैरिस तीसरी महिला हैं, जिन्हें किसी बड़े राजनीतिक दल ने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर चुना है. इससे पहले सारा पैलिन रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से 2008 में उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार थीं, जबकि गेराल्डीन फेरारो 1984 में डेमोक्रेट पार्टी की तरफ से इस पद के लिए चुनी गयी थीं. पर इन दोनों उम्मीदवारों को जीत हासिल नहीं हो सकी थी. इतना ही नहीं, इस पद के लिए चुनी जानेवाली हैरिस पहली अश्वेत महिला भी हैं.

55 वर्षीया कमला हैरिस और 77 वर्षीय जो बाइडेन को देखते हुए ये भी कयास लगाये जा रहे हैं कि भविष्य में डेमोक्रेट पार्टी की बागडोर कमला हैरिस के हाथ में आ सकती है. इस कयास का एक कारण यह भी है कि बाइडेन लगातार कहते रहे हैं कि वे खुद को ट्रांजिशनल कैंडिडेट यानी बदलाव से स्थायित्व की ओर ले जानेवाला उम्मीदवार मानते हैं. इसका भाव यह भी हो सकता है कि राष्ट्रपति ट्रंप के आक्रामक और अराजक कार्यकाल के बाद बाइडेन एक स्थायित्व दें और अगर वे इस बार जीतते हैं, तो अगले चार साल में राष्ट्रपति पद के लिए कमला हैरिस का नाम आगे किया जाये. यह बहुत हद तक संभव इस दृष्टि से भी है कि अगर बाइडेन जीत जाते हैं, तो अगले चुनाव तक उनकी उम्र 81 साल हो जायेगी.

ऐसे में तब 59 साल की कमला हैरिस अपने उपराष्ट्रपति पद के अनुभव के साथ 2024 के चुनाव में एक अच्छे उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत की जा सकती हैं. कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में चुने जाने का बाइडेन के अभियान पर कितना सकारात्मक असर पड़ेगा, इस संबंध में स्पष्टता अगले कुछ दिनों में होनेवाले सर्वेक्षणों में मिल सकती है. इस बीच पिछले सप्ताह कोरोना से जूझते अमेरिका को राहत देने के लिए अमेरिकी कांग्रेस में जिस पैकेज पर चर्चा हो रही थी, वह बहस असफल रही है. इस असफलता के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए चार महत्वपूर्ण फैसले किये हैं और बड़े ही नाटकीय अंदाज में प्रेस कांफ्रेंस में इनकी घोषणा की है.

इन फैसलों में बेरोजगार अमेिरकियों को हर हफ्ते तीन सौ डॉलर की राशि देने का प्रावधान है. ये तीन सौ डॉलर संघीय प्रशासन देगा. ट्रंप ने कहा है कि राज्य प्रशासन भी सौ डॉलर का योगदान करें. सौ डॉलर देने या न देने का फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ा गया है. माना जाता है कि रिपब्लिकन पार्टी के शासनवाली राज्य सरकारें यह पैसा देंगी. दूसरे आदेश में ट्रंप ने कहा है कि जो भी लोग कोरोना के कारण अपने घरों का किराया नहीं दे पा रहे हैं, उन्हें घरों से नहीं निकाला जा सकता है.

साथ ही, जिन पर छात्र ऋण है, उन्हें कुछ समय तक किस्तें न चुकाने की मोहलत मिली है. एक और फैसले में कहा गया है कि इस साल जिन्हें वेतन मिलता है हर महीने, उस पर टैक्स नहीं लगेगा. हालांकि टैक्स न लेने का यह फैसला दिसंबर तक के लिए रखा गया है और ट्रंप ने कहा है कि अगर वे जीत जाते हैं, तो टैक्स माफ करने का कोई रास्ता निकाल लेंगे.

ट्रंप को इन घोषणाओं का तत्काल फायदा मिलता दिख रहा है. दो हफ्ते पहले हुए सर्वेक्षणों में जहां वे बाइडेन से बारह अंकों से पीछे चल रहे थे, वहीं इस हफ्ते हुए सर्वेक्षण में ट्रंप ने दो अंकों से यह बढ़त कम कर ली है. फिलहाल बाइडेन उनसे दस अंकों से आगे हैं. मोनमाउथ यूनिवर्सिटी पोल के मुताबिक, इस समय बाइडेन में 51 प्रतिशत वोटर भरोसा जता रहे हैं, जबकि ट्रंप के समर्थन में 41 प्रतिशत लोग ही हैं. टीवी चैनल सीबीएस न्यूज और यूगॉव के रविवार को किये गये सर्वेक्षण में ट्रंप के खिलाफ बाइडेन की बढ़त मात्र छह फीसदी की है यानी कि ट्रंप को 42 फीसदी लोगों का समर्थन है, तो बाइडेन को 48 फीसदी लोगों का. यह बढ़त आनेवाले दिनों में घट भी सकती है.

इन सर्वेक्षणों को देखकर यह अनुमान लगाना गलत होगा कि बाइडेन आसानी से जीत सकते हैं क्योंकि पिछले राष्ट्रपति चुनाव में अगस्त के महीने में हुए चुनाव सर्वेक्षणों में ट्रंप के मुकाबले हिलेरी क्लिंटन बहुत स्पष्ट बढ़त बनाये हुए थीं. अमेरिकी चुनाव में जीत के लिए राज्यवार तय 270 प्रतिनिधि वोटों की जरूरत होती है और अगस्त के सर्वेक्षण में हिलेरी को 273 वोट मिल रहे थे, जबकि ट्रंप को सिर्फ 174 वोट ही दिये जा रहे थे, लेकिन उसके बाद अगले सिर्फ दो महीने में ट्रंप का समर्थन तेजी से बढ़ा और वे जीत गये. शायद यही कारण है कि इस समय भी बाइडेन की जीत को लेकर कोई भी अमेरिकी आश्वस्त नहीं है और तमाम तरह के अनुमान लगाये जा रहे हैं.

(ये लेखके के िनजी विचार हैं़)

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