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ट्रंप का जवाबी शुल्क भारत के लिए मौका, पढ़ें अजित रानाडे का लेख

Donald trump : ट्रंप के तेवर भारत के लिए शुल्क सुधार की शुरुआत करने का अवसर होना चाहिए, क्योंकि मौजूदा शुल्क व्यवस्था न हमारे निर्यात के लिए ठीक है, न यह प्रतिस्पर्धा के अनुकूल है. विदेशी आयात पर सामान्य शुल्क तो 2015 से ही बढ़ रहे हैं और धीरे-धीरे चार से पांच फीसदी तक बढ़ गये हैं, जबकि गैरकृषि उत्पादों में यह वृद्धि औसतन 15 फीसदी है.

Donald trump : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शब्दों के इस्तेमाल में माहिर हैं. अमेरिका के संघीय आयकर विभाग को इंटरनल रेवेन्यू सर्विस कहा जाता है. ट्रंप ने कहा कि वह एक्सटर्नल रेवेन्यू सर्विस विभाग बनायेंगे. अपने करदाताओं पर करों का बोझ बढ़ाने के बजाय उन्होंने बाहरियों पर टैक्स लगाने के बारे में सोचा. ट्रंप का कहना है कि अमेरिका दुनिया का सबसे खुला हुआ उपभोक्ता बाजार है, जहां हर देश की पहुंच है. पर अमेरिका को निर्यात करने वाले देशों ने अपने यहां दूसरे देशों का प्रवेश बाधित करने के लिए शुल्क की दर काफी ऊंची रखी है. ट्रंप का कहना है कि यह अमेरिकी निर्यात के हित में नहीं है. इसलिए उन्होंने ऐसे तमाम देशों के उत्पादों पर ऊंचा शुल्क प्रस्तावित किया है. यह ‘जैसे को तैसे’ की रणनीति है.

ट्रंप के मुताबिक, इससे अमेरिका के राजस्व में भारी वृद्धि होगी और उन देशों को दंड मिलेगा, जो संरक्षणवादी रवैया अपनाते हैं. यह फैसला लेते हुए ट्रंप ने इसका ध्यान नहीं रखा कि डब्ल्यूटीओ का नियम एक ही उत्पाद पर अलग-अलग देशों के लिए अलग-अलग शुल्क लगाने की इजाजत नहीं देता. यह तो एफएमएन-यानी सबसे वरीयता प्राप्त देश वाला नियम है. ट्रंप ने इसका भी ध्यान नहीं रखा कि उनका फैसला अमेरिकी उपभोक्ताओं पर भी असर डालेगा, क्योंकि इससे कीमत बढ़ेगी और मुद्रास्फीति भी. ट्रंप ने हालांकि कहा है कि अपने नागरिकों को राहत देने के लिए वह आयकर में कटौती करेंगे, लेकिन अमेरिका में भारी राजकोषीय घाटे को देखते हुए यह संभव नहीं लगता.


ट्रंप ने इस पर भी विचार नहीं किया कि अमेरिका की तुलना में भारत जैसे विकासशील देशों को ऊंचे आयात शुल्क दरअसल अपने घरेलू उद्योग को बचाने के लिए रखने पड़ते हैं, क्योंकि उनके यहां बिजली, ढांचागत सुविधाओं तथा कर्ज की लागत ज्यादा है, जबकि श्रम उत्पादकता कम है. डब्ल्यूटीओ की यह व्यवस्था, जाहिर है, भारत जैसे विकासशील देशों को अपना घरेलू उद्योग बचाने और विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा में लेवल प्लेइंग फील्ड मुहैया कराने के लिए बनायी गयी है. हालांकि यह भी सही है कि जो भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का दावा करता है, शुल्कों की ऊंची और रक्षात्मक दीवार बनाये रखना उसे शोभा नहीं देता. ऊंचा आयात शुल्क न प्रतिस्पर्धा के लिए ठीक है, न यह भारतीय उपभोक्ताओं के हित में है, जिन्हें मुफ्त आयात से वंचित रखा जाता है, न यह उन अकुशल उद्योगों के हित में है, जो संरक्षणवादी माहौल में ही फलते-फूलते हैं. ट्रंप के जवाबी शुल्क का प्रस्ताव भारत के लिए अवसर है कि वह कम से कम उन वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करे, जो अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण हैं. शुल्कों पर यह आपसी सहमति बेशक डब्ल्यूटीओ के नियम के विपरीत होगी, पर ट्रंप के राष्ट्रपति काल में डब्ल्यूटीओ के नियम भी कमोबेश महत्वहीन साबित हो रहे हैं. हालांकि भारत जिस तरह अलग-अलग देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करने की कोशिश में है, वह भी डब्ल्यूटीओ की घटी साख के बारे में बताता है.

ट्रंप के तेवर भारत के लिए शुल्क सुधार की शुरुआत करने का अवसर होना चाहिए, क्योंकि मौजूदा शुल्क व्यवस्था न हमारे निर्यात के लिए ठीक है, न यह प्रतिस्पर्धा के अनुकूल है. विदेशी आयात पर सामान्य शुल्क तो 2015 से ही बढ़ रहे हैं और धीरे-धीरे चार से पांच फीसदी तक बढ़ गये हैं, जबकि गैरकृषि उत्पादों में यह वृद्धि औसतन 15 फीसदी है. जिन उत्पादों पर शुल्क एमएफएन शुल्क से 15 फीसदी अधिक थे, उनमें भी एक चौथाई वृद्धि हुई है. ‘मेक इन इंडिया’ और बाद में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) योजना के लिए आयात शुल्क में लगातार की गयी वृद्धि को उचित ठहराया गया. पर अब आयात शुल्क को 2015 के स्तर से नीचे ले जाने का समय आ गया है. लाजिमी है कि आयात शुल्क को हम आसियान देशों के आयात शुल्क के बराबर ले आयें.


अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और इस वित्त वर्ष में दिसंबर तक अमेरिका को हमारा निर्यात 5.6 प्रतिशत बढ़कर 60 अरब डॉलर हो चुका है. अमेरिका के साथ व्यापार में भारत लगभग 45 अरब डॉलर के फायदे में रहता है. अमेरिकी आयात पर भारत सामान्यत: 17 फीसदी शुल्क लगाता है, जबकि भारतीय आयात पर अमेरिकी शुल्क 3.3 प्रतिशत है. भारत और अमेरिका के बीच शुल्कों में अंतर सात से आठ प्रतिशत का है, हालांकि इसमें कृषि उत्पाद शामिल नहीं हैं. अब भारतीय आयातों पर अमेरिका में शुल्क वृद्धि से हमारे इस्पात, एल्यूमीनियम, फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को नुकसान होगा. पर फार्मा, पॉलिश किये गये हीरे और पेट्रो उत्पादों के बड़े हिस्से का आयात होता है, इसलिए हम पर नकारात्मक असर कम होगा.

भारत का अमेरिका से ज्यादा कच्चा तेल लेने पर सहमत होना शुल्कों पर हो रही वार्ता में निर्णायक भूमिका निभा सकता है. हर्ले डेविडसन मोटरसाइकिल या बार्बन ह्विस्की को शुल्क से छूट देने या इन पर शुल्क कम करने से हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. लेकिन अमेरिकी बाजार में भारतीय सॉफ्टवेयर उत्पादों का प्रवेश बाधित होना हमारे लिए बड़ा जोखिम हो सकता है. बड़ी अमेरिकी कंपनियों द्वारा संचालित ग्लोबल कैपिबिलिटी सेंटर्स का भारत में होना हमारी प्रतिभा का ही प्रमाण है. इस सिलसिले को बनाये रखना भारत के हित में होगा. अगर इसके लिए आयात शुल्क में कमी करनी पड़े, तो हर्ज नहीं है.


भारत कृषि उत्पादों के निर्यात के बारे में भी सोच सकता है, जिसमें अकूत संभावनायें हैं. भारत से कृषि और उससे संबंधित उत्पादों का कुल निर्यात 50 अरब डॉलर का है, और जो कुल वैश्विक निर्यात का मात्र 1.5 फीसदी ही है. भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है, दुनिया का सबसे अधिक पशुधन भारत में है, फलों और सब्जियों का दूसरा या तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक भारत है, और यहां लंबा समुद्रतट भी है. इतनी संभावनाओं के बीच हम दुग्ध उत्पाद, पनीर, मिठाइयों, मांस, पोल्ट्री, मछली, फ्रूट जूस, ऑर्गेनिक फूड्स आदि के निर्यातक कब बनेंगे? कृषि क्षेत्र में ‘छोटे किसानों के हितों’ की बात करते हुए आयात और निर्यात पर भारी शुल्क की दीवार बनाये रखने का कोई औचित्य नहीं है. जिन कृषि उत्पादों की हम उपेक्षा करते आये हैं. वे अमेरिका के साथ व्यापार में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. ट्रंप की ‘जैसे को तैसा’ वाली रणनीति भारत के लिए अवसर है कि हम आयात शुल्क कम करें और निर्यातकों को बड़ा अवसर मुहैया करायें. इसमें हमें थोड़ा नुकसान होगा, पर इसका व्यापक सकारात्मक असर दिखेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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