Delhi Station Stampede : जब भी हम भगदड़ की घटनाओं के बारे में सुनते हैं, तो अक्सर एक बात समान होती है, इनमें पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मृत्यु अधिक होती है. शनिवार को दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में भी यही स्थिति देखने को मिली.जहां महिला मृतकों की संख्या अधिक थी. ऐसी ही स्थिति पिछले वर्षों में हुई कई भगदड़ की घटनाओं में भी देखी गई है. इस तरह की घटनाओं में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु दुखद होती है, जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया है, उनके लिए यह किसी त्रासदी से कम नहीं है. भगदड़ को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए, लेकिन खासतौर पर महिलाओं के लिए अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है.
देश में धार्मिक स्थलों, त्योहारों, राजनीतिक रैलियों और अन्य सार्वजनिक आयोजनों में लाखों लोगों की भीड़ जुटना अब आम बात हो गई है. लेकिन जिस उत्साह से इन आयोजनों की तैयारी होती है, उसी अनुपात में किसी अप्रिय घटना से निपटने की तैयारी नहीं की जाती. जब यह भीड़ अनियंत्रित हो जाती है और भगदड़ मचती है, तो मरने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है. हाल के वर्षों में कई घटनाओं ने यह साबित किया है कि भगदड़ में सबसे अधिक नुकसान महिलाओं को ही उठाना पड़ता है. इसके पीछे कई कारण हैं. महिलाओं की शारीरिक संरचना और ताकत पुरुषों की तुलना में कमजोर होती है, जिससे धक्का-मुक्की की स्थिति में वे जल्दी गिर जाती हैं और उन्हें खुद को संभालना मुश्किल हो जाता है. उनके उठने की संभावना भी कम होती है, जिससे वे भीड़ के नीचे दबकर जान गंवा देती हैं. आयोजनों में महिलाओं के लिए अलग व्यवस्थाएं हों, तो इससे राहत मिल सकती है, लेकिन हर जगह यह संभव नहीं होता. इसके अलावा, भारतीय पारंपरिक परिधान जैसे साड़ी, सलवार-कुर्ता या दुपट्टा भी ऐसी परिस्थितियों में बाधा बनते हैं. भगदड़ के दौरान दुपट्टा, साड़ी का पल्लू या अन्य कपड़े कहीं फंस जाते हैं, जिससे महिलाएं गिर जाती हैं और स्थिति और भी भयावह हो जाती है. इसलिए महिलाओं को भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने के लिए आरामदायक और सुरक्षित कपडे पहनने चाहिए . भारी साड़ी, ढीले-ढाले कपड़े और फैंसी, ऊंची एड़ी के सैंडल या स्लीपर पहनने से बचना चाहिए, क्योंकि इनसे तेजी से चलने या दौड़ने में परेशानी होती है. हल्के जूते और छोटे बैग अधिक सुरक्षित होते हैं.
महिलाओं की सामाजिक भूमिका भी इस समस्या की एक वजह बनती है. वे अक्सर छोटे बच्चों या बुजुर्गों के साथ होती हैं, जिनकी सुरक्षा उनकी प्राथमिकता बन जाती है. इस दौरान वे अपनी सुरक्षा पर ध्यान नहीं दे पातीं और आसानी से भीड़ में फंस जाती हैं. हमारे समाज में महिलाओं को अधिक सहनशील और अनुशासित रहने की सीख दी जाती है, जिसके कारण वे भीड़ से बचने की कोशिश में अक्सर पीछे रह जाती हैं और भगदड़ में उनकी मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है. इसलिए, घर से निकलने से पहले आयोजनों की स्थिति की जानकारी लेनी चाहिए. आजकल सोशल मीडिया, न्यूज पोर्टल और लाइव अपडेट्स के माध्यम से किसी भी उस स्थान की भीड़भाड़ की स्थिति का पता लगाया जा सकता है.
महिलाओं को भगदड़ से बचाव के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं दिया जा सकता है क्योंकि अपने देश में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, लेकिन घरों में इस तरह की स्थितियों में धैर्य रखने और भीड़ से निकलने की रणनीतियों पर चर्चा जरूर की जा सकती है. अक्सर देखा गया है कि महिलाएं अचानक घबरा जाती हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है. आत्मरक्षा की तकनीकों के साथ-साथ आपातकालीन परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखने और गिरने से बचने की रणनीति भी सिखाई जानी चाहिए. जैसे कोई महिला भगदड़ में गिर जाए, तो उसे तुरंत अपने घुटनों और कोहनियों को मोड़कर गोल आकार में आ जाना चाहिए, ताकि कुचलने से बचा जा सके. भीड़ में आगे बढ़ते समय अपने दोनों हाथों से चेस्ट पर क्रॉस की तरह बनाना ताकि घुटन न हो, अपने पैरों पर संतुलन बनाए रखना और किसी मजबूत चीज को पकड़ने की कोशिश करना भी मददगार हो सकता है.
परिवार के पुरुषों की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वे अपनी घर की महिलाओं को ऐसे खतरों के बारे में भी बताएं . उन्हें अपनी बहन, पत्नी, बेटी और मां को यह सिखाना चाहिए कि किसी भी बड़े आयोजन में जाने से पहले सुरक्षा के लिए क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए. भीड़ में घुसने से बचना, निकासी मार्ग पहले से पहचान लेना और किसी भी आपातकालीन स्थिति में घबराने के बजाय सुरक्षित रणनीति अपनाना बहुत जरूरी है. आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिलवाना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है, ताकि महिलाएं खुद को संकट की स्थिति में संभाल सकें. अगर संभव हो, तो परिवार के पुरुषों को भी महिलाओं के साथ ऐसे प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेना चाहिए, जहां भगदड़ से निपटने और भीड़ में सुरक्षित रहने की तकनीक सिखाई जाती हो. लेकिन हमारे देश में ऐसे सुरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम बहुत काम या यूं कहें की नहीं होते हैं जबकि यूरोप और अन्य विकसित देशों में इसे स्कूली शिक्षा का हिस्सा बनाया गया है, वहाँ बच्चों को आपदा प्रबंधन और भगदड़ से बचने के लिए मॉक ड्रिल्स के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाता है. सरकार को इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है, ताकि लोगों को भीड़ नियंत्रण और आपातकालीन स्थितियों में व्यवहार करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सके.
सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया, अखबारों और अन्य माध्यमों का उपयोग किया जाना चाहिए. समाज को यह समझने की जरूरत है कि महिलाओं को केवल सहनशीलता और अनुशासन का पाठ पढ़ाने के बजाय उन्हें आत्मरक्षा और भीड़ में सुरक्षित रहने की शिक्षा देना भी आवश्यक है. सरकार और प्रशासन को भीड़ नियंत्रण के बेहतर उपाय लागू करने चाहिए, ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके. भगदड़ जैसी घटनाओं में महिलाओं की अधिक मृत्यु होना एक गंभीर सामाजिक और प्रशासनिक समस्या है, लेकिन इसे रोकने के लिए व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक स्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है. पुरुषों की जिम्मेदारी महिलाओं की तुलना में अधिक है, क्योंकि वे अक्सर ऐसी स्थितियों से अधिक परिचित होते हैं और उन्हें भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में अधिक अनुभव होता है. जब भी घर से महिलाएF, बच्चे और बुजुर्ग भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में जाएं, तो पुरुषों को अधिक चौकन्ना और संवेदनशील रहने की जरूरत है. सरकार और स्थानीय प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी बड़े आयोजन में भीड़ नियंत्रण के लिए उचित प्रबंधन किया जाए, ताकि ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके. साथ ही, हर नागरिक को अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए भीड़भाड़ से बचाव के तरीकों को अपनाना चाहिए. जागरूकता, सतर्कता और सही रणनीति से हम इन घटनाओं से बच सकते हैं और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं. (लेखिका मीडिया एजुकेटर और युवा मामलों की जानकर हैं)