28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

लेटेस्ट वीडियो

पुण्यतिथि विशेष : बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, मानवीयता व राष्ट्रीयता के कवि

Balkrishna Sharma Naveen : ‘नवीन’ की ज्यादातर कृतियां और कविताएं जेलों में ही रची गयीं. वर्ष 1921 से 1923 तक उन्होंने राष्ट्रीय विचारों पर आधारित ‘प्रभा’ नामक एक पत्रिका का भी संपादन किया, जबकि कानपुर के सांप्रदायिक उपद्रवों में विद्यार्थी जी की बलि के कई वर्ष बाद तक ‘प्रताप’ के प्रधान संपादक रहे.

Audio Book

ऑडियो सुनें

Balkrishna Sharma Naveen : अपनी हिंदी में एक कालजयी गीत है, विप्लव-गीत- ‘कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए!’ आजादी की लड़ाई के दौरान स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यकार स्मृतिशेष बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ की लेखनी से निकला यह गीत आज भी कहीं गूंजता है, तो सुनने वालों की भुजाएं फड़कने लगती हैं, परंतु आज की पीढ़ी को शायद ही मालूम हो कि ‘नवीन’ ने जब इसे रचा तब भीषण मोहताजी के शिकार थे. उनके सामने पापी पेट का सवाल तो मुंह बाये खड़ा ही रहता था, तन ढकने के लिए साल में दो धोतियां भी नहीं जुड़ पाती थीं.

उनका जन्म आठ दिसंबर, 1897 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर राज्य के शाजापुर परगने के भयाना गांव में एक अत्यंत विपन्न वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता जमनालाल शर्मा वैष्णवों के प्रसिद्ध तीर्थ नाथद्वारा में रहते थे, लेकिन अभाव व विपन्नता ने इस परिवार को ऐसा घेर रखा था कि मजबूर माता को बालकृष्ण को गायों के बाड़े में जन्म देना पड़ा था. बाद में भी विपन्नता के चलते वे आस-पास के किसी समृद्ध परिवार में पिसाई-कुटाई करके ‘कुछ’ ले आतीं, तो पहले बालकृष्ण का, फिर उनका पेट भरने की जुगत हो पाती. फिर भी बालकृष्ण ने किसी तरह शाजापुर से मिडिल स्कूल, फिर उज्जैन जाकर हाइस्कूल की परीक्षा पास की. किसी अखबार में दिसंबर, 1916 में लखनऊ में कांग्रेस का महाधिवेशन होने की खबर पढ़ी तो जैसे-तैसे कुछ पैसे जुटाये और नंगे पैर ही उसमें शामिल होने चल पड़े.

महाधिवेशन में उनका अपने चहेते नायकों- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गणेश शंकर विद्यार्थी के अतिरिक्त माखनलाल चतुर्वेदी व मैथिलीशरण गुप्त जैसी विभूतियों से परिचय हुआ तथा उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ. वहां से लौटे तो उज्जैन से अपनी अगली परीक्षा उत्तीर्ण की, फिर ‘प्रताप’ के यशस्वी संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी से बात कर कानपुर चले गये. वहां विद्यार्थी जी ने उन्हें क्राइस्ट चर्च कॉलेज में प्रवेश तो दिलाया ही, बीस रुपये महीने का एक ट्यूशन भी दिला दिया. बाद में वे ‘प्रताप’ के संपादन में भी उनका हाथ बंटाने लगे. थोड़े ही दिनों में उन्होंने राजनीतिक व साहित्यिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया.


महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया तो उसमें शामिल होने के लिए उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया. संयुक्त प्रांत के सत्याग्रहियों के पहले ही जत्थे में उनका नाम था, जिससे गोरी सरकार ने 1921 में उन्हें डेढ़ वर्ष की सजा दी. आगे चल कर छह बार सुनायी गयी अन्य सजाओं में उन्हें घोर यातनाओं के बीच अपने जीवन के नौ साल जेलों में बिताने पड़े. इसका कारण उनके ऐसे लेख अथवा भाषण थे, जो उन्होंने गोरे हुक्मरान के विरोध में लिखे या दिये थे. जेल जीवन में ही वे आचार्य जेबी कृपलानी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और जवाहरलाल नेहरू के संपर्क में भी आये. ‘नवीन’ की ज्यादातर कृतियां और कविताएं जेलों में ही रची गयीं. वर्ष 1921 से 1923 तक उन्होंने राष्ट्रीय विचारों पर आधारित ‘प्रभा’ नामक एक पत्रिका का भी संपादन किया, जबकि कानपुर के सांप्रदायिक उपद्रवों में विद्यार्थी जी की बलि के कई वर्ष बाद तक ‘प्रताप’ के प्रधान संपादक रहे. विद्यार्थी जी की स्मृति में उन्होंने ‘प्राणार्पण’ शीर्षक खंड काव्य भी रचा. उनको छायावाद के समानांतर बहने वाली उस हिंदी काव्यधारा का प्रतिनिधि कवि माना जाता है, जिसमें वीरता, प्रेम व श्रृंगार के अतिरिक्त राष्ट्रीयता व मानवीयता के स्वर प्रवाहित हैं.

स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वे कई बार उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष व महामंत्री बने. आजादी के बाद संविधान परिषद के सदस्य मनोनीत हुए और पहले आम चुनाव में कानपुर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. वे जन्मजात विद्रोही थे. एक बार पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल होने का आमंत्रण दिया तो अपने विद्रोही स्वभाव के कारण उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे स्वीकार करने से मना कर दिया. वर्ष 1954 में किन्हीं कारणों से उन्हें कांग्रेस से अलग कर दिया गया, तो भी वे नहीं झुके और पांच महीने बाद स्वयं पं नेहरू ने उनकी पार्टी में वापसी करायी. उनके समकालीन साहित्यकार व पत्रकार उन्हें ‘गांधी जी का मजनू’ कहा करते थे. गरीबी की आंच से तपे होने को लेकर उन्हें ‘गुदड़ी का लाल’ भी कहते थे. जब ‘प्रताप’ में उन्हें हर महीने 500 रुपये मिलने लगे, तो उन्होंने उसका ज्यादातर अंश असहाय परिवारों के भरण-पोषण के लिए खर्च करना आरंभ कर दिया. वर्ष 1955 के बाद के कई वर्ष भयावह कष्ट में बीते. पक्षाघात के तीन आक्रमण हुए. ऊपर से हृदयरोग, रक्तचाप और फेफड़े का कैंसर. फिर तो उनकी वाणी भी चली गयी और स्मृति भी. उनत्तीस अप्रैल, 1960 को उन्होंने अंतिम सांस ली.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel