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बदलती महिलाएं और समाज

देशभर में वैवाहिक विवादों के बढ़ते मामले न्यायालयों पर अत्यधिक बोझ डाल रहे हैं. वैवाहिक विवाद इस स्तर पर पहुंच जा रहे हैं कि पति-पत्नी के बीच समझौते की झीनी-सी संभावना भी खत्म हो जाती है. इसका कारण यह है कि एक ही मामले में घरेलू हिंसा, गुजारा भत्ता जैसी याचिकाओं का अंबार लगता जाता है. इसका नतीजा छोटे-छोटे बच्चे भुगतते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने हाल ही में एक आयोजन में वैवाहिक विवादों के बढ़ते मामलों को जिस तरह समाज के समयानुकूल न बदल पाने का नतीजा बताया है, उस पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है. न्यायमूर्ति नागरत्ना बेंगलौर में सुप्रीम कोर्ट की फैमिली कोर्ट्स कमेटी द्वारा आयोजित साउदर्न जोन रीजनल कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रही थीं, जिसका विषय था, ‘फैमिली : द बेसिस ऑफ इंडियन सोसाइटी’. उनका कहना था कि देशभर में वैवाहिक विवादों के बढ़ते मामले न्यायालयों पर अत्यधिक बोझ डाल रहे हैं. वैवाहिक विवाद इस स्तर पर पहुंच जा रहे हैं कि पति-पत्नी के बीच समझौते की झीनी-सी संभावना भी खत्म हो जाती है. इसका कारण यह है कि एक ही मामले में घरेलू हिंसा, गुजारा भत्ता जैसी याचिकाओं का अंबार लगता जाता है. इसका नतीजा छोटे-छोटे बच्चे भुगतते हैं. अलबत्ता उनका कहना था कि तलाक और वैवाहिक विवादों के निरंतर बढ़ते जाने के लिए स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता कतई जिम्मेदार नहीं है.

शिक्षा और रोजगार तक लड़कियों की तेज पहुंच, बढ़ते शहरीकरण, बढ़ती महत्वाकांक्षा और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता में वृद्धि के कारण भारतीय परिवारों का पारंपरिक ढांचा बहुत तेजी से बदल रहा है. उनके मुताबिक, महिलाओं की यह सामाजिक-आर्थिक मुक्ति स्वागतयोग्य भी है और आवश्यक भी. महिलाओं के इस रूपांतरण को समाज द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि ये महिलाएं सिर्फ अपने परिवारों के लिए नहीं कमा रहीं, बल्कि राष्ट्र के लिए भी योगदान कर रही हैं. लेकिन हमारा समाज इस बदलाव को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है. हमारे दृष्टिकोण और व्यवहार समय के अनुरूप अद्यतन नहीं हो रहे हैं. ऐसे में, पारिवारिक विवाद बढ़ रहे हैं. इस संबंध में आंकड़ा पेश करते हुए उन्होंने कहा कि बीते दशक में लगभग 40 प्रतिशत शादियां तलाक के कारण प्रभावित हुई हैं. जाहिर है, परिवार और परंपरा को प्रमुखता देने वाले भारत जैसे देश में यह आंकड़ा बहुत बड़ा है. इसका समाधान क्या है? उनके मुताबिक, भारतीय परिवारों तथा समाजों को अपना रवैया और व्यवहार बदलने की आवश्यकता है. उनके अनुसार, इसके अलावा परिवार अदालतों में दोनों पक्षों की मुलाकात के दौरान वकील की मौजूदगी मशीनी नहीं होनी चाहिए. इसके विपरीत माहौल ऐसा होना चाहिए, जिससे दोनों पक्ष अच्छी तरह बातचीत कर सकें. उनका यह भी कहना था कि अगर दोनों विवादित पक्ष एक दूसरे को समझें, एक दूसरे का सम्मान करें तथा खुद आत्मनिरीक्षण करें, तो तलाकों के मामलों में निश्चित तौर पर कमी आ सकती है.

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