Dr LP Vidyarthi : भारतीय मानवशास्त्र के निर्माताओं में से एक महान विभूति का नाम ललिता प्रसाद विद्यार्थी था. आपका जन्म 28 फरवरी, 1931 को बिहार में पटना जिला के बख्तियारपुर नामक ग्राम में हुआ था.आप लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर मानव विज्ञान की परीक्षा 1953 में पास किए. आपका स्थान सभी सफल छात्रों में सर्वश्रेष्ठ था इसके लिए लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा आपको इंद्रजीत सिंह स्वर्ण पदक प्रदान किया गया था.
डॉ एलपी विद्यार्थी 1953 ई में तत्कालीन बिहार विश्वविद्यालय, मानव विज्ञान विभाग (रांची) में व्याख्याता बने. इसी विभाग में 1958 में वे रीडर बने. जब 1960 में बिहार विश्वविद्यालय से अलग रांची विश्वविद्यालय का गठन हुआ तब उन्हें मानव विज्ञान विभाग, रांची विश्वविद्यालय का अध्यक्ष बनाया गया था. 1968 में वे प्रोफेसर बने. डॉ एलपी विद्यार्थी को फोर्ड फाउंडेशन तथा शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा परगना की सौरिया पहाड़िया जनजाति के ऊपर अनुसंधान करने के लिए फेलोशिप प्राप्त हुआ था. सन 1958 में शिकागो विश्वविद्यालय, अमेरिका द्वारा उन्हें पीएचडी की उपाधि प्रदान की गयी थी.
डॉ एलपी विद्यार्थी एक प्रतिभा संपन्न एवं कर्त्तव्य परायण मानव वैज्ञानिक थे. उन्हें अपने कर्म से विशेष लगाव था. उन्होंने अपने कर्म एवं सहयोगियों के सहयोग से मानव विज्ञान विभाग, रांची विश्वविद्यालय को यूजीसी से एडवांस सेंटर के रूप में स्थान उपलब्ध कराया . आपने इस विभाग से बहुत पहले जन्म लेने वाले कलकत्ता विश्वविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के मानवशास्त्र विभागों को अपने कर्म के आधार पर काफी पीछे छोड़ दिया था.
डॉ एलपी विद्यार्थी कई पुरस्कारों एवं छात्रवृत्तियों के विजेता मानवशास्त्रीय एवं मानव जातीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष ( 1973-78) रह चुके थे. वे कई सरकारी आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके थे जैसे भारतीय श्रम आयोग (1968), जनजातीय क्षेत्र विकास (1972) तथा भारत में आदिम जातियों की पहचान (1974). वे एक एक सफल शिक्षक, कुशल अभिवावक, तेज-तरार अनुसंधानकर्ता, स्पष्ट वक्ता एवं समाज सेवी थे. उन्होंने अनेक वृहत अनुसंधान परियोजनाओं का सफलतापूर्वक संचालन किया. उन्हें लिखित रूप प्रदान कर भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित किया था.वे 40 पुस्तकों एवं 150 शोधपत्रों के रचयिता थे . उन्होंने मानव विज्ञान की किसी भी शाखा को अछूता नहीं छोड़ा है. डॉ एलपी विद्यार्थी के अध्ययन का
संदर्भ लिए बिना मानवशास्त्रीय अनुसंधान पूरा नहीं हो सकता है.
डॉ एलपी विद्यार्थी यह मानते थे कि यदि भारत के समाज वैज्ञानिकों को सामाजिक वास्तविकताओं के बारे में संवेदनशील अंतदृष्टि प्राप्त करनी है तो उन्हें वेद उपनिषद, स्मृति, पुराण और महान महाकाव्यों जैसे प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए. शास्त्रों में मनुष्य – प्रकृति संबंध, मनुष्य – मनुष्य संबंध और मनुष्य- आत्मा संबंध जैसे विषयों पर महान ज्ञान दर्शाया गया है. भारतीय जीवनशैली के मूल तत्व चार आश्रमों, चार पुरुषार्थों, सोलह संस्कारों आदि के पारंपरिक अभ्यास में निहित है, जो आज भी एक औसत भारतीय के जीवन में एक शक्तिशाली स्थान रखते हैं.
समाज वैज्ञानिकों को भारतीय सामाजिक विचारकों जैसे कि ऋषि अरविंदो, रवीन्द्रनाथ टैगोर, राजा राम मोहन राय, विनोबा भावे, विवेकानंद और महात्मा गांधी आदि को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. उन्होंने गांधीवादी दर्शन की खोज की आवश्यकता पर जोर दिया. भारत में सामाजिक नृविज्ञान की ‘भारतीयता’ का क्या अर्थ हो सकता है इसकी पूरी समझ तक पहुंचने के लिए भारत के प्राचीन शास्त्रों और अपने मूल निवासियों की समझ अत्यंत आवश्यक है. उनके शोध प्रमुख क्षेत्र भारत की आदिवासी संस्कृति, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, शहरी – औधोगिक, राजनीतिक और क्रियाशील मानव विज्ञान, भारतीय सभ्यता, भारतीय संस्कृति का इतिहास, लोककथाएं और गांव अध्ययन में महसूस किया कि आदिवासियों के आधुनिकीकरण के लिए मूल्यांकन करना और सुझाव देना मानव विज्ञानियों का कार्य है . डॉ एलपी विद्यार्थी की प्रमुख आवधारणा में सबसे प्रमुख धार्मिक संकुल, प्रकृति- मानव- ईश्वर संकुल एवं सांस्कृतिक प्रकार का विश्लेषण है. वे अब हमारे बीच नहीं हैं. लेकिन आपकी कृति हर पीढ़ी के मानवशास्त्रियों के बीच आपको अमर बनाए रखेगी. उनका निधन एक दिसंबर 1985 को अचानक हो गया था.
(लेखक केजरीवाल प्रबंधन संस्थान, रांची के निदेशक हैं)