अब जब संयुक्त राष्ट्र के पास पृथ्वी के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए बहुत अधिक विकल्प नहीं बचे हैं, तो वह एक और उपाय के रूप में दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि हमें अपनी ऊर्जा निर्भरता को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की ओर मोड़ना चाहिए. यह बात काफी हद तक सत्य भी है कि पृथ्वी के तापमान में हुई वृद्धि के पीछे यदि कोई बड़ा कारण है, तो वह बढ़ती ऊर्जा खपत ही है. वर्तमान में दुनियाभर में कई बैठकों और सम्मेलनों का आयोजन हो रहा है, पर वे अक्सर ‘ढाक के तीन पात’ ही साबित होते हैं. हर वर्ष आयोजित होने वाले कॉप (सीओपी) सम्मेलनों में अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है.
संयुक्त राष्ट्र के पास अब केवल यही रास्ता बचा है कि वह पृथ्वी दिवस, जल दिवस, वन संरक्षण दिवस जैसे अवसरों पर दुनिया के लोगों को पर्यावरणीय संकट की गंभीरता से अवगत कराये और उन्हें वैकल्पिक ऊर्जा की दिशा में प्रेरित करे. आज यदि दुनिया के सामने सबसे बड़ी कोई चुनौती है, तो वह यही है कि हमारी ऊर्जा खपत निरंतर बढ़ रही है और इस खपत का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा आज भी कोयले जैसे प्रदूषणकारी स्रोतों से प्राप्त होता है. हालांकि अन्य वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का योगदान धीरे-धीरे बढ़ रहा है, पर मौजूदा चुनौतियों और बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं के सामने यह अब भी अपर्याप्त प्रतीत होता है. हमारे देश में भी इस दिशा में गंभीर प्रयास किये जा रहे हैं, परंतु विकास कार्यों और औद्योगिक विस्तार के कारण ऊर्जा की मांग एवं खपत स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी ही. जब तक हमारी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत कोयला रहेगा, तब तक कार्बन डाइऑक्साइड पर नियंत्रण संभव नहीं हो पायेगा. यह गैस हमारे जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है. फिर भी, यदि हम अपने ऊर्जा स्रोतों को वैकल्पिक ऊर्जा की ओर स्थानांतरित करने में सफल हो पाते हैं, तो इस संकट पर कुछ हद तक नियंत्रण अवश्य पा सकते हैं.
भारत में वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में गंभीरता से काम हो रहा है. विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रारंभ किया गया सोलर मिशन इस दिशा में एक प्रभावशाली पहल रहा है. वर्तमान में भारत की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 463 गीगावाट है, जिसमें से 201.45 गीगावाट हमें वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त हो रहा है. यह जानना संतोषजनक है कि भारत ने अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को बड़े स्तर पर वैकल्पिक स्रोतों पर स्थानांतरित करने का प्रयास किया है. भारत न केवल विकासशील देशों में सबसे बड़ा उपभोक्ता है, बल्कि अब एक बड़ा उत्पादक भी बन चुका है. वर्तमान में हमारी वैकल्पिक ऊर्जा की कुल संभावित क्षमता लगभग 452.69 गीगावाट है और यदि हम इसका अधिकतम उपयोग कर सकें, तो कोयले पर हमारी निर्भरता को कम किया जा सकता है. भारत में वैकल्पिक ऊर्जा के सात प्रमुख स्रोत हैं- पवन ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, जल ऊर्जा, सौर ऊर्जा, महासागरीय ऊर्जा, जैव ऊर्जा और हाइड्रोजन ऊर्जा. बीते कुछ वर्षों में इन पर हमारी निर्भरता बढ़ी है. यह भी देखा गया है कि हमारी वैकल्पिक ऊर्जा पर निर्भरता पांच प्रतिशत की दर से बढ़ रही है. इसी प्रकार, जैव ऊर्जा में भी हमारी निर्भरता 6.5 प्रतिशत तक बढ़ गयी है और इसका उत्पादन भी अब देश में ही हो रहा है. भारत के कुछ प्रमुख राज्यों- राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र- ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है. वहीं दक्षिण भारत में पवन ऊर्जा ने भी निरंतर विद्युत उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.
भारत की कुल ऊर्जा आवश्यकताएं वर्तमान में 1.14 गीगाटन तेल समतुल्य (जीटीओइ) हैं और 2020 में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत लगभग आठ टन थी, जो एशिया के औसत के करीब मानी जाती है. हाल ही में हमारी ऊर्जा आवश्यकता में लगभग 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है. यदि हम अपनी प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत देखें, तो यह 1.35 किलोवाट है, जो पूर्व की तुलना में 45.8 प्रतिशत अधिक है. हमारी ऊर्जा निर्भरता अब परमाणु, जल, पवन और सौर जैसे अन्य स्रोतों की ओर भी निरंतर बढ़ रही है, और इसमें तकनीक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गयी है. सरकार भी इसे लेकर गंभीर है और सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है कि अधिकाधिक ऊर्जा वैकल्पिक स्रोतों से प्राप्त की जा सके. यह स्वीकारना ही होगा कि दुनिया के मौजूदा हालात के पीछे सबसे बड़ा कारण अनियंत्रित ऊर्जा खपत है. आज के जीवन में ऊर्जा एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है. पिछले तीन दशकों में ऊर्जा खपत में भारी वृद्धि हुई है और हमने अपनी सुविधाओं की पूर्ति के लिए ऐसे संयंत्रों पर निर्भरता बढ़ा दी है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. समाधान की दिशा में यदि हमें ठोस कदम उठाने हैं, तो एक ओर जहां हमें वैकल्पिक ऊर्जा का अधिकतम उपयोग करना होगा, वहीं दूसरी ओर व्यक्तिगत स्तर पर ऊर्जा की खपत में भी अनुशासन लाना होगा. यही वह मार्ग है जिससे हम पृथ्वी की बिगड़ती परिस्थितियों को नियंत्रित करने में एक सार्थक कदम आगे बढ़ा सकते हैं, और इस प्रयास में हम सभी की सहभागिता अनिवार्य होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)