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बढ़ेंगे सामाजिक खर्चे!
आगामी केंद्रीय बजट में कुछ खास सुधारों की घोषणा की उम्मीद है. रिपोर्टों के अनुसार, नीति आयोग ने सामाजिक खर्च में तीन गुना बढ़ोतरी, बड़ी सब्सिडी में कटौती और 10 फीसदी आयकर की सीमा सात लाख रुपये वार्षिक आमदनी तक बढ़ाने की सिफारिश की है. हालांकि, अभी यह कहना मुश्किल है कि इन सिफारिशों को […]
आगामी केंद्रीय बजट में कुछ खास सुधारों की घोषणा की उम्मीद है. रिपोर्टों के अनुसार, नीति आयोग ने सामाजिक खर्च में तीन गुना बढ़ोतरी, बड़ी सब्सिडी में कटौती और 10 फीसदी आयकर की सीमा सात लाख रुपये वार्षिक आमदनी तक बढ़ाने की सिफारिश की है.
हालांकि, अभी यह कहना मुश्किल है कि इन सिफारिशों को किस हद तक बजट प्रावधानों में शामिल किया जायेगा, पर सरकार के इस महत्वपूर्ण सलाहकार संस्था के विचारों के संभावित असर से इनकार नहीं किया जा सकता है. खबरों के मुताबिक आयोग ने सलाह दी है कि बड़ी सब्सिडियों में कमी कर बचायी गयी राशि और अतिरिक्त राजस्व की कमाई को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में निवेशित किया जाना चाहिए. भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जो शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर बहुत धन खर्च करते हैं. नीति आयोग के ये सुझाव सरकार की वित्तीय नीति की दिशा से मेल खाते हैं.
वर्ष 2016-17 के बजट में खाद्य, फर्टिलाइजर और पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी में चार फीसदी से अधिक की कटौती कर सब्सिडी की राशि को 2015-16 के 2.41 लाख करोड़ से 2.31 लाख करोड़ तक लाया गया था. हर बजट में आयकर की सीमा घटाने-बढ़ाने का मुद्दा महत्वपूर्ण होता है. सरकार आयकर देनेवालों की संख्या बढ़ाने के लिए भी प्रयासरत है.
नीति आयोग का मानना है कि 2.5 लाख रुपये की वार्षिक आय की न्यूनतम सीमा को कायम रखते हुए इस श्रेणी में 10 फीसदी कर की अधिकतम सीमा पांच लाख से बढ़ाकर सात लाख रुपये कर देना चाहिए, ताकि छूट की सीमा बढ़ाने की जगह अधिक-से-अधिक लोगों को कर देने के लिए प्रेरित किया जा सके. कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए सिंचाई परियोजनाओं पर ध्यान देने, भूमि लीज कानूनों में सुधार करने व आधुनिक बीजों के उपयोग को बढ़ावा देने के सुझाव भी अहम हैं. विकास के लिए जरूरी है कि देश में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर सृजित किये जायें. आयोग ने इसे बजट का केंद्रीय विषय-वस्तु बनाने का सुझाव दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में आर्थिक सुधारों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया है. स्वस्थ और शिक्षित देश ही विकास को स्थायी आधार और समुचित गति दे सकता है. देश की आबादी का बड़ा हिस्सा बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. उम्मीद है कि सामाजिक खर्च में वृद्धि के सुझावों को सुधार योजनाओं के साथ संयोजित कर बजट तैयार किया जायेगा जिसमें समावेशी विकास को सुनिश्चित करनेवाली नीतियां और घोषणाएं होंगी.
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