भारत में सत्ताधारी पार्टियों द्वारा चुनावी साल के बजट में अपने चुनावी हितों का ध्यान रखने की परंपरा रही है. इसी परिपाटी का पालन यूपीए-2 के आखिरी रेल बजट में भी किया गया है. पहली बार रेलमंत्री बने मल्लिकार्जुन खड़गे ने उम्मीद के मुताबिक ही यात्री किराये में फिलहाल कोई वृद्धि नहीं की है. साथ ही, महज चार महीनों के लिए अंतरिम रेल बजट होने के बावजूद इसमें 72 नयी ट्रेनें चलाने की घोषणा है, जबकि पटरियां मौजूदा ट्रेनों के बोझ से ही त्रस्त हैं.
रेलवे के आधुनिकीकरण और नयी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से संबंधित कोई ठोस प्रस्ताव न देकर मंत्री ने इसमें पिछली उपलब्धियों का बखान ही ज्यादा किया है. विभिन्न उपशीर्षकों के अंतर्गत गिनायीं ज्यादातर उपलिब्धयों के साथ भविष्य की रूपरेखा पेश करने की जरूरत नहीं समझी गयी. हालांकि लीक से हट कर किये गये एक निर्णय में किराया और मालभाड़ा निर्धारित करने के संबंध में सरकार को सलाह देने के लिए स्वतंत्र रेल टैरिफ प्राधिकरण की स्थापना की घोषणा की गयी है. इसमें तर्क तो पारदर्शिता बढ़ाने का है, पर जानकारों का मानना है कि इसकी आड़ में रेलवे समय-समय पर यात्रियों की जेब ढीली कर सकता है.
इसी कड़ी में नयी शुरू होनेवाली 17 प्रीमियम ट्रेनों में भी मांग के मुताबिक किराया आसमान छूता जायेगा. यह एक हकीकत है कि सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल ने पिछले कुछ वर्षों में रेलवे के साथ यात्रियों के संपर्क को सुगम बनाया है. अब बड़ी संख्या में लोग स्टेशनों के काउंटर पर घंटों लाइन में न लग कर अपने घर या दफ्तर से ही टिकट बुक कर रहे हैं. परंतु इसमें व्यस्त समय में सिस्टम स्लो होने या लिंक फेल होने के कारण उन्हें अकसर निराशा हाथ लगती है. इंटरनेट पर ट्रेनों के परिचालन की सूचना भी घंटों तक अपडेट नहीं हो पाती.
इस बेहद जरूरी सिस्टम को सुधारने की दिशा में कोई ठोस प्रयास करने की बजाय मंत्री का भाषण यहां भी इस सिस्टम की कामयाबी बताने तक सीमित रहा. हालांकि प्रमुख स्टेशनों पर यात्री विश्रम गृह की ऑनलाइन बुकिंग शुरू करना अच्छी पहल है, लेकिन यात्रियों को मिल रही सुविधाओं की बदतर हालत पर बजट खामोश है. कुल मिला कर, चुनावी चश्मे से तैयार यूपीए-2 के आखिरी रेल बजट में रेलवे के लिए भविष्य की दृष्टि का अभाव निराश करता है.