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सत्या नडेला की बड़ी चुनौती!

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।। अर्थशास्त्री नडेला जैसे भारतीय के लिए विदेशों में ऊंचे पद पर पहुंचना छोटी चुनौती है. बड़ी चुनौती मेजबान देश की आसुरी संस्कृति को तोड़ कर नयी संस्कृति गढ़ना है. माइक्रोसॉफ्ट के चरित्र का परिवर्तन करना ही नडेला की चुनौती है.भारतीय मूल के सत्या नडेला को माइक्रोसॉफ्ट कंपनी का मुख्याधिकारी नियुक्त […]

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।

अर्थशास्त्री

नडेला जैसे भारतीय के लिए विदेशों में ऊंचे पद पर पहुंचना छोटी चुनौती है. बड़ी चुनौती मेजबान देश की आसुरी संस्कृति को तोड़ कर नयी संस्कृति गढ़ना है. माइक्रोसॉफ्ट के चरित्र का परिवर्तन करना ही नडेला की चुनौती है.भारतीय मूल के सत्या नडेला को माइक्रोसॉफ्ट कंपनी का मुख्याधिकारी नियुक्त किया गया है, यह प्रसन्नता का विषय है. माइक्रोसॉफ्ट कंपनी सॉफ्टवेयर को पेटेंट संरक्षण दिलाने में अग्रणी है. यह सॉफ्टवेयर पर अपना एकाधिकार बनाना चाहती है. माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों द्वारा बिजनेस सॉफ्टवेयर अलायन्स की स्थापना की गयी है. इस संगठन का कहना है कि सॉफ्टवेयर की तस्करी से कंपनियों को प्रतिवर्ष 11 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है. ऐसा ही तर्क अमेरिका जैसे अमीर देशों की सरकारें देती आयी हैं.

इन सभी का कहना है कि तस्करी रोकने से सॉफ्टवेयर कंपनियों को लाभ अधिक होगा, वे नये उत्पादों के सृजन में निवेश कर सकेंगे और जनता को नये उत्पाद हासिल होंगे, जिनके उपयोग से उनका कल्याण होगा. जैसे माक्रोसॉफ्ट ने विंडोज एक्सपी बनाया. इसके उपयोग से करोड़ों लोग रिसर्च, लेखन, मूवी बनाना इत्यादि कर रहे हैं. यदि माइक्रोसॉफ्ट के शुरुआती विंडोज 93 की तस्करी होती तो कंपनी को लाभ न्यून होते और विंडोज एक्सपी का इजाद नहीं हो पाता. तब करोड़ों लोगों को घटिया विंडोज 93 से काम करना पड़ता और उनका कल्याण बाधित होता.

इस तर्क में आंशिक सत्य है. सच यह है कि सृजन पर कंपनियों का एकाधिकार नहीं होता है. सामान्यजन भी सृजन करते हैं. विंडोज की तरह मुफ्त मिलनेवाला एक सॉफ्टवेयर है जिसका नाम है लाइनक्स. इसे ओपन सोर्स कहा जाता है. कोई भी व्यक्ति इस सॉफ्टवेयर को इंटरनेट से डाउनलोड करके इसका उपयोग कर सकता है. व्यक्ति इसके प्रोग्राम में अपनी जरूरत के अनुसार परिवर्तन कर सकता है. जैसे यदि आप चाहें कि विंडोज द्वारा एक फोल्डर में से फाइलों को छांट कर कॉपी किया जाये तो आप ऐसा परिवर्तन स्वयं नहीं कर सकते हैं. जबकि लाइनक्स में आप ऐसा प्रोग्राम जोड़ सकते हैं. आज लाइनक्स उपयोग करनेवालों का एक विशाल अंतरराष्ट्रीय समुदाय बन गया है. ये लोग लाइनक्स के प्रोग्राम में सुधार करते हैं और एक-दूसरे को मुफ्त उपलब्ध कराते हैं.

प्रथम दृष्ट्या प्रतीत होता है कि पेटेंटीकरण से सृजन में तीव्रता आती है. जैसे विंडोज के 93, 95, 97, एक्सपी प्रोग्राम लगभग 2-2 वर्ष के अंतराल से बाजार में आये और प्रत्येक प्रोग्राम पिछले से उन्नत था. इतनी तीव्रता से लाइनक्स में सृजन नहीं हुआ प्रतीत होता है. परंतु विंडोज एक्सपी के बाद माइक्रोसॉफ्ट द्वारा सृजन में ठहराव आ गया है. ऐसे में पेटेंट जन कल्याण के लिए पूर्णतया हानिप्रद हैं. माइक्रोसॉफ्ट स्वयं विंडोज में सुधार नहीं कर पा रही है और पेटेंटीकृत होने के कारण दूसरे लोग भी इसमें सुधार नहीं कर पा रहे हैं.

सॉफ्टवेयर की नकल से जनकल्याण ज्यादा हासिल होता है, क्योंकि सृजनात्मक प्रयासों का फैलाव होता है. प्रश्न है कि लाइनक्स जैसे ओपन सॉफ्टवेयर का अधिक उपयोग क्यों नहीं हो रहा? यदि यह मुफ्त है और इसमें सुधार किया जा सकता है, तो लोग इसका उपयोग क्यों नहीं कर रहे हैं? यह प्रश्न डॉक्टर और मरीज जैसा है. डॉक्टर जानता है कि बीपी का नाप कैसे किया जाये. वह सस्ते परंतु जटिल मरकरी के उपकरण का उपयोग कर सकता है. परंतु सामान्य नागरिक के लिए इलेक्ट्रॉनिक मशीन ही सुलभ होती है. इसी प्रकार सॉफ्टवेयर इंजीनियर मुफ्त लाइनक्स का उपयोग करते हैं, जबकि सामान्य नागरिक को विंडोज माफिक पड़ता है.

यानी सामान्य नागरिक तक उन्नत तकनीक को पहुंचाने का कार्य कंपनियों द्वारा किया जा सकता है. इसके लिए पेटेंट संरक्षण देना चाहिए. लेकिन संरक्षण का यह उचित स्तर क्या हो, इसे निर्धरित करना कठिन है. सुझाव है कि पेटेंट कानून को डब्ल्यूटीओ से बाहर कर देना चाहिए. बौद्घिक संपदा की नकल करने का अधिकार देना या न देना यह देशों के विवेक पर छोड़ देना चाहिए. कुछ देश पेटेंट अपनायेंगे. इनसे इन-हाउस सृजन एवं तकनीकों का सरलीकरण होगा. दूसरे देश नकल करने की स्वीकृति देंगे. इससे तकनीकों का विस्तार एवं उत्पादों का फैलाव होगा. दोनों के सम्मिलित प्रभाव से वैश्विक स्तर पर जन कल्याण हासिल होगा.

सत्या नडेला ने कहा है कि वे नये उत्पादों को बनाने पर विशेष ध्यान देंगे. स्वागत है, परंतु नये उत्पादों को बनाने का उद्देश्य क्या है? उद्देश्य इसे सस्ते में बेच कर और इसकी नकल करने की छूट देकर इन उत्पादों का फैलाव करना और जनहित हासिल करना है या इन पर पेटेंट कानून का शिकंजा कस कर जनता को महंगा माल बेचना है. नडेला जैसे भारतीय के लिए विदेशों में ऊंचे पद पर पहुंचना छोटी चुनौती है. बड़ी चुनौती मेजबान देश की आसुरी संस्कृति को तोड़ कर नयी संस्कृति गढ़ना है. माइक्रोसॉफ्ट का अभी तक का चरित्र आसुरी रहा है. इस कंपनी ने नये उत्पाद बनाये हैं और सूचना क्रांति लायी है, परंतु इस क्रांति पर कंपनी का शिकंजा कसे रखने का भी प्रयास किया है. माइक्रोसॉफ्ट के चरित्र का परिवर्तन करना ही नडेला की चुनौती है.

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