झारखंड सरकार ने नगरपालिका संपत्ति कर (निर्धारण, संग्रहण और वसूली) नियमावली 2013 को मंजूरी दे दी है. इसकी खास बात यह है कि अब प्रदेश के शहरों में खाली पड़ी निजी जमीन के लिए भी टैक्स की अदायगी करनी पड़ेगी. यह सही है कि शहरों के विकास के लिए धन की जरूरत है और नये नियमों से राजस्व उगाही बढ़ोतरी होगी.
लेकिन सवाल उठता है कि क्या सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं बनती है कि वह शहर में बसे लोगों के लिए जरूरी सुविधाओं की उपलब्धता तय करे. क्या प्रदेश के शहर आधुनिक मानकों पर खरे उतरते हैं? शहरी इलाकों में पेयजल, स्वच्छता, सीवरेज, पार्किग, पार्क, स्वास्थ्य सुविधाओं व मनोरंजन केंद्रों की समुचित व्यवस्था जैसे कई मानक हैं, जो आज अत्यावश्यक बन गये हैं. प्रदेश के शहरों में काफी प्रदूषण है. लोगों के लिए न तो पीने का साफ पानी पर्याप्त मात्र में उपलब्ध कराया जाता है और न ही वे ताजी हवा में सांस ले पा रहे हैं.
राजधानी रांची में बहुत ज्यादा प्रदूषण है और वहां देश की राजधानी दिल्ली की तर्ज पर प्रदूषण से निपटने की जरूरत महसूस की जा रही है. ऐसे हालात में जहां सरकार को शहरी लोगों को तमाम जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने पर विशेष ध्यान देना चाहिए, वहीं शहरों में अंधाधुध निर्माण और मानकों व नियमों की अनदेखी कर धड़ल्ले से चल रहे निर्माण कार्यो पर अंकुश लगाने की दिशा में सख्ती से काम करने की जरूरत है. कर व विभिन्न सेवाओं के लिए शुल्क देने के बावजूद यदि सरकार लोगों के लिए व्यवस्था नहीं कर पाती, तो यह उसकी विफलता ही मानी जायेगी.
गृह कर, जल कर आदि की समय पर पूरी वसूली करके राजस्व बढ़ाया जा सकता है. लेकिन लोगों के लिए इन सुविधाओं को सुलभ तरीके से उपलब्ध कराना भी सरकार की जिम्मेवारी बनती है. शहरी इलाकों के विकास के लिए योजनाएं बनाते समय समग्र दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है. बड़े-बड़े मॉल, ऊंची-ऊंची इमारतें, अपार्टमेंट, कॉलोनियां आदि के निर्माण की अनुमति देते समय उनके दुष्प्रभावों की भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए. रोजगार और सुख-सुविधाओं की तलाश में शहरों की ओर बढ़ते पलायन ने शहरों में निर्माण और विकास कार्यो को चुनौतीपूर्ण बना दिया है.