डावांडोल विधि-व्यवस्था किसी भी राज्य के लिए शुभ नहीं है. असुरक्षा की भावना के बीच खुशहाल भविष्य की उम्मीद नहीं की जा सकती है. समाज को टूटने, बंटने, बिखरने से बचाने के लिए असामाजिक तत्वों पर कड़ी नजर रखना जरूरी है. यह तभी संभव हो सकता है, जब कानून व पुलिसिंग व्यवस्था मजबूत हो. लेकिन जिस तरह से झारखंड में थानेदारों का एक साल बीतने से पहले ही तबादला कर दिया जा रहा है, उससे तो यही प्रतीत होता है कि राज्य में पुलिसिंग व्यवस्था पर राजनीतिक व्यवस्था हावी हो गयी है. जिलों में पुलिस अधीक्षक बदलने के साथ ही थानेदारों पर तलवार लटक जाती है. मंत्री-विधायक ही नहीं, उनके रिश्तेदार भी अपनी पसंद-नापसंद के थानेदार की पोस्टिंग कराने में लग जाते हैं.
इससे कानून-व्यवस्था प्रभावित होती है, अनुसंधान प्रभावित होता है. यह जरूरी है कि अच्छा काम नहीं करनेवाले थानेदार बदले जायें, लेकिन अक्सर यह देखा जाता है कि वैसे थानेदारों के कामकाज में दखलअंदाजी की जाती है जो पूरी तन्मयता व ईमानदारी के साथ काम करते हैं. पुलिस में दारोगा की भरती के वक्त शपथ दलायी जाती है कि वे लोगों की सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से जिम्मेवार होंगे. इस जिम्मेवारी को तब ब्रेक लग जाता है, जब उस पर राजनीतिक दबाव बढ़ जाता है. अपराधियों को छोड़ने की पैरवी की जाती है.
पैरवी नहीं मानने पर तबादले की धमकी जाती है. झारखंड में जिस तरह से पुलिस अधिकारियों की बदली कर दी जाती है उससे इस बात को बल मिलता है कि अपराध को बढ़ाने में नेताओं का भी हाथ है. यूं तो वर्तमान राजनीति में स्वच्छ छवि के नेता कम ही आते हैं. ऐसे नेता जिस भी राजनीतिक दल में हों, वे अपनी राजनीति चमकाने के लिए पुलिस को हथियार बनाते हैं. इससे पुलिस पर दबाव पड़त है और उनका काम प्रभावित होता है. जनता की सही मायने में सुरक्षा के लिए, सरकार को पुलिस को काम करना करने की छूट अवश्य देनी चाहिए. हां, मॉनिटरिंग जरूरी है. ऐसा नहीं है कि पुलिस में भी सभी स्वच्छ छवि के होते हैं. वे भी कभी-कभी किसी खास को फायदा दिलाने के लिए अनुसंधान को प्रभावित कर देते हैं. अतएव सरकार व पुलिस दोनों में पूरी ईमानदारी की जरूरत है.