पंकज मुकाती
संपादक, प्रभात खबर पटना
ऑस्ट्रेलिया से सेमीफाइनल में हार के बाद धौनी ने दिखा दिया की यूं ही उन्हें कैप्टन कूल नहीं कहा जाता है. हार को शालीनता से स्वीकारना ही असली खिलाड़ी की पहचान है. हमने इसी क्रि केट में कई नामी चेहरों को हार पर खीझते, झल्लाते, पैर पटकते देखा है.
संन्यास! अभी मैं इतना बूढ़ा भी नहीं हुआ हूं. संन्यास लेने की अभी मेरी उम्र नहीं. फिट भी हूं और खेलूंगा भी. 33 साल के भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धौनी का यह जवाब है. उन तमाम लोगों को जो चाहते हैं, धौनी मैदान छोड़ दें. सब जानते हैं, धौनी ऐसे खिलाड़ी हैं, जो मैदान मारने में माहिर हैं, हारी बाजी जीतने का हुनर जानते हैं.
संन्यास, शर्मिदगी, दबाव, डर, हार के बहाने इस शख्स से बेहद दूर हैं. यही खूबी धौनी को बड़ा बनाती है. इसी कारण वे सिर्फ टीम इंडिया के ही नहीं विरोधी टीमों के लिए भी कई मामलों में कप्तान हैं. दुनिया के क्रिकेट खेलनेवाले मुल्क धौनी के दिमाग, मैदानी जमावट और सबसे बड़ी बात बेहतर इंसान होने को सलाम करते हैं.
ऑस्ट्रेलिया से सेमीफाइनल में हार के बाद उन्होंने दिखा दिया कि यूं ही उन्हें कैप्टन कूल नहीं कहा जाता है. हार को शालीनता से स्वीकारना ही असली खिलाड़ी की पहचान है. हमने इसी क्रि केट में कई नामी चेहरों को हार पर खीझते, झल्लाते, पैर पटकते देखा है.
इनमें से कई इन दिनों कमेंट्री बॉक्स में संयम का पाठ पढ़ाते नजर आते हैं. धौनी ने हार के बाद किसी पर दोष नहीं डाला. विराट कोहली के गलत शॉट और अनुष्का शर्मा को लेकर उठे सवालों को पूरी तरह खारिज किया. उन्होंने साफ कहा मैं तिल का ताड़ नहीं बनाता, आप लोग भी मत बनाइये. सही भी है. आखिर क्यों हम हर हार के बाद संन्यास मांगने लगते हैं. अगर ऐसे संन्यास होने लगते, तो आज देश की हर गली में एक संन्यासी क्रि केटर नजर आता. हमें नहीं भूलना चाहिए, इसी टीम और नेतृत्व के साथ हमने बड़े मैच जीते हैं. यही धौनी हैं, जिनके नेतृत्व में हम विश्व विजेता बने. टी-20 से लेकर सारे फॉर्मेट में हमारा दबदबा रहा है. वनडे में अपनी कप्तानी में जीत का शतक लगानेवाले धौनी ही है.
कोई टीम दुनिया में अपराजेय नहीं. धौनी को भारतीय क्रि केट का स्वरूप बदलने के साथ-साथ इसे घर-घर में क्रि केट की उम्मीदें जगानेवाला खिलाड़ी भी कहा जा सकता है. 2007 विश्व कप की करारी हार के बाद लोगों की नजरों से गिर चुके क्रि केटर और खेल के प्रति घटती दिलचस्पी के दौर में धौनी ने टीम को संभाला. पहले टी-20 फिर 2011 में विश्व विजेता बना कर भारतीय क्रि केट में फिर विश्वास लौटाया. कपिल देव के बाद वे पहले ऐसे कप्तान बने, जिसने हमें कप दिलवाया. कपिल और धौनी कई मामलों में एक सरीखे हैं. कपिल ने क्रि केट को आम आदमी तक पहुंचाया छोटे शहरों के युवाओं में क्रि केटर बनने का जोश पैदा किया. पर रईसी और अपनी मस्ती में डूबे क्रि केटरों को यह पसंद नहीं आया. भारतीय क्रिकेट 87 के बाद फिर बड़े लोगों का खेल नजर आने लगा. कुछ खिलाड़ी टीम में होते, पर वे कभी हीरो नहीं बन पाये.
कपिल की तरह ही धौनी में बड़े फैसले लेने, किसी भी टीम से खुद को कमजोर न मानने का साहस दिखा. सौरव गांगुली को छोड़ कर अब तक के भारतीय कप्तानों में कोई भी मैदान में धौनी या कपिल जैसा जीत के प्रति भूखा नहीं दिखायी दिया. गांगुली इसलिए थोड़ा नीचे हैं, क्योंकि उनमें जोश तो खूब था, पर वे मैच में पकड़ ढीली होने पर अकसर आपा खो देते थे. धौनी इस मामले में सर्वश्रेष्ठ हैं कि जीत-हार दोनों में एक से बने रहते हैं.
धौनी ने रांची जैसे छोटे शहर से आकर जो मुकाम हासिल किया, वह काबिल-ए-तारीफ है. धौनी के कारण आज छोटे शहरों के युवाओं की नयी पौध तैयार हो रही है. ड्रेसिंग रूम का माहौल बदल रहा है. दस साल पहले के भारतीय ड्रेसिंग रूम में खिलाड़ियों के बीच सीनियर-जूनियर, छोटे-बड़े शहरों की दूरी साफदिखती थी.
आज वह बात नहीं है. पूरी टीम एक दिखती है. कप्तान और खिलाड़ियों के बीच एक अपनेपन का रिश्ता दिखता है. धौनी ने सिर्फ ड्रेसिंग रूम ही नहीं पूरे देश को जोड़ा है. यह टीम वाकई टीम इंडिया दिखती है. इसके पहले तक इंडियन टीम कुछ राज्यों की टीम दिखायी देती थी.
दिलचस्प बात है कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ धौनी ने भारतीय टीम की तरफ से सबसे बड़ा स्कोर किया. उनकी पारी के दौरान सुनील गावस्कर ने कई बार कहा धौनी का बेहद खराब शॉट, वे यह कहने से भी नहीं चुके कि आजकल क्रि केट में अजीबोगरीब शॉट मारे जा रहे हैं. पर रन बन रहे हैं, इसलिए कोई भी बैट्समैन बड़ा हो जा रहा है. आज भारतीय टीम के सीइओ बने रवि शास्त्री ने खुद धौनी को 2007 में कप्तानी सौंपे जाने का विरोध किया था. धौनी के नेतृत्व वाली युवा टीम का मजाक बनाया था.
बाद में वही टीम टी-20 की विजेता बनी, कप के साथ धौनी ने शास्त्री से कहा आपने तो हमें खारिज कर दिया था. आपको गलत साबित कर हमें खुशी हो रही है. शास्त्री सिर्फ खिसियानी हंसी चेहरे पर लाकर खामोश हो गये. कोई भी हार, कोई भी जीत, कोई भी रिकॉर्ड आखिरी नहीं होता. धौनी अभी कई और लोगों को खारिज करना बाकी है. खेलते रहो. देखते रहो, अभी बहुत क्रि केट बाकी है दोस्तों!