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चीटिंग करावे के सीखीं पप्पू के पापा!

कुणाल देव प्रभात खबर, जमशेदपुर घंटी बजने के साथ ही सभी छात्र-छात्राओं से कॉपियां ले ली गयीं. तीन घंटे तक एक ही सीट पर बैठ कर मेहनत से नकल उतारने वाले छात्र-छात्राओं के अभिभावक परीक्षा केंद्र के बाहर एक हाथ में समोसा और दूसरे हाथ में ठंडा लेकर होनहारों के आने का इंतजार कर रहे […]

कुणाल देव
प्रभात खबर, जमशेदपुर
घंटी बजने के साथ ही सभी छात्र-छात्राओं से कॉपियां ले ली गयीं. तीन घंटे तक एक ही सीट पर बैठ कर मेहनत से नकल उतारने वाले छात्र-छात्राओं के अभिभावक परीक्षा केंद्र के बाहर एक हाथ में समोसा और दूसरे हाथ में ठंडा लेकर होनहारों के आने का इंतजार कर रहे थे.
होनहार आते और समोसा व ठंडा को मुंह बिचका कर पकड़ लेते. अपने होनहारों के अंदाज से अभिभावक समझ जाते कि सेवा में कमी रह गयी है और तितली की तरह उड़ कर ऑमलेट तथा जूस भी ले आते. आधे से अधिक होनहार परीक्षा केंद्र से बाहर आ गये, लेकिन पप्पू का कोई पता नहीं था. पप्पू के पापा पसीने से तर हो रहे थे.
समोसा व ठंडा थामे-थामे उनका हाथ भी दर्द करने लगा था. ठेला पर समोसा और ठंडा रख कर थोड़ी देर दम लेना चाहते थे कि पप्पू अपने मित्र नटवर के साथ हांफते हुए तेजी से आता दिखायी दिया. वह थोड़ा आगे बढ़ गये और बेटे को सोमसा तथा ठंडा देने लगे, लेकिन पप्पू तो जैसे गुस्से से पागल हो रहा था.
समोसा और ठंडा का तिरस्कार करते हुए बोला-‘रहे दीं, रउरा ले कुछ ना होखी. परीक्षा दिआवे आइल बानीं और समोसा-ठंडा पहुंचा के समझ तानी कि काम सध गइल. लगता, रउवा चलते हम फिर फेल हो जाइब. दूसर गाजिर्यन के देखीं. बुढ़ापा में भी दीवार फांद-फांद के खुदे चिट पहुंचाव तारे और रउरा सिपहिया के भरोसे बैइठल बानीं.’ ‘अरे दम धर पप्पू. का भइल? कुछ बतइब तबे न पता चली’, पप्पू के पापा ने पुचकारते हुए कहा. इसके बाद तो पप्पू का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.
भोजपुरी से सीधे खड़ी हिन्दी पर उतर आया, ‘आपके पुचकारने से हम मैट्रिक पास नहीं न करेंगे? हमको पास कराना है तो चीटिंग कराना सीखिए. कउनो बढ़िया मास्टर से सेटिंग करिये. फिर पुर्जा को फोटोस्टेट वाला से छोटा करवाइए और खुदे आके हमको खिड़की से दीजिए. नहीं तो आज की तरह हम उत्तर की जगह बाजार वाला लिस्ट उतार आयेंगे. जरा बताइए, कहां से सीखे हैं अइसे चीटिंग कराना? कंजूसी के भी हद है भाई.
बाजार से सौदा लाने वाली पर्ची के पीछे क्वेश्चन का उत्तर लिख के भिजवा देते हैं और बताते भी नहीं हैं. ऐसे में धोखा हो गया. ज्यामिति के उत्तर की जगह पर बाजार की पर्ची उतार के चल आये.’ ‘अरे तो देख के न लिखे के चाहिये था बाबू’, पप्पू के पापा ने कहा. अब तो पप्पू बिफर पड़ा, ‘अब ज्यादा मत बोलिए, वरना ठीक नहीं होगा. कह दे रहे हैं. एक तो पुर्जा पहुंचावे में गलती करते हैं और ऊपर से बुद्धि बघार रहे हैं.
आपको कुछ पता भी है. परीक्षा में सांस लेवे के भी टाइम नहीं मिलता है. पांच-पांच गो सवाल के उत्तर देना होता है. हाथ दुखाने लगता है. पुजिर्ये चेकते रहेंगे, तो उत्तर कब लिखेंगे. जरा सीरियस हो जाइए. एही मौका है. अगर परीक्षा में फेल हो गये न, तो सिपाही वाला दौड़-धूप सब बेकार हो जाएगा. तिलक-दहेज के तो बाते मत सोचिए.’

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