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जरूरी हैं सुधार

भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट और बढ़ती मुद्रास्फीति के मद्देनजर सुधारों की गति तेज करने की चर्चा भी जोर पकड़ने लगी है. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी कहा है कि संरचनात्मक मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है. इस चर्चा में कुछ बातों का ख्याल भी रखा जाना चाहिए. जैसा कि गवर्नर ने […]

भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट और बढ़ती मुद्रास्फीति के मद्देनजर सुधारों की गति तेज करने की चर्चा भी जोर पकड़ने लगी है. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी कहा है कि संरचनात्मक मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है.

इस चर्चा में कुछ बातों का ख्याल भी रखा जाना चाहिए. जैसा कि गवर्नर ने कहा है, अभी ऐसा लगता है कि खाद्य मुद्रास्फीति अल्पकालिक है और आगे इसके घटने की उम्मीद है, लेकिन इसे लेकर आश्वस्त होने में कुछ समय लगेगा.

इस महीने के शुरू में रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरें कम करने के निर्णय को स्थगित करने के पीछे यह भी एक वजह थी. हमारे केंद्रीय बैंक को यह भी देखना है कि क्या अर्थव्यवस्था में कमी कहीं चक्रीय तो नहीं है. अक्सर देखा गया है कि बढ़त के लंबे दौर के बाद कुछ अंतराल के लिए आर्थिक वृद्धि मंद पड़ जाती है और फिर गति पकड़ने लगती है.

इस उतार-चढ़ाव में घरेलू कारकों के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार की हलचलों की भी अहम भूमिका होती है. बहरहाल, गवर्नर की यह सलाह बहुत महत्वपूर्ण है कि वर्तमान गिरावट की जो भी श्रेणी हो, इस मंदी को कम करने के लिए वित्तीय व मौद्रिक संस्थाओं को पहलकदमी करनी चाहिए. इस वर्ष बजट पेश होने के बाद सरकार अनेक फौरी राहतें दी हैं और वित्त मंत्री ने भरोसा दिलाया है कि कुछ और जरूरी उपायों की घोषणा जल्दी होगी. कमजोर आर्थिकी चिंताजनक है और सुधारों की निरंतरता भी जरूरी मांग है, परंतु इस सच्चाई को भी समझा जाना चाहिए कि आर्थिक सुधार कोई खिड़की खोलने या बंद करने जैसी आसान प्रक्रिया नहीं होती है. ऐसा नहीं होता है कि बस सरकार ने चाह ले और संरचनात्मक बदलाव हो जाएं. बीते कुछ सालों में ऐसे अनेक कदम उठाये गये हैं, जिनसे अर्थव्यवस्था में सुगमता और पारदर्शिता बढ़ी है. दिवालिया कानून से बैंक कर्जे की वसूली आसान होने तथा आर्थिक गतिविधियों के सुचारू होने में मदद मिलने के साफ संकेत हैं. वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली ने अप्रत्यक्ष करों की श्रेणियों को सौ से घटा कर पांच कर दिया है और करदाताओं की संख्या को दोगुना कर दिया है. श्रम कानूनों में व्यापक फेर-बदल की तैयारी पूरी हो चुकी है.

बोझ बनी परिसंपत्तियों और व्यापारिक विवादों के निपटारे के तौर-तरीके में सुधार जारी हैं. धीमे विकास के लंबे दौर और उथल-पुथल की विरासत से निकल बड़ी अर्थव्यवस्था बनने एवं वृद्धि को लगातार जारी रखने के सिलसिले में ठहराव व गतिरोध के चरण भी आते हैं. ऐसे में हमें अब तक के सुधारों और आगामी प्रस्तावों के अमल के परिणामों के लिए कुछ इंतजार करना पड़ सकता है.

हमारी अर्थव्यवस्था के आधारभूत कारक मजबूत हैं, इसलिए हमारे पास सुधार की गुंजाइश भी है और पूर्ववर्ती सुधारों की समीक्षा के लिए अवसर भी है. ऐसे में जरूरी यह है कि सरकार प्राथमिकता के स्तर पर सुधारों के सिलसिले को जारी रखे और इसके साथ जरूरी तात्कालिक उपाय भी करती रहे, ताकि गिरावट के असर को कमतर किया जा सके.

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