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सबको स्वास्थ्य का अधिकार

ज्यां द्रेज विजिटिंग प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग, रांची विवि [email protected] हमारे जीवन की गुणवत्ता के लिए हमारे स्वास्थ्य से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है. स्वास्थ्य खराब रहने से सब कुछ मुश्किल हो जाता है: काम, पढ़ाई, सफर, खेल-कूद, दोस्ती, मस्ती आदि. इसके साथ ही, स्वास्थ्य खराब होने से कई बार शरीर में दर्द पैदा हो […]

ज्यां द्रेज
विजिटिंग प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग, रांची विवि
हमारे जीवन की गुणवत्ता के लिए हमारे स्वास्थ्य से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है. स्वास्थ्य खराब रहने से सब कुछ मुश्किल हो जाता है: काम, पढ़ाई, सफर, खेल-कूद, दोस्ती, मस्ती आदि. इसके साथ ही, स्वास्थ्य खराब होने से कई बार शरीर में दर्द पैदा हो जाता है, और तब फिर एक पल को आराम करना भी मुश्किल होता है.
इसके बावजूद, भारत के आर्थिक और सामाजिक नीति में स्वास्थ्य को लेकर बहुत कम ध्यान दिया जाता है. स्वास्थ्य पर कम ध्यान देना तो एक विडंबना ही कही जायेगी. स्कूल के बच्चों को हर एक देश की राजधानी का नाम पढ़ाया जाता है, लेकिन मलेरिया से कैसे बचें या स्वस्थ कैसे रहें, इस तरह की जानकारी उनको नहीं दी जाती है. संसद में आतंकवाद की तुलना में स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों पर बहुत कम चर्चा होती है, जबकि बीमारियां आतंकवाद से सौ-गुना ज्यादा खतरनाक हैं.
अर्थशास्त्र से सीखें. स्वास्थ्य के क्षेत्र में बाजार और व्यापार कभी मदद नहीं करते हैं, बल्कि अक्सर नुकसान ही करते हैं. अगर आपको सौ प्रकार की मिठाइयां चाहिए (बर्फी, लड्डू, हलुवा, रसगुल्ला, बालुशाही, जलेबी, अादि), तो बाजार आपकी मदद कर देगा. मिठाईवाले कमाने के लिए आपके लिए तरह-तरह की मिठाइयां तैयार करेंगे और उनका दाम भी कम रखने की कोशिश करेंगे. उस संदर्भ में बाजार तंत्र इसलिए काम करता है, क्योंकि मिठाई का स्वाद, वजन, सामग्री और दाम आदि सब कुछ आपके सामने है.
इसके विपरीत, जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं, तो न जाने क्या बीमारी है आपको, उसका क्या इलाज होना चाहिए और दवा का सही दाम क्या है, यह सब आपको नहीं दिखता. डॉक्टर अगर दस हजार रुपये की सूई लगाने की सलाह देंगे, तो मरीज मना नहीं कर पायेंगे. अच्छे डॉक्टर जरूर हमारी भलाई के लिए अच्छी सलाह देंगे, लेकिन सिर्फ पैसा कमानेवाले डॉक्टर तो हमारा शोषण ही करेंगे.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में बाजार तंत्र के काम नहीं करने के और कई कारण होते हैं. मिसाल के लिए, कहा जाता है कि इलाज से रोकथाम अच्छा है: जैसे पोषणयुक्त खाना खाना, व्यायाम करना, सफाई रखना, धूम्रपान छोड़ना आदि. लेकिन निजी डॉक्टर बीमारी से कमाते हैं, रोकथाम से नहीं. रोकथाम सार्वजनिक पहल से होती है: जैसे सफाई अभियान, स्वास्थ्य योजनाएं, बेहतर शिक्षा मुहैया कराना, या फिर सिगरेट पर टैक्स लगाना आदि.
इसके अलावा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में बाजार तंत्र अन्याय का बड़ा स्रोत है. बाजार में स्वास्थ्य पैसे के हिसाब से मिलता है. दो बच्चों को सोचिये, एक अमीर और एक गरीब. दोनों बच्चों को एक ही बीमारी है. अगर साधन-संपन्न परिवार का बच्चा बच जायेगा, और गरीब परिवार का बच्चा मर जायेगा, तो कैसा लगेगा? आज की स्थिति में इस तरह का अन्याय होता रहता है.
इन समस्याओं को देखते हुए दुनिया के कई देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं को एक सार्वजनिक सेवा माना जाता है और स्वास्थ्य को हर नागरिक का अधिकार माना जाता है. मिसाल के लिए, इंग्लैंड को देखें. इंग्लैंड में 1948 से ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (नेशनल हेल्थ सर्विस) के तहत सबके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं.
जैसे पुस्तकालय सारे नागरिकों के लिए है और पुस्तकालय का इस्तेमाल करने के लिए पैसे नहीं लगते हैं, उसी तरह वहां सरकारी हॉस्पिटल में सबको इलाज और दवा नि:शुल्क मिलते हैं. निजी हॉस्पिटल में नि:शुल्क कुछ भी नहीं है. अगर सरकारी हॉस्पिटल में सही इलाज मिलता है, तो निजी हॉस्पिटल में कौन खर्च करेगा?
इंग्लैंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा आसानी से नहीं बना. वहां मजदूर वर्ग को लंबा संघर्ष करना पड़ा था. उस संघर्ष में अनयूरिन बेवन नामक एक व्यक्ति का बड़ा योगदान रहा है. बेवन कोयला के खान-मजदूर परिवार से थे.
बचपन में उनके कई भाई-बहन इलाज के पैसे नहीं होने के कारण किसी बीमारी से मर गये थे. सबको स्वास्थ्य की सुविधा मिले, इसके लिए बेवन ने संघर्ष करने का फैसला किया. वे खान-मजदूरों के यूनियन का अगुआ बने, उसके बाद संसद प्रतिनिधि बने, और अंत में लेबर पार्टी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री भी बने. तब उन्होंने निजी डॉक्टरों के विरोध के बावजूद राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा का निर्माण किया.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा जैसी सुविधाएं केवल इंग्लैंड में ही नहीं हैं. क्यूबा, स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी स्वास्थ्य व्यवस्था को एक सार्वजनिक सेवा मानी जाती है और सबको सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में नि:शुल्क इलाज और दवा की सारी सुविधाएं मिलती हैं.
कई देशों में स्वास्थ्य का अधिकार पूरा करने के लिए दूसरा रास्ता भी निकाला गया. कनाडा में हर नागरिक एक ही सामाजिक स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल है. कोई बीमारी होने पर मरीज किसी भी स्वास्थ्य केंद्र में जा सकता है, फिर चाहे सरकारी स्वास्थ्य केंद्र हों या निजी हों. सबके इलाज का खर्च बीमा कोष से होगा. अमीर हो या गरीब हो, कनाडा में सबके लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था एक ही है.
अगर आपको लगता है कि स्वास्थ्य का अधिकार केवल अमीर देशों में लागू किया जा सकता है, तो फिर से सोचिए कि ब्राजील, मेक्सिको, थाईलैंड, चीन, वियतनाम और श्रीलंका जैसे देशों में भी इस दिशा में काफी प्रगति हुई. ब्राजील में साल 1988 से स्वास्थ्य को एक संवैधानिक अधिकार माना जाता है. श्रीलंका में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा से सबको नि:शुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती हैं. थाईलैंड में सरकारी हॉस्पिटल और सामाजिक बीमा मिलाकर सबको नि:शुल्क इलाज की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है.
थाईलैंड में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था साल 2002 में लागू की गयी थी. उस समय थाईलैंड में प्रति व्यक्ति का सकल घरेलू उत्पाद करीब उतना ही था, जितना आज भारत में है. अगर उस समय थाईलैंड में स्वास्थ्य का अधिकार लागू किया जा सकता था, तो भारत में आज क्यों नहीं लागू हो सकता है?
आजकल हर जगह भारत को महान देश बनाने की चर्चा लगातार हो रही है. लेकिन एक महान देश क्या है? क्या ऐसा देश, जहां बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं खड़ी हैं, बुलेट ट्रेन चल रहे हैं और परमाणु बम बन रहे हैं? या फिर ऐसा देश, जहां हर नागरिक शिक्षित, सुरक्षित और स्वस्थ है? इसका फैसला आप स्वयं कीजिए.
Prabhat Khabar Digital Desk
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