Social media : उम्र का एक चक्र इंटरनेट ने पूरा कर लिया है. इसकी खूबियों और इसकी उपयोगिता की चर्चा तो बहुत हो ली, अब इसके दूसरे पहलुओं पर भी ध्यान जाने लगा है. कई देशों के न्यूरो वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक लोगों पर इंटरनेट और डिजिटल डिवाइस से लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं. इन शोधों का केंद्र युवा पीढ़ी पर नयी तकनीक के संभावित प्रभाव की ओर झुका हुआ है, क्योंकि वे ही इसके पहले और सबसे बड़े उपभोक्ता बन रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लागू कर दिया गया है. यह एक ऐतिहासिक कदम है, जिसने दुनिया भर का ध्यान खींचा है. यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब कई देशों में सरकारें नाबालिगों को ऑनलाइन कंटेंट और साइबर बुलिंग से बचाने के लिए नियम बना रही हैं. ऑस्ट्रेलिया में पिछले साल पास हुए कानून के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, इंस्टाग्राम, किक, रेडिट, स्नैपचैट, थ्रेड्स, टिकटॉक, एक्स, यूट्यूब अगर 16 साल से कम उम्र के बच्चों के अकाउंट हटाने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाते, तो उन पर 4.95 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक का जुर्माना लग सकता है.
मेटा, टिकटॉक और एक्स को तो इस बैन लिस्ट में रखा गया है, पर स्ट्रीमिंग वेबसाइट यूट्यूब को इस बैन से छूट दी गयी है. चूंकि स्कूलों में यूट्यूब का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है, इसलिए इसे प्रतिबंध से अलग रखा गया है. भारत में सोशल मीडिया के बढ़ते असर को देखते हुए कुछ लोग इस तरह के कदमों की मांग कर रहे हैं, पर क्या अपने यहां सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाना इस समस्या का हल है? प्रतिबंध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता. देश के कुछ राज्यों में शराबबंदी लागू है, पर इससे वहां शराब की तस्करी बढ़ गयी और नशे की समस्या खत्म नहीं हुई.
तकनीक ने पिछले कुछ वर्षों में हमारे जीवन को पूरी तरह बदल कर रख दिया है. आज स्मार्टफोन, टैबलेट समेत अन्य डिजिटल डिवाइस हर व्यक्ति की जीवन शैली का हिस्सा हैं. लोकल सर्कल्स के राष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक, देश में 60 फीसदी बच्चे रोजाना तीन घंटे से अधिक सोशल मीडिया एप्स का इस्तेमाल करते हैं. किशोरों में यह आंकड़ा और अधिक है. सोशल मीडिया बच्चों और किशोरों के लिए न केवल मनोरंजन का स्रोत है, बल्कि शैक्षिक उपकरण के रूप में भी सामने आ रहा है. फेसबुक, एक्स, लिंक्डिइन जैसे प्लेटफॉर्म्स बच्चों और किशोरों को नये रूप में अध्ययन सामग्री प्रदान करने के लिए विचारों और अभिव्यक्ति को स्थापित करने का मौका देते हैं. मसलन, यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म बच्चों को उनकी रचनात्मकता विकसित करने और शिक्षा से जुड़े लेक्चर्स, शॉर्ट वीडियो प्रदान करते हैं, जो उनके लिए काफी उपयोगी होता है.
मानव सभ्यता के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब दो पीढ़ी एक साथ किसी तकनीक के इस्तेमाल करने का तरीका एक साथ सीख रही है. यानी तकनीक पहले आ रही है, उसके इस्तेमाल करने का तरीका बाद में बन रहा है. सोशल मीडिया के सही इस्तेमाल का तरीका न माता-पिता को पता है, न ही बच्चों को. एकल परिवार में माता-पिता, दोनों व्यस्त हैं, तो बच्चों को व्यस्त रखने के लिए मोबाइल पकड़ा दिया जाता है. बच्चे घर से बाहर खेलने जा नहीं पाते, क्योंकि खेल के मैदान या पार्क हैं ही नहीं. नतीजा है सोशल मीडिया और मोबाइल का अनियंत्रित इस्तेमाल.
भारत ऐसे ही दुश्चक्र का सामना कर रहा है, जिसका असर मानसिक स्वास्थ्य, पढ़ाई और सामाजिक जीवन पर नकारात्मक रूप में पड़ता है. लोगों में डिजिटल तकनीक के प्रयोग करने की वजह बदल रही है. शहर फैल रहे हैं और इंसान सिमट रहा है. नतीजतन, हमेशा लोगों से जुड़े रहने की चाह उसे साइबर जंगल की ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहां भटकने का खतरा लगातार बना रहता है. वास्तविक जिंदगी की असली समस्याओं से वे भागना चाहते हैं और इस चक्कर में इंटरनेट पर ज्यादा समय बिताने लगते हैं, जिसमें चैटिंग और ऑनलाइन गेम खेलना शामिल हैं. और जब उन्हें इंटरनेट नहीं मिलता, तो उन्हें बेचैनी होती और स्वभाव में आक्रामकता आ जाती है.
हालांकि सोशल मीडिया पर पूर्ण प्रतिबंध के बजाय इसे सीमित करना अधिक व्यावहारिक और संतुलित विकल्प हो सकता है. बच्चों और किशोरों को डिजिटल साक्षरता और सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, ताकि वे सोशल मीडिया का उपयोग सकारात्मक और सुरक्षित तरीके से कर सकें. येल मेडिसिन की एक रिपोर्ट के सुझाव के मुताबिक, बच्चों के लिए सोशल मीडिया का उपयोग सोने से एक घंटे पहले बंद कर देना चाहिए और इसका उपयोग केवल शैक्षिक या रचनात्मक उद्देश्यों के लिए होना चाहिए. इसके साथ ही, माता-पिता को बच्चों के लिए ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिसमें गोपनीयता सेटिंग्स, अजनबियों से बचने और साइबर बुलिंग को रिपोर्ट करने की जानकारी भी शामिल हो. डिजिटल युग में यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जिसे नजर अंदाज करना ठीक नहीं. यह छात्रों के साथ बेईमानी होगी कि आप उन्हें वर्चुअल दुनिया से काट दें. छात्र सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर इस्तेमाल अपनी शिक्षा और करियर को पंख दे सकते हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

