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रुपये की कमजोरी से दबाव में आने की जरूरत नहीं

Indian Rupee : रुपये के कमजोर होने से तीन दिसंबर को कारोबार के दौरान सेंसेक्स 375 अंक तक फिसल गया था, लेकिन अंत में 31.5 अंक, यानी 0.04 प्रतिशत की गिरावट के साथ 85,107 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 46 अंक, यानी 0.2 प्रतिशत गिरकर 25,986 पर बंद हुआ.

तीन दिसंबर को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 90 रुपये के स्तर को पार कर गया, जबकि दो दिसंबर को रुपया 89.95 के स्तर को पार कर गया था. रुपया इस साल की शुरुआत से अब तक पांच प्रतिशत से अधिक गिर चुका है और यह इस अवधि में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली एशियाई मुद्रा रही है. उल्लेखनीय है कि रुपये के 80 रुपये से 90 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंचने में महज 773 कारोबारी दिन लगे. इस बीच डॉलर इंडेक्स, जो छह करेंसियों के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापता है, 0.13 प्रतिशत गिरकर 99.22 के स्तर पर आ गया और देसी बाजार में तीन दिसंबर को लगातार चौथे दिन इसमें गिरावट दर्ज की गयी.


रुपये के कमजोर होने से तीन दिसंबर को कारोबार के दौरान सेंसेक्स 375 अंक तक फिसल गया था, लेकिन अंत में 31.5 अंक, यानी 0.04 प्रतिशत की गिरावट के साथ 85,107 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 46 अंक, यानी 0.2 प्रतिशत गिरकर 25,986 पर बंद हुआ. इतना ही नहीं, 16 प्रमुख क्षेत्रीय सूचकांकों में से 11 में गिरावट दर्ज की गयी. निफ्टी स्मॉलकैप 100 और निफ्टी मिडकैप 100 क्रमशः 0.7 और एक प्रतिशत टूटे. निफ्टी पीएसयू बैंक सूचकांक में सबसे ज्यादा 3.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी, जो सात महीनों में सर्वाधिक है.

मौजूदा प्रतिकूल परिस्थिति के कारण चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भुगतान संतुलन 10.90 अरब डॉलर नकारात्मक हो गया, जबकि वह पिछले वर्ष की समान तिमाही में 18.6 अरब डॉलर सकारात्मक था. व्यापार घाटा भी बढ़ा है और यह भी अंदेशा है कि चालू खाते का घाटा भी चालू वित्त वर्ष में बढ़ेगा. बहरहाल, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआइ) की निकासी से बाजार और लोगों के बीच चिंता का माहौल बना हुआ है. अमेरिका के साथ कारोबारी करार पर अनिश्चितता के कारण भी बेहतर प्रतिफल की आस में विदेशी निवेशक बिकवाली कर रहे हैं.


हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) मौजूदा स्थिति से बहुत ज्यादा चिंतित नहीं है, उसे लग रहा है कि स्थिति जल्द ही काबू में आ जायेगी. इसलिए उसने शुरुआती दौर में रुपये की मजबूती के लिए कोई पहल नहीं की, पर बाद में उसने सुधारात्मक कार्रवाई की और इसके तहत राष्ट्रीयकृत बैंकों ने दो दिसंबर को डॉलर की भारी खरीद की, जिससे रुपये में थोड़ी मजबूती आयी. रुपये के लगातार कमजोर होने के कारण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल में भारत की विनिमय दर व्यवस्था को स्थिर से क्रॉल जैसी व्यवस्था की श्रेणी में डाल दिया है, जो गलत है. क्योंकि भारत निर्यात से ज्यादा आयात करता है.

इसलिए आयात और अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए देश में हमेशा डॉलर की मांग बनी रहती है. दूसरी तरफ, आरबीआइ के पास 21 नवंबर तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 688 अरब डॉलर था, जो लगभग 11 महीने के आयात बिल की भरपायी करने के लिए पर्याप्त है. रिजर्व बैंक के आकलन के अनुसार रुपया खुद से मजबूत हो जायेगा. यह मुमकिन भी है, क्योंकि रुपये के कमजोर होने के कारण तात्कालिक हैं.

गौरतलब है कि कमजोर रुपया भारतीय निर्यातकों की मदद भी करता है, क्योंकि उन्हें बेचे गये उत्पादों की कीमत डॉलर में मिलती है. हालांकि, अमेरिकी शुल्क से जो नुकसान हो रहा है, उसकी पूरी तरह भरपाई रुपये के अवमूल्यन से नहीं हो सकती है. फिर भी, इससे भारतीय निर्यातकों को नये बाजार का विकल्प तलाशने में कुछ मदद जरूर मिलेगी. रुपया दूसरी मुद्राओं की तुलना में गिरा जरूर है, पर कोरोना महामारी के बाद से यह चीन की मुद्रा युआन के मुकाबले काफी मजबूत हुआ है. इस कारण चीन से आयात करना अभी सस्ता हो गया है.


अमेरिका द्वारा भारत पर लगाये गये 50 प्रतिशत टैरिफ को समाप्त करने के लिए द्विपक्षीय वार्ता चल रही है और माना जा रहा है कि टैरिफ विवाद के खत्म होते ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक फिर से भारत में पहले की तरह निवेश करना शुरू कर देंगे. गौरतलब हो कि नवंबर महीने में निर्माण क्षेत्र में धीमी वृद्धि दर्ज हुई. एचएसबीसी मैन्युफैक्चरिंग पीएमआइ 56.6 के स्तर पर रही, जो अक्तूबर के 59.2 से कम है. यह पिछले नौ महीनों में सबसे धीमी सुधार की स्थिति दर्शाता है. नये ऑर्डर और उत्पादन में वृद्धि बनी रही, पर यह भी पिछले नौ महीनों में सबसे कम रही, पर आरबीआइ द्वारा रेपो दर में हालिया कटौती करने से कर्ज और आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार बढ़ने की संभावना है.

दरअसल, कर्ज के सस्ता होने से रियल एस्टेट, कॉरपोरेट्स और एमएसएमइ के कारोबार में इजाफा होने की संभावना है. इससे और रुपये के कमजोर रहने से निर्यात को भी बल मिल सकता है. उधर नवंबर महीने में सेवा क्षेत्र में तेजी की स्थिति बनी रही. एचएसबीसी इंडिया सर्विसेज पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआइ) की मानें, तो सेवा से संबंधित कारोबारी गतिविधियां अक्तूबर में थोड़ी धीमी होने के बाद नवंबर में तेजी से बढ़ीं. इस महीने पीएमआइ 59.8 रहा, जो अक्तूबर में 58.9 रहा था. इन आंकड़ों से पता चलता कि उत्पादन में उछाल आ रहा है. सो, रुपये के कमजोर होने से बहुत दबाव में आने की जरूरत नहीं है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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