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अपना घर बचाएं इमरान
कुमार प्रशांत गांधीवादी विचारक k.prashantji@gmail.com पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अब इस नतीजे पर पहुंच गये हैं कि परंपरागत युद्ध में भारत से जीतना पाकिस्तान के बस का नहीं है. फिर वे कौन-सा युद्ध भारत से जीत सकते हैं? वे परमाणु युद्ध की तरफ इशारा करते हैं. उन्हें मालूम नहीं है शायद कि बाउंसर फेंकने […]
कुमार प्रशांत
गांधीवादी विचारक
k.prashantji@gmail.com
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अब इस नतीजे पर पहुंच गये हैं कि परंपरागत युद्ध में भारत से जीतना पाकिस्तान के बस का नहीं है. फिर वे कौन-सा युद्ध भारत से जीत सकते हैं? वे परमाणु युद्ध की तरफ इशारा करते हैं. उन्हें मालूम नहीं है शायद कि बाउंसर फेंकने और बम फेंकने में फर्क होता है. क्रिकेट के मैदान में बाउंसर फेंकने के लिए बॉलर जितना अाजाद होता है, दुनिया का कोई राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बम फेंकने के लिए उतना भी आजाद नहीं है.
कश्मीर में हमने जैसी मूढ़ता की है, वैसी ही किसी बड़ी मूढ़ता से इमरान उसका जवाब देना चाहते हैं, जबकि वह जानते हैं कि उनके अपने घर में अाग लगी हुई है. वह पाकिस्तान के निरीह अौर असहाय लोगों को उन्मादित करने में लगे हैं, ताकि सारी दुनिया के मुसलमान कश्मीर का बदला लेने के लिए भारत पर टूट पड़ें.
कभी परमाणु बम अमेरिका अौर सोवियत संघ के एकाधिकार में था. कहा जाता रहा कि युद्ध टालने का एक रास्ता विनाश का भय पैदा करना भी है. फिर वह बम दो मुल्कों की मुट्ठी से निकलकर पांच की मुट्ठी में पहुंच गया. ये सभी अपने वक्त के सबसे जंगखोर मुल्क थे, जिनके मुंह में अौपनिवेशिक शोषण का खून लगा था. फिर पांचों ने यह साजिश रची कि दुनिया में दूसरा कोई मुल्क बम न बना सके, तो बाकायदा एक संधि-पत्र बना- अाण्विक विस्तार निरोधक संधि- अौर दुनिया से कहा गया कि सभी इस पर दस्तखत करें.
दस्तखत करनेवालों को लाभ का लालच अौर न करनेवालों को प्रत्यक्ष या प्रछन्न धमकी भी दी गयी. हमने इस संधि-पत्र पर दस्तखत नहीं किया. हमने कहा कि शांति के पैरोकारों में हमारा नाम सबसे ऊपर है अौर हमें उसका गर्व भी है. हम बम बनाने भी नहीं जा रहे हैं, लेकिन निर्णय करने की अपनी स्वतंत्रता हम किसी दूसरे के पास बंधक रखने को तैयार नहीं हैं.
निर्णय की इस अाजादी की इस टेक का हमने भी समर्थन किया, हालांकि हमें अाशंका थी कि इस नैतिक टेक के पीछे कोई बेईमानी भी छिपी हो सकती है. वही हुअा. अटल बिहारी वाजपेयी के हिंदुस्तान ने भी अौर नवाज शरीफ के पाकिस्तान ने भी, नहले पर दहला मारते हुए बम फोड़ दिया. पाकिस्तान की तमाम मूर्खताअों व कुटिलताअों, संसद पर अाक्रमण, मुंबई पर हमला जैसी उत्तेजनात्मक कार्रवाई के बावजूद हमने परमाणु बम का धमाका तो नहीं ही किया, और बम हमले की धमकी भी नहीं दी.
उत्तेजना के पल में ऐसी धीरता कायरता या अनिर्णय का नहीं, दायित्व-बोध से पैदा विवेक का परिचय देती है. क्यूबा के संकट के वक्त, अक्तूबर 1962 में, जब सारी मानवता का विनाश बस दो पल की दूरी पर खड़ा था और अमेरिकी सैन्य सलाहकार अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी पर दबाव डाल रहा था कि यही सबसे मुफीद पल है कि हम क्यूबा की रूसी मिसाइलों पर हमला बोल दें, केनेडी ने बम की तरफ नहीं, फोन की तरफ कदम बढ़ाया था. उन्होंने रूसी प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव से कहा था- सारे संसार की भावी पीढ़ी को सामने रखकर हमें पीछे हट जाना चाहिए! अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का वह सबसे सौंदर्यवान पल था. अमेरिका सागर में पीछे हटा, रूस तब क्यूबा से निकल गया. किसी ने शेखी नहीं बघारी कि हमारे पास बम है अौर मानवता की किस्मत मेरी मुट्ठी में बंद है.
आज एक प्रधानमंत्री जुनून में भीड़ को उकसाता है कि हमने बम दीवाली के लिए रखे हैं क्या? जवाब में कोई पाकिस्तान से कहता है कि हमने भी ईद के लिए तो बम नहीं रखे हैं! मतलब बम न हुअा, दीवाली या ईद की मिठाई हो गयी. क्या जिन्हें देश चलाने की जिम्मेदारी मिलती है, उन्हें यह अधिकार भी मिल जाता है कि वे चाहें तो सारे देश का विनाश कर दें?
यह लोकतंत्र की गलत समझ का ही नहीं, नेतृत्व की अक्षमता का भी प्रमाण है. जो कूटनीति में फिसड्डी साबित होते हैं, जो पड़ोसियों के बीच अकेले पड़ जाते हैं, जो भीतर से बेहद असुरक्षित व कायरता से भरे होते हैं, वे ही बम के विनाश की धमकी को खिलौना बनाने की भद्दी कोशिश करते हैं. इमरान आज ऐसा ही कर रहे हैं.
यह सच्चाई विश्व-मान्य हो गयी है कि कश्मीर हमारा अांतरिक मामला है. अब तक हम कहते थे, अब सभी मान रहे हैं. अब जो गांठ है वह भारत, भारत सरकार, कश्मीर अौर कश्मीर सरकार के बीच है.
अब तक का इतिहास बताता है कि हम अपने अांतरिक मामलों को हल करने में बेहद नाकारा व गैर-ईमानदार साबित हुए हैं. लेकिन, पाकिस्तान के इमरान खानों को अब हिंदुस्तान की तरफ नहीं, अपने पाकिस्तान की तरफ देखना चाहिए. उनका पूरा मुल्क दर्द की अकथनीय कहानी बन गया है.
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का सवाल इमरान जिस तरह उठा रहे हैं, उससे पाकिस्तान का माखौल भी बन रहा है अौर अाम पाकिस्तानी का मनोबल भी टूट रहा है. भारत से सीधे युद्ध में पाकिस्तान दो-दो बार हार चुका है और वह दो टुकड़ों में टूट भी चुका है. इस वक्त उसका राजनीतिक, सामाजिक और अार्थिक जीवन तहस-नहस हो चुका है. ऐसा पड़ोसी हमारे लिए भी पुरअमन नहीं है.
हालांकि, पाकिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व चाहे जितना कायर और भ्रष्ट रहा हो, पाकिस्तानी अवाम हर मौके पर बाहर अा कर जम्हूरियत की ताकतों को मजबूती देती रही है. उस अवाम के इस जज्बे को सलाम करते हुए इमरान इसे मजबूत बनाएं; पक्ष-विपक्ष भूल कर पूरे पाकिस्तान में खुले संवाद का माहौल बनाएं. इससे उन्हें भी ताकत मिलेगी. एक बिखरते देश का भटकता प्रधानमंत्री इतना कर सकेगा क्या?
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