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एक नयी चुनावी गाली की उपलब्धि

।। पुष्यमित्र।। (प्रभात खबर, पटना) चुनाव का मौसम बहुत बुरा होता है. घर बैठे लोग इतनी बहस करने लगते हैं कि लगता है जैसे जायदाद का बंटवारा हो रहा है. पिछले दिनों मेरे गांव में कुछ ऐसा ही हुआ. दो चचेरे भाई, जो 24-25 साल की उम्र के युवा थे, अक्सर एक-दूसरे से चुनावी बहस […]

।। पुष्यमित्र।।

(प्रभात खबर, पटना)

चुनाव का मौसम बहुत बुरा होता है. घर बैठे लोग इतनी बहस करने लगते हैं कि लगता है जैसे जायदाद का बंटवारा हो रहा है. पिछले दिनों मेरे गांव में कुछ ऐसा ही हुआ. दो चचेरे भाई, जो 24-25 साल की उम्र के युवा थे, अक्सर एक-दूसरे से चुनावी बहस किया करते थे. उनमें से एक मोदी का प्रशंसक था, तो दूसरा केजरीवाल का. दोनों जब भी मिलते एक-दूसरे की टांग खींचने लगते. एक दिन केजरीवाल समर्थक ने मोदी समर्थक को कह दिया कि तुम तो फासीवादी हो. बेचारे मोदी समर्थक को समझ में ही नहीं आया कि ये फासीवादी क्या होता है? वह जातिवादी जानता था, रांची में मोराबादी मैदान है यह भी उसने सुन रखा था, मगर फासीवादी क्या होता है, यह उसे मालूम नहीं था.

उसने पूछा, ‘फांसीवादी’ क्या फांसी चढ़ानेवाले जल्लाद को कहते हैं? इस पर उसके भाई ने हंसते हुए कहा, मोदी का समर्थक तो मोदी जैसा ही मूरख है, फासीवादी भी नहीं समझता है. मोदी समर्थक जनाब गम खा कर रह गये. अगले दिन उन्होंने सवेरे-सवेरे गांव के सबसे जानकार व्यक्ति के पास फरियाद लगायी कि पहले यह बताइए कि फासीवाद होता क्या है. और यह भी बताइए कि कोई व्यक्ति जो फासीवाद का मतलब नहीं जानता है, वह फासीवादी कैसे हो सकता है.

जानकार व्यक्ति ने उसे विश्व इतिहास का रेफरेंस देकर बताया कि कैसे इटली के शासक मुसोलिनी ने एक आंदोलन चलाया था, जिसे फासिज्म कहा जाता था. उस युवा को फिर भी समझ में नहीं आया. उसने पूछा, आंदोलन तो इटली में चला था, मेरा तो इटली से कोई लेना-देना ही नहीं है, फिर मैं कैसे फासीवादी हो सकता हूं? इस पर जानकार व्यक्ति ने कहा कि हो सकता है तुम फासीवादी की तरह बात कर रहे होगे, इसलिए तुम्हें फासीवादी कहा गया होगा. युवा ने कहा, मगर फासीवादी कैसे बात करते हैं, जब यह हमको मालूम नहीं, फिर हम कैसे फासीवादी हो गये. हां, हिंदुत्ववादी कह रहा था तो मान लिये कि हम हिंदुत्ववादी हो सकते हैं, मगर फासीवादी कैसे हो सकते हैं?

नाराज युवा ने अपनी बात आगे बढ़ायी, उसने कहा- आज तक लोग अंगरेजी गाली देकर मन बहलाते थे, लेकिन इस चुनाव में यह इटालियन गाली देने का कैसा चलन शुरू हुआ है? उसमें भी जिस देश से अपना न कुछ लेना है, न देना? जब तमाम लोगों से मिल कर उसे फासीवाद के बारे में कुछ सटीक जानकारी नहीं मिल सकी, तो उसने अपने चचेरे भाई से कहा कि मैं किस तरह फासीवादी हूं, इसका सबूत दो, अगर सबूत नहीं दे सकते तो मैं चला चुनाव आयोग तुम्हारी शिकायत करने. इस पर उसके भाई ने कहा कि हम-तुम क्या चुनाव लड़ रहे हैं जो चुनाव आयोग तुम्हारी शिकायत सुनेगा? जवाब में मोदी के समर्थक भाई ने कहा, फासीवादी तो चुनावी गाली है, कैसे चुनाव आयोग नहीं सुनेगा.

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