।। सत्य प्रकाश चौधरी।।
(प्रभात खबर, रांची)
मैं ‘हर’ भी हूं और ‘नर’ भी. मैं आदि हूं और अनंत भी. मैं जन्मा नहीं, अवतरित हुआ हूं. अपनी लीला के लिए मैंने जंबू द्वीप के भारत खंड को चुना है. अपनी बाल लीला के दौरान मैं मगरमच्छ से खेलता था, इस पर अविश्वास कैसा? हर जड़-चेतन मेरा ही अंश है, इसलिए मगरमच्छ भी मुझसे अलग नहीं है. चायवाले में भी मैं हूं और अंबानी-अडाणी में भी मैं ही हूं. 2002 के दंगों में जो मारे गये थे उनमें भी मैं था.
वे मेरे अंश के रूप में धरती पर आये थे और मृत्यु के बाद मुझमें ही मिल गये. जो मेरे इतिहास ज्ञान का मजाक उड़ाते हैं, वे नादान हैं, लीला नहीं समझते. मैं समय हूं. और समय ही इतिहास है. वैसे तो सनातन संस्कृति की भूमि भारत में उर्दू का नाम लेना तुच्छ लगता है, पर अपनी बात साफ करने के लिए उसका सहारा ले रहा हूं. उर्दू में तिथि (समय की इकाई) और इतिहास के लिए एक ही शब्द है, तारीख. और, जब मैं स्वयं समय हूं, तो किसी भी कालखंड को जैसे चाहे वैसे बदल सकता हूं. इतिहास, अतीत, वर्तमान सब मेरे अधीन हैं. ऐसे में सिकंदर को गंगा तक पहुंचा देना मेरे लिए क्या मुश्किल है? जिनकी मन की आंखें बंद हैं, जो मेरी लीला नहीं समझ पा रहे, वही मुझसे सवाल कर रहे हैं. ऐसे ही कुछ अज्ञानी मेरी पत्नी और विवाह के बारे में पूछते हैं. उन्हें कैसे बताऊं कि मुनष्य रूप में होने की वजह से मैं अपने मां-बाप को रोक नहीं सका और उन्होंने मेरा विवाह करा दिया.
माता-पिता की अवज्ञा भारतीय संस्कृति के खिलाफ होती. लेकिन मैंने अपने लिए जो लीला तय की है, उसमें पत्नी का कोई स्थान नहीं. मैंने यह बात समझाने के लिए जैसे ही मुंह खोला, संपूर्ण ब्रह्मांड उसकी आंखों के सामने नाच गया. वह समझ गयी कि उसे मेरे भ्रष्ट होने का द्वार नहीं बनना है और उसने सदा के लिए परित्यक्ता का जीवन स्वीकार कर लिया. अब मैं अपनी लीला के अंतिम चरण में हूं. मुङो भारत-भूमि को फिर से विश्वगुरु बनाना है. आर्यो की इस धरती को म्लेच्छों से मुक्त करना है, चाहे वे इटली से आये हों या ईरान से. देशवासियो! मिट्टी डालो उन लोगों पर जो तूफान से कश्ती निकाल कर लाये और तुम पर उसे संभाल कर रखने की जिम्मेदारी डाल गये.
अब तुम्हें इस झंझट में पड़ने की जरूरत नहीं, क्योंकि मैं आ गया हूं. मैं देश नहीं झुकने दूंगा.. यह सौगंध मैंने ले ली है. एक बार ध्यान से देखिए, आपके चारों ओर मैं और सिर्फ मैं हूं. जो लोग ‘मैं नहीं, हम’ की बात कर रहे हैं, उनमें में भी मैं हूं. ‘आप’ में भी मैं हूं. यानी, अपने दुश्मनों में भी मैं ही हूं. ठीक वैसे ही जैसे कुरुक्षेत्र में पूरा युद्ध अकेले श्रीकृष्ण लड़ रहे थे. बाकी सब तो मुहरे मात्र थे. लेकिन यह कलियुग है. जैसे दूरदर्शन पर फीचर फिल्म का हर भाग प्रायोजित होता है, वैसे ही आज हर लीला भी प्रायोजित होती है. अगर आप मेरी लीला पसंद नहीं करते और इसे रोकना चाहते हैं, तो पहले इसके प्रायोजकों को खोजिए और उन्हें रोकिए.