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अंतिम पंक्ति के लोगों के निडर प्रतिनिधि थे कॉमरेड महेंद्र सिंह

अनिल अंशुमन कॉमरेड महेंद्र सिंह को चालू राजनीति के गलियारों में कोई याद करे न करे, व्यापक लोकतंत्र पसंद लोगों की स्मृतियों में वे सदैव जीवंत हैं. हाशिये पर धकेल दिये गये आम जन के इंसाफ और अधिकारों की बुलंद लोकतांत्रिक आवाज के रूप में आज भी सबके लिए प्रासंगिक बने हुए हैं. राज्य गठन […]

अनिल अंशुमन

कॉमरेड महेंद्र सिंह को चालू राजनीति के गलियारों में कोई याद करे न करे, व्यापक लोकतंत्र पसंद लोगों की स्मृतियों में वे सदैव जीवंत हैं. हाशिये पर धकेल दिये गये आम जन के इंसाफ और अधिकारों की बुलंद लोकतांत्रिक आवाज के रूप में आज भी सबके लिए प्रासंगिक बने हुए हैं. राज्य गठन के पश्चात वे एकमात्र ऐसे जनप्रतिनिधि रहे, जो सदन से लेकर सड़क तक हर जोखिम का सामना करते हुए झारखंड के नवनिर्माण में सतत सक्रिय रहे.

महेंद्र सिंह की प्रासंगिकता इन संदर्भों में भी बनी हुई है कि वर्तमान सियासी गलियारों में जहां राजनीति से सत्ता और उससे पद-प्रतिष्ठा और पावर प्राप्ति को ही आज के नेताओं ने राजनीतिक लक्ष्य व रसूख का पैमाना बना लिया है. जनहित की राजनीति और उसकी सक्रियता को अपनी पूंजी समझने वालों को ढूंढ़ना भूसे के ढेर में सूई ढूंढ़ने जैसा हो गया है. आगे-पीछे दौड़ते-भागते कमांडो और महंगी गाड़ियों का काफिला न रहे, तो फिर नेतागिरी कैसी!

वहीं, महेंद्र सिंह जिस हाशिये के आमजन की राजनीति के जीवनपर्यंत प्रतिनिधि रहे, वर्तमान राजनीति के खांचे में वह समा ही नहीं सकता. विडंबना है कि जनसमुदाय का भी अच्छा-खासा हिस्सा वर्तमान राजनीति वाली नेता की छवि को ही अपना आदर्श बनाये हुए है.

एक विधायक से अधिक एक प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट जननेता के रूप में महेंद्र सिंह ने चालू सत्ता-सियासत के समानांतर वास्तविक लोकतंत्र की जमीनी राजनीतिक धारा को पूरे आत्मिक कौशल के साथ स्थापित किया. आज चुनावी जीत के लिए नोटों का दरिया बहाने से लेकर हर कुकृत्य को सफलता का पर्याय बना दिया गया है.

वहीं, महेंद्र सिंह यही कहते देखे और सुने गये कि हम आपको कुछ देने-दिलाने का वादा या आश्वासन देने नहीं आये हैं. लेकिन, इतना जरूर कहेंगे कि हम मारे जा सकते हैं, लेकिन आपकी जिंदगी के जरूरी सवालों के संघर्षों में आपका साथ कभी नहीं छोड़ेंगे और आपसे कभी विश्वासघात नहीं करेंगे. आपसे मेरा रिश्ता वोट लेने-देने मात्र का ही नहीं है, जिंदगी के हर पल का है.

हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों और उनके जनप्रतिनिधियों के आदर्श आचार संहिताएं निर्धारित हैं, लेकिन इनका पालन आज कागजों तक ही सीमित रह गया है. फलतः मूल्यों की राजनीति की बजाय मोल-तोल की राजनीति ही सब पर हावी है. समाज के निचले पायदान पर धकेल दिये गये व्यापक जन की समस्याओं-सवालों का महत्व सिर्फ वोट लेकर जीतने तक ही है. महेंद्र सिंह ने इस राजनीति पर करारा प्रहार कर अपनी हर जन कार्यवाही से हाशिये पर धकेल दिये गये लोगों और उनके सवालों को मुखर जन दबाव में तब्दील कर दिया.

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