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JDU का रामनाथ कोविंद को समर्थन जल्दीबाजी में तो नहीं ?

आशुतोष कुमार पांडेय पटना : राजद सुप्रीमो लालू यादव हमेशा एक भोजपुरी कहावत बोलते रहते हैं. हड़बड़िए बियाह, कनपटिए सेनूर. एंटी एनडीए फ्रंट की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मीरा कुमार को बनाये जाने के बाद बिहार की सियासत में जदयू के फैसलेकोइसी कहावत के संदर्भ में देखते हुए चर्चा होने लगी है. राजनीतिक […]

आशुतोष कुमार पांडेय

पटना : राजद सुप्रीमो लालू यादव हमेशा एक भोजपुरी कहावत बोलते रहते हैं. हड़बड़िए बियाह, कनपटिए सेनूर. एंटी एनडीए फ्रंट की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मीरा कुमार को बनाये जाने के बाद बिहार की सियासत में जदयू के फैसलेकोइसी कहावत के संदर्भ में देखते हुए चर्चा होने लगी है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह चर्चा विपक्ष की दिल्ली में हुई बैठककेबाद लालू यादव के उस बयान से शुरू हुई है, जिसमें उन्होंने मीडिया से कहा कि जदयू का एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के समर्थन का फैसला एक ऐतिहासिक भूल है.उन्होंने इसे सुधारने कीअपीलकी. कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने जैसे ही राष्ट्रपति पद के लिए मीरा कुमार के नाम की घोषणा की सियासत में सरगरमी बढ़ सी गयी. मीरा कुमार का नाम सामने आने के बाद अब बिहार की राजनीति को समझने वाले जदयू के फैसले को जल्दबाजी के नजरिये से देख रहे हैं.

जानकार जदयू के फैसले को नोटबंदी के समर्थन के फैसले से जोड़कर उसका तुलनात्मक परिणाम देखते हैं. उनका कहना है कि नोटबंदी को शुरू में जदयू ने समर्थन किया, लेकिन जैसे ही दिक्कतें बढ़ने लगी, तो पार्टी की तरफ से यह बयान आने लगा कि यह ठीक नहीं हो रहा है. ठीक उसी तरह, मीरा कुमार दलित हैं. बिहार से हैं. बड़े राजनेता स्व. जगजीवन राम की बेटी हैं. साफ-सुथरी छवि है. जानकार बताते हैं-विपक्ष की ओर से मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाये जाने के बाद जदयू का कोविंद को समर्थन करना, कहीं बिहार के दलित समुदाय को जदयू से नाराज ना कर दे. हालांकि, जानें-मानें राजनीतिक मामलों के जानकर प्रो. अजय कुमार झा, ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि जदयू इश्यू दर इश्यू एनडीए का समर्थन करने में विश्वास रखता है. पूरी दुनिया ने योग किया, बिहार में ऐसा कुछ आयोजन नहीं हुआ. वह कहते हैं कि यदि जदयू को मीरा कुमार का समर्थन करना होता, तो पार्टी एक दो दिन इंतजार कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, इसका कारण है, जदयू का कोविंद के साथ राजनीतिक और पार्टी स्तर पर संबंधों का बेहतर होना.

विपक्ष के इस फैसले को सियासी लोग काफीस्मार्टतरीके से लिया गया फैसला मानते हैं. विपक्ष में शामिल पार्टियों का कहना है कि रामनाथ कोविंद के मुकाबले मीरा कुमार राष्ट्रपति पद की बेहतर उम्मीदवार हैं और जदयू को कोई भी फैसला लेने से पहले इंतजार करना चाहिए था. जानकारों की मानें तो मीरा कुमार का नाम सामने आने के बाद जदयू धर्म संकट में फंस गयी है. दलित समुदाय से आने और बिहार के राज्यपाल होने का तर्क देकर जदयू ने कोविंद का समर्थन किया था. अब चूंकि मीरा कुमार भी दलित समुदाय से आती हैं और बिहार की ही निवासी हैं, तो इस लिहाज से अब जदयू के लिए उनके विरोध में कोविंद का समर्थन करना काफी दुविधा भरा फैसला होगा.

उधर, दिल्ली में बैठक के बाद लालू ने मीडिया के जरिये जदयू से कहा कि ऐतिहासिक भूल मत कीजिए, यह आपकी पार्टी का कोविंद को समर्थन करना गलत फैसला है. ज्ञात हो कि इस बैठक में जदयू शामिल नहीं हुआ था. लालू ने कहा कि वह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलेंगे और कोविंद का समर्थन करने के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करेंगे. लालू के मुताबिक जदयू को विचारधारा की लड़ाई नहीं छोड़नी चाहिए. लालू ने यह भी कहा था कि पसंद व्यक्तित्व के आधार पर नहीं, बल्कि विचारधारा के आधार पर होनी चाहिए. फांसीवादी ताकतों को रोकने के लिए हम साथ आये हैं. जानकारों की मानें तो जदयू को यह मंथन करना होगा कि लालू यादव की ललकार कहीं उनकी जल्दबाजी का परिणाम तो नहीं. जदयू को यह भी देखना होगा कि बिहार के दलित समीकरण की चाबी जो हाल तक उसके पास है, कहीं इस चुनाव के बाद किसी दूसरे पाले में तो नहीं चली जायेगी ? फिलहाल, राष्ट्रपति का चुनाव सियासी दिलचस्पी के दौर से गुजरने वाला है.

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