पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार को जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम का माउस क्लिक कर शुभारंभ किया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं कृषि विभाग को विशेष तौर पर बधाई और धन्यवाद देता हूं कि इन्होंने मौसम के अनुकूल कृषि कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया है.
उन्होंने कहा कि बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया के पूसा केंद्र द्वारा 150 एकड़ में कृषि कार्य किया जा रहा है. इसे देखने के लिए हम 11 मार्च, 2016 को गये थे. वहां हो रहे काम को देख कर हमें काफी प्रसन्नता हुई. बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया का केंद्र पूसा में बने इसके लिए हम शुरू से प्रयासरत रहे, क्योंकि समस्तीपुर का इलाका कृषि के लिए खास रहा है. देश में तीन जगहों पर इसका केंद्र बना. इनमें से एक पूसा में है. उन्होंने कहा कि किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए फसल चक्र में बदलाव करना होगा. जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम की योजना का कार्यान्वयन इन चार समूहों बॉरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (पूसा, समस्तीपुर), बिहार कृषि विश्वविद्यालय (सबौर, भागलपुर) तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, (पूर्वी क्षेत्र, पटना) को करना है. चारो समूह मिलकर पूसा में जो काम हो रहा है, उसे देखेंगे और पूरे बिहार के संदर्भ में क्या होना चाहिए, उसे सुनिश्चित करेंगे.
उन्होंने कहा कि प्रथम चरण में बिहार के आठ जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों में इसे प्रारंभ किया जा रहा है. साथ ही साथ इन आठ जगहों पर पांच-पांच गांवों का चयन कर जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम भी कराये जायेंगे. इन आठ जिलों के बाद जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम को पूरे बिहार में लागू किया जायेगा. उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम का मकसद यह है कि वातावरण के अनुरूप किस प्रकार से किन-किन फसलों की खेती की जानी चाहिए. वर्ष 2016 में जब हम बॉरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया के पूसा केंद्र को देखने गये थे. उसी समय से हम चाह रहे थे कि इसकी शुरुआत पूरे बिहार में जल्द से जल्द हो जाये और मुझे खुशी है कि जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम का आज शुभारंभ हो गया है, इसके लिए राशि भी मंजूर कर दी गयी है. मुझे पूरा भरोसा है कि इस कार्यक्रम का परिणाम अच्छा होगा और इसके लिए जितनी धन राशि की आवश्यकता होगी, उसे राज्य सरकार उपलब्ध करायेगी. जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम का कार्यान्वयन जिन चारो समूहों द्वारा किया जाना है, मैं उन चारों समूहों के लोगों से कहूंगा कि जगह-जगह जाकर आप किसानों को समझाएं कि वे अपने खेतों में फसल अवशेष को ना जलाएं. फसल अवशेष उपयोगी हैं, इसे आप सभी मिलकर लोगों को समझाइए.
मुख्यमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण स्थिति धीरे-धीरे भयावह होती जा रही है. वर्ष 2007 में आयी बाढ़ से 22 जिलों के ढाई करोड़ लोग प्रभावित हुए थे, जबकि उसके ठीक अगले साल 2008 में कोसी त्रासदी हुई थी. इसके बाद वर्ष 2016 में गंगा का जलस्तर इतना ऊंचा उठा कि उसके दोनों किनारों का इलाका पूरी तरह से जलमग्न हो गया. वर्ष 2017 में फ्लैश फ्लड आया, वहीं 2018 में बिहार के सभी 534 प्रखंडों में से 80 ब्लॉक को सूखाग्रस्त घोषित करना पड़ा. जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण में आये बदलाव को देखते हुए हमने इस वर्ष 13 जुलाई को विधानमंडल सदस्यों की एक संयुक्त बैठक बुलायी, जो आठ घंटे तक चली. इसी बैठक में हमलोगों ने पूरे बिहार में जल-जीवन-हरियाली अभियान चलाने का निर्णय लिया. इस अभियान में जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम को भी जोड़ा गया है. जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत अगले 3 वर्षों में 24 हजार करोड़ रुपये की राशि खर्च कर 11 सूत्री कार्यक्रम को मिशन मोड में पूरा करना है, ताकि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हुए संकट से लोगों को निजात मिले. इसके लिए सोखता का निर्माण, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, वृहत पैमाने पर पौधरोपण, आहर-पईन, तालाब, सार्वजनिक कुओं, नलकूप का जीर्णोद्धार कराने के साथ ही उसे अतिक्रमणमुक्त कराया जायेगा.
बिहार में पहले ज्यादातर धान और गेहूं की ही बुआई हुआ करती थी, लेकिन पर्यावरण में बदलाव के कारण अब 10 प्रतिशत क्षेत्र में मक्के की बुआई की जा रही है. मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले बिहार में 15 जून से ही मॉनसून की शुरुआत हो जाती थी और औसतन 1200 से 1500 मिलीमीटर वर्षापात हुआ करती थी, लेकिन पिछले तीस सालों के वर्षापात के रिकॉर्ड को देखें तो औसतन 1500 मिलीमीटर से घटकर वर्षापात 1017 मिमी पर पहुंच गयी है. वहीं, विगत दस वर्षों के वर्षापात के आंकड़ो को देखने पर पता चलता है कि बिहार में औसतन वर्षापात घटकर 901 मिलीमीटर पर पहुंच गयी है. इस वर्ष भू-जल स्तर दक्षिण बिहार के साथ-साथ उतर बिहार के दरभंगा में भी काफी नीचे चला गया था.
मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले रोहतास और कैमूर के इलाके में ही खेतों में फसल अवशेष जलाये जाते थे, लेकिन अब यह सिलसिला पटना, नालंदा होते हुए उत्तर बिहार में भी पहुंच गया है, जो बहुत ही खतरनाक है. फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि विभाग ने कार्यक्रम सुनिश्चित किया है, ताकि लोगों को प्रेरित कर खेतों में फसल अवशेष जलाने की परंपरा पर रोक लगायी जा सके. फसल की कटाई के लिए बिहार में 1300 कंबाइन हार्वेस्टर हैं, जिससे कटाई करने पर फसल अवशेष खेतों में ही रह जाते हैं. खेतों में फसल अवशेष जलाये जाने की परंपरा पर पाबंदी लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के साथ-साथ हमलोग किसानों की मदद भी करेंगे.
उन्होंने कहा कि फसल कटाई के वक्त खेतों में फसलों का अवशेष नहीं रहे, इसके लिए रोटरी मल्चर, स्ट्रॉरिपर, स्ट्रॉबेलर एवं रिपर कम बाइंडर का उपयोग किसानों को करना होगा. इन यंत्रों की खरीद पर राज्य सरकार किसानों हो 75 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अतिपिछडे़ समुदाय के किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान दे रही है. अगर जरूरत पड़ी, तो अनुदान की राशि बढ़ायी जायेगी. लोगों को अपनी मानसिकता बदलकर फसल कटाई के लिए इन नये यंत्रों को उपयोग में लाना होगा. उन्होंने कहा कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है. फसल अवशेष प्रबंधन को भी जल-जीवन-हरियाली अभियान से जोड़ा जायेगा, इससे जलवायु परिवर्तन की समस्या से निबटा जा सकेगा.
उन्होंने कहा कि खेतों में बुआई के लिए हैपी सीडर और जीरो टीलेज मशीन का इस्तेमाल करने से कृषि में पानी के इस्तेमाल में भी कमी आयेगी. इसे ठीक ढंग से प्रचारित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोगों को प्रेरित करके ही जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटा जा सकेगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि कृषि फीडर के माध्यम से हर इच्छुक किसानों को काफी किफायती दर पर सिंचाई के लिए बिजली मुहैया करायी जा रही है. इस वर्ष के जुलाई तक जिन किसानों ने आवेदन दिये हैं, उन्हें इस साल जबकि जिन किसानों ने विद्युत कनेक्शन के लिए जुलाई के बाद आवेदन दिया है, उन्हें अगले वर्ष सिंचाई के लिए बिजली का कनेक्शन उपलब्ध कराया जायेगा. उन्होंने कहा कि झारखंड से अलग होंने के बाद बिहार का हरित आवरण मात्र नौ प्रतिशत ही रह गया था. वर्ष 2012 से हरियाली मिशन के तहत पूरे बिहार में 19 करोड़ पौधे लगाये गये, जिसके बाद बिहार का ग्रीन कवर एरिया बढ़कर 15 प्रतिशत हो गया. इसे बढ़ाकर 17 प्रतिशत तक ले जाना है.
जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत आठ करोड़ पौधे और लगाये जायेंगे. इस साल एक करोड़ से भी ज्यादा पौधे लगाये जा चुके हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति को यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि जलवायु परिवर्तन के बारे में बिहार के लोग भी सोच रहे हैं, लेकिन बहुत लोगों को विकास के साथ-साथ समाज सुधार के काम भी अच्छे नहीं लगते हैं. समाज सुधार के कार्य पर भी सवाल खड़े करते हैं, क्योंकि सभी मनुष्य कभी एक विचार के नहीं हो सकते हैं इसलिए इधर-उधर की बात करनेवालों के बारे में ना सोचकर सार्थक प्रयास करते रहना चाहिए.
इससे पहले मुख्यमंत्री सचिवालय स्थित ‘संवाद’ में आयोजित कार्यक्रम का मुख्यमंत्री ने दीप प्रज्वलित कर विधिवत उद्घाटन किया. कृषि विभाग के सचिव एन सरवन कुमार ने मुख्यमंत्री को पौधा भेंटकर उनका स्वागत किया. कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री के समक्ष जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम पर आधारित लघु फिल्म प्रदर्शित की गयी. कार्यक्रम को उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, कृषि, पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री प्रेम कुमार, कृषि विभाग के सचिव एन सरवन कुमार ने संबोधित किया. इस अवसर पर मुख्यमंत्री के परामर्शी अंजनी कुमार सिंह, मुख्य सचिव दीपक कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव चंचल कुमार, ग्रामीण विकास विभाग के सचिव अरविंद कुमार चौधरी, मुख्यमंत्री के सचिव मनीष कुमार वर्मा, बॉरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया के प्रबंध निदेशक अरुण कुमार जोशी, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (पूसा, समस्तीपुर) के कुलपति आरसी श्रीवास्तव, बिहार कृषि विश्वविद्यालय (सबौर, भागलपुर) के कुलपति अजय कुमार सिंह, मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी गोपाल सिंह, निदेशक कृषि आदेश तितरमारे सहित वैज्ञानिकगण, कृषि विशेषज्ञ, कृषकगण एवं विभागीय पदाधिकारीगण उपस्थित थे.