अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि जब हाल में ही वर्कफोर्स तय किया गया था और डिवीजन ने मंदी के दौरान भी बेहतर मुनाफा कमाया था, बावजूद एक विभाग को आउटसोर्स कर दिया गया, क्या इसमें यूनियन की सहमति भी शामिल है? यह उदाहरण कर्मचारियों के लिए भय का कारण बना हुआ है.
अन्य विभागों के री-आर्गेनाइजेशन के बाद जहां एक तरफ यूनियन को मिले प्रस्तावों के तहत बड़ी संख्या में कर्मियों का सरप्लस होना तय है, वहीं इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि यह सिलसिला यहीं रुक जायेगा, क्योंकि वर्कफोर्स तय करने के बाद भी विभाग को ही आउटसोर्स करने की परंपरा शुरू हो चुकी है. ऐसे मामलों को रोक पाने में यूनियन नेतृत्व या तो विफल साबित हो रहा है या इसमें उसकी सहमति भी सहभागिता बतायी जा रही है.

