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टाटा स्टील: ट्यूब डिवीजन से शुरुआत, मेडिकल एक्सटेंशन पर टेंशन यथावत, छंटनी में टारगेट पर स्टील वेज

जमशेदपुर: टाटा स्टील में पुराने ग्रेड के कर्मचारियों पर छंटनी की तलवार लटक गयी है. टाटा स्टील स्टील वेज वाले कर्मचारियों की संख्या कम करना चाहती है. ट्यूब डिवीजन से इसकी शुरुआत हो गयी है. मेडिकल एक्सटेंशन को लेकर अब भी टेंशन बरकरार है. मेडिकल एक्सटेंशन बंद करना भी स्टील वेज वाले कर्मचारियों को कम […]

जमशेदपुर: टाटा स्टील में पुराने ग्रेड के कर्मचारियों पर छंटनी की तलवार लटक गयी है. टाटा स्टील स्टील वेज वाले कर्मचारियों की संख्या कम करना चाहती है. ट्यूब डिवीजन से इसकी शुरुआत हो गयी है. मेडिकल एक्सटेंशन को लेकर अब भी टेंशन बरकरार है. मेडिकल एक्सटेंशन बंद करना भी स्टील वेज वाले कर्मचारियों को कम करने का ही एक हिस्सा है. कंपनी के विभिन्न विभागों के री-ऑर्गेनाइजेशन के लिए तय समय सीमा में एक माह बीत चुका है और शेष दो माह टाटा वर्कर्स यूनियन नेतृत्व के लिए चुनौती भरे होंगे. अगर यूनियन इसमें विफल होती है तो कर्मचारियों के मेडिकल एक्सटेंशन पर ग्रहण लगना तय है.
ट्यूब डिवीजन के उदाहरण से भयभीत है कर्मचारी
कंपनी प्रबंधन की पहल के बीच पुराने ग्रेड के कर्मचारियों का भविष्य यूनियन कैसे सुरक्षित कर पायेगा, इसे लेकर चर्चा आम हो गयी है. अगर पूर्व के उदाहरणों पर गौर किया जाये तो यह असंभव लगता है क्योंकि 2014 में ट्यूब्स डिविजन से लगभग 150 कर्मियों की छटनी करके उन्हें पुल में भेज दिया गया था और यूनियन उस घटना पर अपनी सहमति से इनकार करती रही. वर्ष 2016 में डिविजन का री-आर्गेनाइजेशन हुआ और वर्किंग फोर्स इन्हीं प्रभारियों के नेतृत्व में तय किया गया. इसी कड़ी में ट्यूब सिक्यूरिटी का भी वर्क फोर्स तय हुआ पर परस्पर मिली भगत से इसके कुछ कर्मियों को मिल में समायोजित कर दिया गया और जिन्होंने आॅपरेशन में जाना स्वीकार नहीं किया उनका पे रोल बदलकर टाउन सिक्यूरिटी में डाल दिया गया है. उनके स्थान पर एसआइएस प्राइवेट सिक्यूरिटी की तैनाती कर दी गयी है.

अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि जब हाल में ही वर्कफोर्स तय किया गया था और डिवीजन ने मंदी के दौरान भी बेहतर मुनाफा कमाया था, बावजूद एक विभाग को आउटसोर्स कर दिया गया, क्या इसमें यूनियन की सहमति भी शामिल है? यह उदाहरण कर्मचारियों के लिए भय का कारण बना हुआ है.

अन्य विभागों के री-आर्गेनाइजेशन के बाद जहां एक तरफ यूनियन को मिले प्रस्तावों के तहत बड़ी संख्या में कर्मियों का सरप्लस होना तय है, वहीं इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि यह सिलसिला यहीं रुक जायेगा, क्योंकि वर्कफोर्स तय करने के बाद भी विभाग को ही आउटसोर्स करने की परंपरा शुरू हो चुकी है. ऐसे मामलों को रोक पाने में यूनियन नेतृत्व या तो विफल साबित हो रहा है या इसमें उसकी सहमति भी सहभागिता बतायी जा रही है.

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