30.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

Independence day 2020 : हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती

Independence day 2020 : स्वतंत्रता अमूल्य है, तभी तो महाकवि तुलसीदास ने लिखा था- पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर. आजादी की लड़ाई बेशक इच्छाशक्ति के बल पर लड़ी गयी थी, लेकिन लोगों में जोश भरा था नारों, गीतों और कविताओं ने. आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम ऐसी कुछ गीतों और कविताओं को याद कर रहे हैं, जिसने स्वतंत्रता सेनानियों में जोश भरा था और जिन्हें वे अपना हथियार मानते थे. ये गीत और कविताएं आज भी हर भारतवासी के मन में जोश और गौरव का भाव उत्पन्न करती हैं और लोग भावुक हो जाते हैं. ‘वंदे मातरम्’‌ गीत तो आजादी की लड़ाई का सबसे ओजस्वी और प्रसिद्ध नारा था. यह गीत बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनंद मठ से है.

Independence day 2020 : स्वतंत्रता अमूल्य है, तभी तो महाकवि तुलसीदास ने लिखा था- पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर. आजादी की लड़ाई बेशक इच्छाशक्ति के बल पर लड़ी गयी थी, लेकिन लोगों में जोश भरा था नारों, गीतों और कविताओं ने. आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम ऐसी कुछ गीतों और कविताओं को याद कर रहे हैं, जिसने स्वतंत्रता सेनानियों में जोश भरा था और जिन्हें वे अपना हथियार मानते थे. ये गीत और कविताएं आज भी हर भारतवासी के मन में जोश और गौरव का भाव उत्पन्न करती हैं और लोग भावुक हो जाते हैं. ‘वंदे मातरम्’‌ गीत तो आजादी की लड़ाई का सबसे ओजस्वी और प्रसिद्ध नारा था. यह गीत बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनंद मठ से है.

स्वतंत्रता अमूल्य है, तभी तो महाकवि तुलसीदास ने लिखा था- पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर. आजादी की लड़ाई बेशक इच्छाशक्ति के बल पर लड़ी गयी थी, लेकिन लोगों में जोश भरा था नारों, गीतों और कविताओं ने. आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम ऐसी कुछ गीतों और कविताओं को याद कर रहे हैं, जिसने स्वतंत्रता सेनानियों में जोश भरा था और जिन्हें वे अपना हथियार मानते थे. ये गीत और कविताएं आज भी हर भारतवासी के मन में जोश और गौरव का भाव उत्पन्न करती हैं और लोग भावुक हो जाते हैं.

Undefined
Independence day 2020 : हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती 3

वन्दे मातरम्!

सुजलाम, सुफलाम् मलयज-शीतलाम्

शस्यश्यामलाम् मातरम्

वन्दे मातरम्

शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्

सुहासिनीम् सुमधुरभाषिणीम्

सुखदाम्, वरदाम्, मातरम्!

वन्दे मातरम्

वन्दे मातरम्

Undefined
Independence day 2020 : हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती 4

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

एक से करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,

देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,

अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,

हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है

खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,

आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा

हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में

समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का

वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ

गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको

उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना

हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से

अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा

‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में

मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा

हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा

Also Read: Independence Day 2020 Wishes, Images, Quotes: आजादी के त्योहार स्वतंत्रता दिवस पर यहां से भेजें की अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बधाई संदेश एवं शुभकामनाएं

झांसी की रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,

नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,

बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,

ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,

राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,

सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आई थी झांसी में।

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,

किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,

रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,

फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,

व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,

डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,

राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,

कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,

उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?

जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

रानी रोईं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,

उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,

सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,

‘नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार’।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,

वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,

बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

(कविता का अंश)

अरुण यह मधुमय देश

अरुण यह मधुमय देश हमारा।

जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को

मिलता एक सहारा।

सरस तामरस गर्भ विभा पर

नाच रही तरुशिखा मनोहर।

छिटका जीवन हरियाली पर

मंगल कुंकुम सारा।।

लघु सुरधनु से पंख पसारे

शीतल मलय समीर सहारे।

उड़ते खग जिस ओर मुँह किए

समझ नीड़ निज प्यारा।।

बरसाती आँखों के बादल

बनते जहाँ भरे करुणा जल।

लहरें टकरातीं अनंत की

पाकर जहाँ किनारा।।

हेम कुंभ ले उषा सवेरे

भरती ढुलकाती सुख मेरे।

मदिर ऊँघते रहते जब

जग कर रजनी भर तारा।।

हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती

‘अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,

प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!’

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी

सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!

अराति सैन्य सिंधु में, सुवाडवाग्नि से जलो,

प्रवीर हो जयी बनो – बढ़े चलो, बढ़े चलो!

Posted By : Rajneesh Anand

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें