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सचिन पायलट को कांग्रेस कर रही है नजर अंदाज? चुनाव में बढ़ सकती हैं मुश्किलें, जानें क्या है चुनावी समीकरण

Rajasthan Election 2023 - कांग्रेस ने राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए बुधवार को कोर कमेटी और चुनाव अभियान समिति समेत आठ समितियों का गठन किया है. जानें अब सचिन पायलट को लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल

राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने कमर कस ली है. चुनाव से पहले प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की राह आसान नजर नहीं आ रही है. जी हां…पायलट को चुनाव से संबंधित गठित 8 कमेटियों में किसी का भी अध्यक्ष नहीं बनाया गया है जिसके बाद कई तरह के कयास लगाये जाने लगे हैं.

वहीं सचिन पायलट के धुर विरोधी माने जाने वाले नेताओं को इन समितियों में जगह दी गई है. राजस्थान की राजनीति की जानकारी रखने वाले लोगों की मानें तो कांग्रेस आलाकमान की रणनीति के अलग-अलग मायने नजर आ रहे हैं. चुनाव में पायलट को सीधे तौर पर दूर ही रखा है. जबकि पायलट से जूनियर नेताओं को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है. इन नामों में सबसे चौंकाने वाला नाम मंत्री गोविंद राम मेघवाल का है. मेघवाल को कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है.

चुनाव अभियान समिति समेत आठ समितियों का गठन

कांग्रेस ने राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए बुधवार को कोर कमेटी और चुनाव अभियान समिति समेत आठ समितियों का गठन किया है. पार्टी के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर रंधावा की अध्यक्षता में बनी 10 सदस्यीय कोर कमेटी में प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को शामिल किया गया है. कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से इस बाबत एक विज्ञप्ति जारी की गई है जिसके अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कोर कमेटी, समन्वय समिति, चुनाव अभियान समिति, घोषणापत्र समिति, रणनीतिक समिति, मीडिया एवं संचार समिति, प्रचार एवं प्रकाशन समिति और प्रोटोकॉल समिति का गठन किया.

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समन्वय समिति में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के अलावा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह समेत कई नेताओं को शामिल किया गया है. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ नेता गोविंद राम मेघवाल की अध्यक्षता में चुनाव अभियान समिति का गठन किया गया है. प्रदेश सरकार के मंत्री अशोक चांदना इस समिति के सह-अध्यक्ष और राजकुमार शर्मा संयोजक बनाए गए हैं. वहीं विधानसभा अध्यक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी को घोषणापत्र समिति का अध्यक्ष बनाया गया है. सांसद नीरज डांगी इस समिति के सह-अध्यक्ष और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ संयोजक होंगे.

प्रमोद जैन भाया की अध्यक्षता में प्रोटोकॉल समिति

वहीं कांग्रेस ने हरीश चौधरी की अध्यक्षता में रणनीतिक समिति, मंत्री ममता भूपेश के नेतृत्व में मीडिया एवं संचार समिति, मुरारी लाल मीणा की अगुवाई में प्रचार एवं प्रकाश समिति और प्रमोद जैन भाया की अध्यक्षता में प्रोटोकॉल समिति बनाई है. आपको बता दें कि राजस्थान में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं. कुछ दिन पहले ही कांग्रेस ने दावा किया था कि सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के रिश्तों में जो खटास थी वो दूर कर ली गई है और बिना किसी सीएम फेस के पार्टी चुनावी मैदान में उतरेगी.

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सचिन पायलट को रखा गया चुनाव से दूर ?

सीएम अशोक गहलोत सहित कई बड़े नेता राजस्थान में सरकार रिपीट होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह के कमेटियों का गठन किया गया है. उससे साफ जाहिर होता है कि पार्टी में गुटबाजी अभी भी जारी है और इसका प्रभाव चुनाव में देखने को मिल सकता है. यहां चर्चा कर दें कि कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली में सीएम गहलोत और सचिन पायलट के बीच सुलह कराने का काम किया था. हालांकि, पायलट को पार्टी ने एआईसीसी का सदस्य बनाया है, लेकिन जिस तरह ते चुनाव में उनको बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है, उससे एक बार फिर खींचतान बढ़ने की संभावना है. राजनीति के जानकारों की मानें तो सचिन पायलट को जिम्मेदारी नहीं देकर कांग्रेस आलाकमान ने साफ संकेत दिया है कि उन्हें चुनाव से दूर ही रखा जाएगा.

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सचिन पायलट को करते हैं लोग पसंद

राजस्थान कांग्रेस में सीएम अशोक गहलोत के बाद सचिन पायलट सबसे लोकप्रिय चेहरा माने जाते हैं. चुनाव से पहले पायलट को नजर अंदाज करना कांग्रेस को महंगा पड़ सकता है. सचिन पायलट की न केवल अपने गुर्जर समाज में अच्छी पकड़ है, बल्कि समाज के अन्य वर्गों में भी वे लोकप्रिय हैं. जानकारों की मानें तो राजस्थान में एक दर्जन ऐसे सीटें है जहां के गुर्जर वोटर्स हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं. इन सीटों पर सचिन पायलट पर गुर्जर लोग भरोसा जताते हैं. यानी पायलट की खासी पकड़ इन सीटों पर है. राजनीति के जानकारों के अनुसार सचिन पायलट की अनदेखी का लाभ बीजेपी उठा सकती है. पायलट समर्थक कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं.

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उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव 2018 में सचिन पायलट ने बतौर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए ही टिकट बांटने का काम किया था. टिकट बंटवारे में सचिन पायलट की अहम भूमिका रही थी. इसका परिणाम यह हुआ कि सचिन पायलट ने कांग्रेस के भीतर ही अपने समर्थकों का अलग गुट बना लिया. इन्हीं समर्थकों के दम पर पायलट साढ़े चार साल तक गहलोत सरकार को परेशान करते रहे.

सचिन पायलट ने जब की थी बगावत

यदि आपको याद हो तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस नेता सचिन पायलट में हमेशा से सीएम की कुर्सी को लेकर खींचतान मचती रही है. साल 2020 की बात करें तो इस साल सचिन पायलट ने पार्टी से बगावत कर दी थी. कांग्रेस पार्टी से बगावत पर उतरे पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट गुट का दावा था कि उनके साथ 30 विधायक हैं. लेकिन, बाद में समीकरण कुछ बदलते नजर आये. पायलट समर्थक विधायकों की संख्या घटकर अब 25 रह गयी थी. यह संख्या बाद में घटकर 22 हो गयी. इस वक्त कांग्रेस ने स्थित को नियंत्रण में किया और गहलोत सरकार ने अपने पांच साल पूरे किये.

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2020 से जारी है गहलोत और पायलट के बीच विवाद

राजस्थान में साल 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया था. इसके बाद से ही गहलोत और पायलट के बीच सत्ता के लिए संघर्ष जारी है. 2020 में सचिन पायलट ने गहलोत सरकार के खिलाफ विद्रोह भी किया, जिसके बाद से उन्हें राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के पद से हटाने का काम पार्टी ने किया. साल 2023 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में कांग्रेस ने पायलट और गहलोत के बीच सियासी टकराव खत्म करने को लेकर कुछ दिन पहले अहम बैठक की थी. इसी में तय किया गया था कि कांग्रेस यह चुनाव बिना मुख्यमंत्री के चेहरे पर लड़ेगी.

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कांग्रेस की चेतावनी को सचिन पायलट ने किया था नजर अंदाज

पिछले साल, जब सीएम अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की संभावना जतायी जा रही थी तो राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन को प्रभावित करने का आलाकमान का प्रयास फेल होता नजर आया था. दरअसल, इस वक्त सीएम गहलोत के वफादारों ने अपनी एड़ी-चोटी लगा दी और विधायक दल की बैठक नहीं होने दी थी. राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने बीते महीने पार्टी की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया था और वसुंधरा राजे सरकार के दौरान भ्रष्टाचार की जांच की मांग को लेकर गहलोत पर निशाना साधा था. यही नहीं वे एक दिन के उपवास पर भी बैठ गये थे.

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क्या है राजस्थान का ट्रेंड

पिछले छह विधानसभा चुनाव का इतिहास को उठाकर देख लें तो राजस्थान का ट्रेंड समझ में आ जाता है. जनता हर साल सरकार बदल देती है.

1. अशोक गेहलोत (कांग्रेस)-17 दिसंबर 2018 से अबक

2. वसुंधरा राजे सिंधिया(बीजेपी)-13 दिसंबर 2013 से 16 दिसंबर 2018

3. अशोक गेहलोत (कांग्रेस)-12 दिसंबर 2008 से 13 दिसंबर 2013

4. वसुंधरा राजे सिंधिया (बीजेपी)-08 दिसंबर 2003 से 11 दिसंबर 2008

5. अशोक गहलोत(कांग्रेस)-01 दिसंबर 1998 से 08 दिसंबर 2003

6. भैरों सिंह शेखावत(बीजेपी)-04 दिसंबर 1993 से 29 नवंबर 1998

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