Mainpuri Massacre: उत्तर प्रदेश के देहुली में दलित नरसंहार मामले में मैनपुरी जिले की कोर्ट ने 44 साल बाद मंगलवार को अपना फैसला सुनाया. अदालत ने तीन आरोपी रामसेवक, कप्तान सिंह और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई. इस हत्याकांड में 17 लोगों को आरोपी ठहराया गया था. जिसमें 14 की पहले ही मौत हो चुकी है. विशेष न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने इस मामले में कप्तान सिंह (60), रामपाल (60) और राम सेवक (70) को दोषी ठहराते हुए उन्हें मौत की सजा सुनाई. अदालत ने दोषियों पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया.
1981 में 24 दलितों की कर दी गई थी हत्या
सरकारी वकील रोहित शुक्ला ने बताया, “नरसंहार 18 नवंबर 1981 को जसराना थानाक्षेत्र के दिहुली गांव में हुआ था, जब संतोष सिंह उर्फ संतोषा और राधेश्याम उर्फ राधे के नेतृत्व में डकैतों के एक गिरोह ने दलित समुदाय पर अंधाधुंध गोलीबारी की थी. घटना में महिलाओं और बच्चों समेत 24 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी. इसके अलावा 12 अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. वारदात के अगले दिन दिहुली निवासी लायक सिंह ने इस मामले में मुकदमा दर्ज कराया था और विस्तृत जांच के बाद संतोष और राधे समेत 17 डकैतों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था. शुरू में मामले की सुनवाई मैनपुरी के विशेष न्यायाधीश (डकैती प्रभावित क्षेत्र –डीएए) की अदालत में शुरू हुई थी, लेकिन बाद में इसे इलाहाबाद के सत्र न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था.”
पुलिस की वर्दी में 17 डकैतों ने दलितों की कर दी थी हत्या
18 नवंबर 1981 की शाम को पुलिस की वर्दी पहने 17 डकैतों के एक गिरोह ने मैनपुरी के देहुली में 24 दलितों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस मामले में सभी आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास) और 396 (हत्या के साथ डकैती) के तहत केस दर्ज कराया गया था.