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justice: अपराध रोकने के लिए हर राज्य में फॉरेंसिक संस्थान बनाने का है लक्ष्य 

फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाने के लिए 2009 और 2020 में की गई पहल से न केवल प्रशिक्षित मैनपॉवर उपलब्ध होगा, बल्कि अनेक क्षेत्र में अनुसंधान के रास्ते भी खुलेंगे. फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी जटिल केसों में फॉरेंसिक आकलन करने के लिए विश्वसनीय संस्थान के रूप में सामने आने का काम किया है. देश की फॉरेंसिक लैब्स आधुनिक तकनीक मुहैया कराने के मंच के रूप में भी विकसित हुई है.

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justice: फॉरेंसिक साइंस के बिना समय पर न्याय दिलवाना और दोषसिद्धि की दर बढ़ाना संभव नहीं है. मौजूदा समय में अपराध का परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है. अब अपराधी तकनीक, सूचना एवं संचार के अलग-अलग माध्यमों का उपयोग करते हैं, जिससे अपराध अब सीमा रहित हो गया है. पहले अपराध किसी जिले, राज्य या देश के किसी छोटे से हिस्से में होता था, लेकिन अब क्राइम बॉर्डरलेस हो चुका है. क्राइम अब शहर, राज्य और देश के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को भी लांघने का प्रयास कर रहा है.

ऐसे में फॉरेंसिक साइंस का महत्व बहुत बढ़ गया है. राष्ट्रीय न्यायालयिक विज्ञान विश्वविद्यालय (एनएफएसयू) द्वारा आयोजित अखिल भारतीय न्यायालयिक विज्ञान सम्मेलन 2025 को मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर वर्ष 2009 में गुजरात फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी का जो पौधा लगाया था आज वह नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी वट वृक्ष के रूप में दुनिया में अपनी तरह की पहली यूनिवर्सिटी बन गयी है. एक अक्टूबर 2020 को जब नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई, उस समय नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री एवं वह देश के गृह मंत्री के पद पर काबिज थे. 

फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाने के लिए 2009 और 2020 में की गई पहल से हमें न केवल प्रशिक्षित मैनपॉवर उपलब्ध होगा, बल्कि अनेक क्षेत्र में अनुसंधान के रास्ते भी खुलेंगे. फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी जटिल केसों में फॉरेंसिक आकलन करने के लिए विश्वसनीय संस्थान के रूप में सामने आने का काम किया है. देश की फॉरेंसिक लैब्स को आधुनिक तकनीक मुहैया कराने के मंच के रूप में भी विकसित हुई है. यूनिवर्सिटी में डिग्री, डिप्लोमा, पीएचडी, अनुसंधान सहित कई प्रकार के पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं. कई स्वदेशी तकनीक भी यूनिवर्सिटी ने अपनाई और विकसित की हैं और उनकी टूलकिट्स बनाकर देशभर की पुलिस को देने का काम किया है.


फॉरेंसिक साइंस अपराध रोकने में होगा मददगार


केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि मौजूदा समय में देश में अपराध एवं अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (सीसीटीएनएस) के माध्यम से 100 फीसदी पुलिस स्टेशन कम्प्यूटराइज हो चुके हैं. लगभग 14 करोड़ 19 लाख एफआईआर और उनसे जुड़े दस्तावेज लेगेसी डेटा के साथ ऑनलाइन उपलब्ध करा दिए गए हैं. 22 हजार अदालतों को ई-कोर्ट सुविधा से लैस किया गया. 2 करोड़ 19 लाख का डेटा ई-प्रिज़न के माध्यम से उपलब्ध है. एक करोड़ 93 लाख केस का अभियोजन डेटा, ई-प्रॉसिक्यूशन के माध्यम से उपलब्ध है. 39 लाख फॉरेंसिक साक्ष्य ई-फॉरेंसिक के माध्यम से ऑनलाइन उपलब्ध है.

उन्होंने कहा कि इससे 16 लाख अलर्ट जनरेट हो चुके हैं. नेशनल ऑटोमेटेड फिंगरप्रिंट आइडेंटिफिकेशन सिस्टम में 1 करोड़ 53 लाख आरोपियों के फिंगर प्रिंट उपलब्ध हैं और यह हर पुलिस स्टेशन के साथ साझा किए गए हैं. इसके अलावा नेशनल डेटाबेस ऑफ ह्यूमन ट्रैफिकिंग ऑफेंडर भी उपलब्ध है और यह सारा डेटा अभी अलग-अलग है, लेकिन गृह मंत्रालय अगले कुछ वर्षों में आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेन्स का उपयोग करके यह डेटा जांच से जुड़ी टीमों को सौंप देगा. इसके कारण अपराध रोकने की रणनीति बनानी बहुत सरल हो जाएगी. 

गृह मंत्री ने कहा कि वर्ष 2020 में ही हमने नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी स्थापित कर दी थी, जबकि तीन नए आपराधिक कानून 2024 में लागू हुए. उन्होंने कहा कि देश के अलग-अलग राज्यों में नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी के सात परिसर स्थापित हो चुके हैं और अगले 6 महीने में 9 परिसर और स्थापित किए जायेंगे. इसके अलावा 10 और परिसर की स्थापना प्रस्तावित है. हर राज्य में ऐसा संस्थान बनाने की योजना है.  

बाबा साहेब के विचार को आगे बढ़ाने की कोशिश

भारत रत्न बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए अमित शाह ने कहा कि बाबासाहेब ने भारत के संविधान को अंतिम स्वरूप देने का काम किया. हर विषय पर हजारों घंटों की गहन चर्चा के बाद संविधान को अंतिम रूप देना कठिन काम था. लेकिन बाबासाहेब ने देश की जरूरतों को ध्यान में रख कर और अनेक वर्षों तक संविधान की प्रासंगिकता बनाए रखने के विचार के साथ सभी पहलुओं को समाहित कर संविधान की रचना की. संविधान महज एक पुस्तक नहीं बल्कि इसमें हर नागरिक के शरीर, संपत्ति और सम्मान की रक्षा की व्यवस्था मौजूद है.

इन तीनों की रक्षा के साथ जुड़े क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को पुख्ता करने में अब फॉरेंसिक साइंस अत्यंत उपयोगी भूमिका निभा रहा है. प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार न्याय प्रणाली को जन केंद्रित और वैज्ञानिक बनाने के लिए प्रयासरत है. आपराधिक न्याय प्रणाली को पुख्ता करने के लिए भारत सरकार भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के रूप में तीन नए आपराधिक कानून लागू करने का काम किया है. इस कानून का मकसद सभी को तय समय में न्याय मुहैया कराना है.

कार्यक्रम में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायाधीश वी रामासुब्रमनियन, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी, राज्यसभा सांसद एवं बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा, केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन और एनएफएसयू के कुलपति डॉक्टर जेएम व्यास सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे. 

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