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जानें, अब कौन सा दांव खेलकर फांसी की सजा को टाल सकता है याकूब मेमन!

नयी दिल्ली :मुंबई विस्फोट के आरोपी याकूब अब्दुल रजाक मेमन की फांसी पर फैसला हो चुका है. पहले खबर थी कि उसे 30 जुलाई को फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया जायेगा. मीडिया में भी तारीख और फांसी दिये जाने का वक्त आ गया था, लेकिन अचानक खबर आयी कि फांसी अब 15 दिनों के […]

नयी दिल्ली :मुंबई विस्फोट के आरोपी याकूब अब्दुल रजाक मेमन की फांसी पर फैसला हो चुका है. पहले खबर थी कि उसे 30 जुलाई को फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया जायेगा. मीडिया में भी तारीख और फांसी दिये जाने का वक्त आ गया था, लेकिन अचानक खबर आयी कि फांसी अब 15 दिनों के बाद होगी क्योंकि यह वक्त याकूब को कानूनी रूप से दिया जाना जरूरी है, ताकि वह अपने बचाव में कानूनी कार्रवाई कर सके और परिवार वालों के साथ कुछ वक्त बिता सके.

याकूब ने आज नियमों का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर की है कि उसे नियमों के खिलाफ जाकर टाडा कोर्ट ने फांसी की सजा दी थी. याकूब ने यह बयान भी दिया कि अभी उसके लिए कानून के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं और उसने हार नहीं मानी है. याकूब का यह बयान कई मायनों में उसकी फांसी से बचने की संभावनाओं की ओर इशारा करता है. तो आइए एक नजर डालते हैं याकूब के उन दांवपेंचों पर जिसके दम पर वह फांसी की सजा को टाल सकता है.

सॉलिसिटर जनरल का बयान और सरकार की नरमी

राष्ट्रपति से दया याचिका खारिज होने के बाद याकूब ने राज्यपाल को दया याचिका भेजी. इस प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा,राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज कर देने के बाद क्या गवर्नर के सामने दया याचिका दायर कर सकते हैं? इस तरह की याचिका की कोई संख्या फिक्स है या नहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल खड़े किये कि क्या इस मामले में कोई कानून बनाने की जरूरत है, क्योंकि इस मामले में कानून में कमी है. इस सवाल के जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अनसाउंड लीगल प्रिंसिपल के कारण इस तरह की याचिका दायर की जा सकती है. हालांकि सॉलिसिटर जनरल ने यह साफ कर दिया कि इस प्रकार बार- बार याचिका दायर करना प्रकिया का दुरुपयोग करना है. याकूब की याचिका फिलहाल राज्यपाल के पास है.

लंबी कानूनी प्रक्रिया का सहारा

याकूब मेनन को आरोपी से दोषी साबित करने में कानून को 22 साल का लंबा वक्त लग गया. ऐसे में याकूब अब इस हथियार को अपनी फांसी को टालने के लिए इस्तेमाल कर सकता है. उसने राज्यपाल के पास अपनी दया याचिका दायर कर रखी है. इसके अलावा उसने सुप्रीम कोर्ट में भी एक अर्जी दाखिल की है. याकूब टाडा कोर्ट में लिये गये फैसलों को कानून और नियमों के विरुद्ध बता रहा है. राज्यपाल के पास लंबित याचिका पर फैसला आने में वक्त लगेगा. याकूब द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका का एक और कारण यह भी है आखिरी पीटिशन खारिज होने और फांसी के बीच कम से कम 14 दिन का वक्त होना चाहिए. याकूब कानून की इस लंबी प्रक्रियाओं से अच्छी तरह वाकिफ है.

मेडिकल ग्राउंड भी है एक हथियार

याकूब मेनन मेडिकल ग्राउंड को भी एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है. फांसी तभी हो सकती है जब याकूब शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ हो. ऐसे में याकूब के वकील अनिल गेड़ाम उसकी सेहत को लेकर भी एक आधार बना सकते हैं, संभव है कि इस हथियार के जरिये भी याकूब की फांसी को कुछ दिनों तक टाला जा सकता है.

भारत में मृत्युदंड के खिलाफ माहौल

भारत में मृत्युदंड के खिलाफ एक माहौल बन रहा है,मानवाधिकार के हक में आवाज उठाने वाली संस्थाएं लगातार मौत की सजा पर सवाल खड़ा करती रही है. विश्व में कई ऐसे देश हैं, जहां मौत की सजा पर रोक लगा दी गयी है. वहीं भारत समेत कई ऐसे देश है जहां मृत्युदंड अभी भी सजा के रूप में कायम है.याकूब इन उम्मीदों के सहारे अपनी फांसी को ज्यादा से ज्यादा समय के लिए टालना चाहता है ताकि उसके बचने की संभानवा अधिक प्रबल हो.

Prabhat Khabar Digital Desk
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