नयी दिल्ली : किसी भारतीय उच्च न्यायालय की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ का कहना है कि उन्हें अपनी सेवा के शुरुआती वर्षों में लैंगिक भेदभाव का सामना करना पडा था, लेकिन उन्होंने दृढ रुख अपनाया और यह सीखा कि एक कनिष्ठ पद से शीर्ष पद तक कैसे पहुंचा जाता है. 84 वर्षीय लीला सेठ ने अपनी वकालत पटना उच्च न्यायालय में शुरू की और उसके बाद वह आयकर विभाग के लिए कनिष्ठ स्थायी वकील बन गयी. उन्होंने कलकत्ता जाने से पहले पटना में 10 वर्ष बिताये.
अंतत: उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बसने का निर्णय किया जहां दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय दोनों स्थित हैं. उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली में संवैधानिक और कर मामलों सहित कानून के सभी पहलुओं को लेकर पांच वर्ष तक वकालत करने के बाद मुझे जनवरी 1977 में उच्चतम न्यायालय का एक वरिष्ठ अधिवक्ता बना दिया गया. इसके बाद 25 जुलाई 1978 को मुझे दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया.’’
उन्होंने हाल में पत्रिका ‘‘द इक्वेटर लाइन’’ में लिखे एक लेख में लिखा है, ‘‘परंपरा यह थी कि नया न्यायाधीश शपथ ग्रहण करने के बाद मुख्य न्यायाधीश के साथ अदालत में बैठेगा ताकि वह उसके अनुभव से लाभ प्राप्त कर सके. यद्यपि मुख्य न्यायाधीश अपने रुढिवादी विचारों के चलते किसी महिला के साथ बैठने को लेकर आशंकित थे, क्योंकि इसका मतलब न केवल साथ में खुली अदालत में बैठना था बल्कि चर्चा और निर्णय के लिए बंद चैंबर में भी साथ बैठना पडता.’’