अच्युतानंद मिश्र को ‘भारत भूषण अग्रवाल कविता पुरस्कार 2017’ देने की घोषणा हुई है. उन्हें यह पुरस्कार उनकी कविता ‘बच्चे धर्म युद्ध लड़ रहे हैं’ के लिए दिया जा रहा है. यह कविता ‘हंस’ पत्रिका में जनवरी 2016 में प्रकाशित हुई थी. इस पुरस्कार की स्थापना तार-सप्तक के कवि भारत भूषण अग्रवाल की स्मृति में उनकी पत्नी बिंदु अग्रवाल ने वर्ष 1979 में की थी. पुरस्कार समिति के निर्णायक मंडल में अशोक वाजपेयी, अरुण कमल, उदय प्रकाश, अनामिका और पुरुषोत्तम अग्रवाल हैं, जो हर वर्ष बारी-बारी से वर्ष की सर्वश्रेष्ठ कविता का चयन करते हैं. इस वर्ष निर्णय करने वालों में अनामिका की भूमिका प्रमुख थी.
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‘भारत भूषण अग्रवाल कविता पुरस्कार 2017’ की आड़ में कवयित्री अनामिका का चरित्र हनन, बवाल
अच्युतानंद मिश्र को ‘भारत भूषण अग्रवाल कविता पुरस्कार 2017’ देने की घोषणा हुई है. उन्हें यह पुरस्कार उनकी कविता ‘बच्चे धर्म युद्ध लड़ रहे हैं’ के लिए दिया जा रहा है. यह कविता ‘हंस’ पत्रिका में जनवरी 2016 में प्रकाशित हुई थी. इस पुरस्कार की स्थापना तार-सप्तक के कवि भारत भूषण अग्रवाल की स्मृति में […]
लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इस पुरस्कार की घोषणा के बाद एक नया विवाद खड़ा हो गया है. साहित्यकार कृष्ण कल्पित ने एक फेसबुक पोस्ट लिखा -अनामिका पिछले कुछ वर्षों से युवा कवियों को अपनी कविता के साथ अपने घर बुलाती रहती हैं. उन्होंने उनमें से एक युवा कवि का चुनाव किया है. इसमें किसी को क्यों एतराज हो रहा है. यह उनका व्यक्तिगत फैसला है, हमें उसका सम्मान करना चाहिए. किसी को दाढ़ी वाला पसंद आता है, तो किसी को सफाचट. कल्पित जी ने यह पोस्ट हैशटैग ‘भारत भूषण अग्रवाल कविता पुरस्कार 2017’ के साथ डाला था. लेकिन जब वे इस पोस्ट के कारण ट्रोल होने लगे, तो उन्होंने यह कहते हुए यह पोस्ट हटा दिया कि मेरे कुछ मित्रों को इस पोस्ट पर ऐतराज है. लेकिन उन्होंने सफाई दी कि मेरे पोस्ट को मिसरीड किया जा रहा है.
हालांकि उनके इस पोस्ट पर कई लोगों ने कड़ी प्रतक्रिया जतायी. लेकिन सपना सिंह ने तो पूरा पोस्ट ही उनके विरोध में लिख डाला है. उन्होंने कृष्ण कल्पित को फेसबुक पर टैग करते हुए लिखा है-महाशय! आपकी उम्र देखते हुए आपको आदरणीय कहना चाहिए पर ये शब्द दर असल आपके लिए इस्तेमाल करने पर अपनी महत्ता खो देगा . आप खासे अनुभव पाये व्यक्ति है फिर भी आपसे कुछ कह देने की इच्छा वश यहां पधारी हूं. उन्होंने लिखा है कि पुरस्कर पर सहमति-असहमति हो सकती है, किंतु असहमति दर्ज करने के लिए शब्दों का ऐसा अश्लील प्रयोग, अश्लील आरोप छि: . आप असहनीय व्यक्ति है .
वहीं स्त्रीकाल पत्रिका के संपादक संजीव चंदन लिखते हैं-सारे नमूने हिंदी साहित्य ने ही पाल रखे हैं. अब इन जनाब को देखें क्या लिख रहे हैं, क्या बोल रहे हैं….. महिलाओं के साथ साहित्य में यूं ही बेहूदगियां की जाती हैं. इस आदमी को बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए.
प्रसिद्ध लेखक अनंत विजय लिखते हैं, लेखिकाओं को विरोधस्वरूप ‘उनको’ (जिन्होंने अनामिका जी का अपमान किया) सामूहिक रूप से अनफ्रेंड कर देना चाहिए. हालांकि अनंत विजय ने कल्पित जी का नाम नहीं लिया है. अनंत विजय के इस पोस्ट पर कवि और लेखक प्रेम जनमेजय भी सहमत नजर आ रहे हैं.
लीना मल्होत्रा लिखती हैं- कृष्ण कल्पित ने यह पोस्ट अब हटा ली है. क्या अब वह ऐसा नहीं सोचते या वह डर गये. स्त्रीवाद के समर्थन में खड़े तमाम साहित्यकारों को लेखन और व्यक्तित्व की इस फांक को देखना चाहिए. वरिष्ठ कवयित्री और एक गरिमामयी स्त्री के लिए खटिक की बकरी जैसी टिप्पणी लिखने वाले इस सामंती पुरुष का असली चरित्र यह है.
कृष्णा कल्पित के इस पोस्ट पर साहित्य जगत में जैसी बहस छिड़ गयी है, वह चर्चा का विषय बन चुकी है. आखिर क्यों हिंदी साहित्य जगत में किसी पुरस्कार की घोषणा के बाद इस तरह की स्तरहीन बहस छिड़ जाती है. पुरस्कृत कोई एक व्यक्ति या रचना होती है, इसका यह अर्थ कदापि नहीं होता कि उससे बेहतर कोई रचना नहीं होगी या फिर उस पुरस्कार से किसी रचना का अपमान हुआ हो. ऐसे में अनर्गल और स्तरहीन बातें बेमानी सी हो जाती हैं. साथ ही ऐसा भी प्रतीत होने लगता है कि साहित्य जगत की कुंठा उभरकर सामने आ गयी है. किसी पुरस्कार पर सहमति-असहमति हो सकती है किंतु इस तरह किसी महिला के चरित्रहनन को कैसे तर्कसंगत ठहराया जा सकता है, यह बात साहित्य जगत के दिग्गजों के साथ-साथ नवोदितों को भी सोचनी होगी.
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