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प्राणायाम से फेफड़े बनते हैं मजबूत

तनाव से छुटकारा पाने के लिए प्राणायाम बहुत उपयोगी अभ्यास है. यह प्रक्रिया शक्तिशाली है, अत: शरीर को धीरे-धीरे इसके लिए तैयार करना पड़ता है. इससे फेफड़ों का व्यायाम होता है और तंत्रिका तंत्र संतुलित होते हैं. मध्यवर्ती नाड़ी संस्थान को शक्ति मिलतर है. प्राणायाम के अभ्यास से आत्मविश्वास बढ़ता है तथा मस्तिष्क पर नियंत्रण […]

तनाव से छुटकारा पाने के लिए प्राणायाम बहुत उपयोगी अभ्यास है. यह प्रक्रिया शक्तिशाली है, अत: शरीर को धीरे-धीरे इसके लिए तैयार करना पड़ता है. इससे फेफड़ों का व्यायाम होता है और तंत्रिका तंत्र संतुलित होते हैं. मध्यवर्ती नाड़ी संस्थान को शक्ति मिलतर है. प्राणायाम के अभ्यास से आत्मविश्वास बढ़ता है तथा मस्तिष्क पर नियंत्रण प्राप्त होता है. प्राणायाम का अभ्यास आसनों के बाद किया जाता है. दमा के लिए निम्नलिखिति प्रणायााम महत्वपूर्ण है-
यौगिक श्वसन : यह तनाव को खत्म करता है तथा सजग बनाता है. हममें से 90% लोग गलत तरीके से सांस लेते हैं. अत: यौगिक श्वसन क्रिया से श्वास लेने का सही तरीके का पता चलता है.
नाड़ीशोधन प्राणायाम : इसके अभ्यास से इड़ा और पिंगला नाड़ी संतुलित होती है, जो स्नायु तंत्र से जुड़ी होती हैं. संतुलन के बाद रोगी शारीरिक व मानसिक स्तर पर बेहतर अनुभव करता है.
कुंजल व जालंधर बंध के साथ भस्त्रिका प्राणायाम : फेफड़ों को शक्ति मिलती है तथा श्वसन क्षमता में वद्धि होती है.
कपालभाती प्राणायाम : यह फेफड़े खाली करके शुद्ध वायु ग्रहण करने योग्य बनाता है, जो दमा रोगी के लिए उपयोगी है, क्योंकि उन्हें सांस छोड़ने में तकलीफ होती है.
उज्जायी प्राणायाम : इसके अभ्यास से शरीर को प्रर्याप्त आॅक्सीजन मिलता है.भ्रामरी प्राणायाम : यह प्राणायाम स्नायुु तंत्र को शक्तिशाली बनाता है तथा क्षीण और असंतुलित तंत्रिका तंत्र में पुन: संतुलन लाता है. इसके नियमित अभ्यास से श्वसन क्रिया पर नियंत्रण होता है, जिससे दमा के दौरे को टाला जा सकता है.
क्या होता है एटाेपिक मार्च
सांस की एलर्जी अस्थमा एलर्जिक राइनाइटिस, हे फीवर (आंख, नाक से पानी आना, लाल हो जाना, आंख में खुजली, नाक का जाम होना) आदि के कारण हो सकता है. त्वचा की एलर्जी एग्जिमा, आर्टीकेरिया के रूप में आता है. दोनों के होने का तरीका एक ही होता है. यह आनुवंशिक भी होता है. इस रोग के होने पर खून में एंटीबॉडी आइजीइ लेवल बढ़ा मिलता है.
ऐसा देखा गया है कि जिन बच्चों को बचपन में त्वचा में सूखापन, खुजली एवं एग्जिमा होता है, उनमें कुछ वर्षों (चार-पांच वर्षों) के बाद अस्थमा होने की आशंका अधिक होती है और उम्र बढ़ने पर एलर्जिक राइनाइटिस होता है. इसे हम एटोपिक मार्च कहते हैं. शोधों में पता चला है कि जिन बच्चों में एटोपिक डरमेटाइटिस होता है उनमें त्वचा में फिलाग्रीन नामक प्रोटीन कम बनता है क्योंकि उसे बनानेवाला जीन खराब होता है.
फिलाग्रीन में गड़बड़ी के कारण त्वचा के बाहरी लेयर जो त्वचा का कवच कहलाता है वह कमजोर हो जाता है. इसके कारण त्वचा में पानी रोक कर रखने की क्षमता कम हो जाती है. इससे त्वचा का बचा-खुचा पानी भी सूख कर त्वचा को खुश्क कर देती है. इससे खुजली शुरू होती है, जो आगे चल कर एग्जिमा में बदल जाती है. बाहरी लेयर के कमजोर होने से एलर्जन, जीवाणु और फफूंद भी आसानी से त्वचा में प्रवेश करते हैं और एंटीबॉडी आइजीइ को बढ़ाते हैं. इससे श्वासनली की एलर्जी भी होती है.
कैसे रोकें एटोपिक मार्च : यह देखा गया है कि अगर एटोपिक डरमेटाइटिस से ग्रसित बच्चों में त्वचा को सूखने नहीं दिया जाये और विभिन्न क्रीम को लगाया जाये, तो एग्जिमा, खुजली, एटोपिक डरमेटाइटिस को तो कम किया ही जा सकता है, साथ ही दमा की आशंका को भी कम किया जा सकता है. अत: बचपन में ही यदि त्वचा रोगों का उपचार हो जाये, तो दमा को रोका जा सकता है. इसके लिए त्वचा रोग विशेषज्ञ से मिलें.
शिथिलीकरण से दूर होता है तनाव
शिथिलीकरण योग की एक प्रक्रिया है. इसके अभ्यास से कई समस्याओं से छुटकारा मिलता है.योग-निद्रा : यह दमा के लक्षणों से मुक्ति दिलाने का प्रभावी उपाय है. यह मानसिक शिथिलीकरण की अवस्था है. यह दमा रोगी को अस्थमा अटैक से सामान्य अवस्था में लाने में मदद करता है.
ॐ का उच्चारण : ॐ का उच्चारण शक्तिशाली क्रिया है. शिथिलीकरण हेतु यह बहुत लाभप्रद है. मंत्रों के उच्चारण से तुरंत शारीरिक और मानसिक रूप से शांति मिलती है. तनाव भी दूर होता है.
अजपाजप : यह ॐ मंत्र के साथ श्वास को ऊपर-नीचे घुमाने का अभ्यास है. इससे श्वास धीमी एवं संतुलित होती है, जिससे अवचेतन मन की गहराई में छिपे रोगों को जन्म देनेवाले संस्कार उभर कर सतह पर आते हैं, जिससे व्यक्ति उन कारणों को पहचानना और स्वीकार करना सीख जाता है, जिन्हें वह लंबे समय से दमित किये हुए रहता है. यौगिक उपचार नि:संदेह दमा के रोगी के लिए अत्यंत ही लाभप्रद साबित हो सकता है. यौगिक उपचार एक दक्ष-प्रशिक्षक द्वारा सीखना चाहिए, क्योंकि गलत तरीके से अभ्यास करने पर इसके उल्टे परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं.

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