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बिहारी कलाकृतियों से सजीं हैंडमेड राखियां

पटना : इन दिनों रक्षाबंधन को लेकर भाई-बहन दोनों की तैयारियां देखते बन रही हैं. बाजार भी रंग-बिरंगी राखियों से सज चुका है. वहीं, कुछ बहनें रक्षाबंधन पर अपने भाइयों की कलाई पर ट्रेडिशनल हैंडमेड राखियां सजाने की तैयारी कर रही हैं. शहर में ऐसी कई लड़कियां व महिलाएं हैं जो मधुबनी पेंटिंग, मंजुषा आर्ट, […]

पटना : इन दिनों रक्षाबंधन को लेकर भाई-बहन दोनों की तैयारियां देखते बन रही हैं. बाजार भी रंग-बिरंगी राखियों से सज चुका है. वहीं, कुछ बहनें रक्षाबंधन पर अपने भाइयों की कलाई पर ट्रेडिशनल हैंडमेड राखियां सजाने की तैयारी कर रही हैं. शहर में ऐसी कई लड़कियां व महिलाएं हैं जो मधुबनी पेंटिंग, मंजुषा आर्ट, टिकुली आर्ट, रेशम और क्रोशिया की राखी बना रही हैं. लोग भी इन्हें काफी पसंद कर रहे हैं. उनकी मानें तो, इस तरह की राखियां न केवल पर्सनल टच देती हैं,बल्कि लोकल आर्ट एंड कल्चर को भी प्रमोट कर रही हैं. इसके बारे में बता रही हैं जूही स्मिता.

कद्रदान कम हैं कला के
गीतांजलि बताती हैं कि इन राखियों को बनाने में जितना समय और जितना समय, खर्च और मेहनत लगता है, उसकी तुलना में हमें उनकी कीमत नहीं मिल पाती है. एक राखी बनाने में कई-कई दिन लग जाते हैं. जिस वजह से इसकी कीमत महज 20 रुपये भी अधिक हो जाती है, तो उसमें भी लोग मोल-भाव करते हैं. दूसरी ओर रेडीमेड राखियां हजारों रुपये तक की बिकती है, जिन्हें बनाने में न तो ज्यादा मेहनत लगती है और न ही वे पारंपरिक राखियों की तुलना टिकाऊ होती हैं. बिहार में अभी लोग पारंपरिक कला के प्रति न तो जागरूक है और न ही इसकी कद्र करना जानते हैं.

अट्रैक्ट करती हैं मंजुषा राखियां
दानापुर की रहने वाली ममता भारती बताती हैं कि मंजुषा आर्ट में राखी बनाना मेहनत से भरा होता है. लगातार घंटों की मेहनत के बाद राखी बन कर तैयार होती हैं. अभी फिलहाल राखियां ऑर्डर मिलने पर ही बनायी जाती है. पिछले दो साल से इसे लोग पसंद कर रहे हैं. जो इस कला से परिचित हैं, उन्हें ज्यादा अट्रैक्ट कर रही है मंजुषा राखियां. मैं लोगों को इसमें ट्रेनिंग भी देती ताकि हमारा आर्ट जन-जन तक पहुंचे.

एक महीना पहले मिलता है ऑर्डर
हैंडमेड राखी बनाने के लिए ऑर्डर एक महीना पहले ही दे दिया जाता है. मधुबनी या मिथिला पेंटिंग की राखियां बनाने में बहुत समय लगता है. इसमें पेंटिंग बनाने में समय लगता है फिर इसमें रंगों का भी इस्तेमाल किया जाता है. मंजुषा आर्ट की एक राखी बनाने में पांच से छह घंटे लग जाते हैं. इसमें सिर्फ तीन कलर ग्रीन, येलो और रेडिश पिंक का इस्तेमाल किया जाता है. क्रोशिया की बनी राखियां रेशम के धागों से बनी जाती हैं. इन राखियों को सजाने के लिए जड़ी, स्टोन, बीड्स आदि का यूज किया जाता है. टिकुली आर्ट की राखियों में पांच दिनों का समय लगता है. इसमें कलर की परत होती है और काफी बारीक काम होता है. मार्केट में इन राखियों के लिए राखी से एक महीने पहले ऑर्डर देना होता है. कई बार ऑर्डर ऑनलाइन भी आता है. इसके लिए ऑर्डर कई बार महीनों पहले ही दे दिया जाता है.

टिकुली की राखियां हैं सबसे खास
पटना सिटी की रहने वाली गीतांजलि हिमांशु बताती हैं कि बचपन से उन्हें आर्ट प्रति लगाव रहा है. टिकुली की राखी बनाने में कलर के इस्तेमाल के हिसाब से दिन लग जाते हैं. कलर करने से लेकर इसे सजाने में मेहनत तो लगती है. मार्केट में इसकी काफी डिमांड है. इस बार भी मुझे सौ से ऊपर राखियां बनाने का ऑर्डर मिला था. इन राखियों की सबसे अच्छी बात यह है कि ये वॉशेबल होते हैं.

बुटीक से मिला है राखी बनाने का ऑर्डर
अनिसाबाद की रहने वाली विभा श्रीवास्तव बताती हैं कि वे पिछले दो सालों से क्रोशिया से बनी राखी बना रही है. एक दिन में पांच से छह रेशम के धागों से राखियां बनती हैं. क्रोशिया से राखी बनाने के बाद इन्हें स्टोन और बिड्स की मदद से सजाया जाता हैं. इस बार बुटीक से ऑर्डर मिला है. धीरे-धीरे लोग इन्हें अपना रहे हैं.

हैंडमेड राखियों का क्रेज
अंजलि बताती हैं कि पिछले एक साल से मधुबनी पेंटिंग की बनी राखियां बना रही हैं. मधुबनी पेंटिंग को बनाना और रंग करने के लिए बहुत ही एकाग्रता की जरूरत होती है. पहले तो मैं सभी को राखियां गिफ्ट करती थी लेकिन इस बार कुछ राखियों का ऑर्डर भी मिला हैं मुझे. पिछले कुछ समय से ऐसी राखियां लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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