कौन सी कहानी थी, नाम याद नहीं लेकिन कहीं पढ़ा था. सालों हो गये, इसलिए बस उसका फ्लेवर भर है दिमाग में. एक आदमी पटना से रांची के लिए बस पर बैठता है. बस में जहां उसकी सीट होती है, वहां एक गुंडा—दबंग टाइप का आदमी पहले से बैठ जाता है. वह कहता है कि जाओ, यहां नहीं बैठने देंगे, हम यहीं अकेले बैठेंगे. टांग फैलाकर. वह व्यक्ति बेचारा, उस दबंग की सीट पर चला जाता है.
संयोग से जो दबंग की असली सीट थी, जहां वह बेचारा डरा हुआ आदमी मजबूरी में जाकर बैठता है, उसके बगल में एक अनारकली का भी सीट पहले से बुक था. दोनों बैठते हैं. वह व्यकित और अनारकली, दोनों बात करने लगते हैं. दोनों प्यार से सटकर बैठ जाते हैं, मोहब्बत की खूश्बू आने लगती है बस में. ठंड के दिनों में गले से लिपटने जैसा रहते हैं दोनों. वह दबंग, जो अपनी सीट छोड़ दबंगई में, उस बेचारे की सीट पर कब्जा जमाये हुए होता है, उसे भी मोहब्बत और प्रेमालाप की यह खूश्बू मिलती है. बीच में बस जब लाइन होटल पर रूकती है तो वह अपनी सीट पर आ जाता है, बेचारे व्यक्ति से कहता है, जाओ, यह मेरी सीट अलॉट थी, तुम जाओ अपनी सीट पर, हम यहीं बैठेंगे. बस खुलती है.
वह दबंग अनारकली को तुरंत गले लगाना चाहता है. टेकेन फॉर गारंटेड मानकर कि यह तो अनारकली है, अभी तो उस बुड़बकवा के गले लगी थी तो मेरे गले तो लिपट—चिपट ही जाएगी. मैं हैंडसम भी हूं, पैसेवाला भी और दबंग भी. जैसे ही वह अनारकली को गले लगाने की कोशिश करता है, अनारकली दे दनादन तमाचा देती है, बिना रूके कई तमाचे. बस रूक जाती है. लाइट जला दिया जाता है.
दबंग बौखलाया हुआ होता है, चिल्लाकर कहता है कि तुमको रे अनारकलिया, साली दो कौड़ी की,अभी क्या कर रही थी, हम छुए तो तुमको बिजली लग गया, स्साली चलो तुमको बताती है. अनारकली उससे ज्यादा तेज आवाज में बोल रही होती है, जा रे भंडु्वे, तु क्या समझा कि मैं अनारकली हूं तो कोई छु लेगा. मैं जिसे चाहूंगी, जो मुझे अच्छा लगेगा, उसे भी मैं अच्छा लगूंगी, तो पास भी फटक सकता है नहीं तो तेरे जैसे हजार दबंगों को धुल चटा दूं. यह जो आरावाली अनारकली आनेवाली है 24 मार्च को, उससे भी कुछ ऐसी ही कहानी की खूश्बू मिल रही है. ऐसी कहानी सामने जल्दी आये ताकि अनारकलियों को लेकर जो भ्रम का आवरण चढ़ा रहता है, वह दूर हो, इसलिए बेसब्री से इंतजार है.
बाद बाकि अविनाश भाई की फिल्म, प्रिय पंकज भाई के अभिनय की वजह से निजी तौर पर अलग से आकर्षण और बेसब्री तो है ही. आशुतोष, अजय ब्रह्मतमाज, जितेंद्र नाथ जीतू, रामकुमार सिंह बोनस में हैं इस फिल्म से परोक्ष और प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हुए. इतनी सारी वजहों से सिर्फ कोरा दर्शक भर नहीं रहूंगा इस फिल्म का. अपनी ही फिल्म मानकर चल रहा हूं.