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फिल्‍म रिव्‍यू: धाकड़ है धाकड़ है ”दंगल” धाकड़ है…(4.5 स्‍टार)

II उर्मिला कोरी II फिल्म – दंगल निर्माता – आमिर खान निर्देशक – नितेश तिवारी कलाकार – आमिर खान,साक्षी तंवर ,फातिमा सना शेख,सान्या मल्होत्रा,अपरशक्ति खुराना ,ज़ायरा हाशिम, सुहानी भटनागर,गिरीश कुलकर्णी और अन्य रेटिंग – साढ़े चार खेल और खिलाडियों पर पिछले कुछ समय से हिंदी फिल्मों की कहानियों की धुरी बनी है. इस बार राष्ट्रीय […]

II उर्मिला कोरी II

फिल्म – दंगल

निर्माता – आमिर खान

निर्देशक – नितेश तिवारी

कलाकार – आमिर खान,साक्षी तंवर ,फातिमा सना शेख,सान्या मल्होत्रा,अपरशक्ति खुराना ,ज़ायरा हाशिम, सुहानी भटनागर,गिरीश कुलकर्णी और अन्य

रेटिंग – साढ़े चार

खेल और खिलाडियों पर पिछले कुछ समय से हिंदी फिल्मों की कहानियों की धुरी बनी है. इस बार राष्ट्रीय स्तर के कुश्ती खिलाडी महावीर फोगाट की कहानी को परदे पर उकेरा गया है. जो खुद ज़िन्दगी की जरूरतों को पूरा करने की आपाधापी में कुश्ती छोड़ चुके हैं लेकिन अंतर्राष्टीय स्तर पर कुश्ती में भारत को गोल्ड मेडल दिलाने के लिए वह अपनी बेटियों गीता बबिता का प्रशिक्षण शुरू करते हैं परिवार और समाज के खिलाफ जाकर. जिसके बाद शुरू होती है हरियाणा के छोटे से गांव से कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल जीतने की अविश्वसनीय कहानी.

महावीर फोगाट और उनकी बेटियों की प्रेरणादायी कहानी को जिस तरह से निर्देशक नितेश तिवारी ने परदे पर उतारा है वह आपको फिल्म के दौरान हँसाता है रुलाता है. आपको मंत्रमुग्ध कर देता है. सिनेमा का यही जादू है. फिल्म में कुश्ती वाले दृश्यों को कुछ इस विश्वसनीयता के साथ फिल्माया गया है कि आप भी गीता के किरदार के जुड़ जाते हैं और उसे जीतने के लिए चीयर्स करते हैं.चक दे के बाद किसी फिल्म ने इस कदर स्पोर्ट्स विषय की फिल्म के साथ न्याय किया है.

इस साल रिलीज हुई सबसे कमाऊ फिल्म सुल्तान भी कुश्ती पर थी लेकिन दंगल आपको बताती है कि असली कुश्ती क्या होती होती है. इतनी बारीकी के साथ इस फिल्म कुश्ती खेल से जुड़े पहलुओं को सामने लाया गया है. इस बात को भी सामने कई दृश्यों के ज़रिये लाया गया है कि भारत में कैसे दूसरे खेल और खिलाडियों की अनदेखी की जाती है. फिल्म में स्क्रिप्ट की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह सिर्फ रेसलिंग के दांव पेंच ही नहीं बल्कि रिश्तों के पेंच और ईगो को भी बखूबी सामने लाती है.

फिल्म का वह सीन जब महावीर फोगाट और बबिता आपस में दंगल करते हैं. वह सिर्फ टेक्निक के पुराने होने की बात नहीं थी. ऐसे ही जब गीता अपने पापा को फ़ोन करती है. उस सीन में ज़्यादा संवाद नहीं है लेकिन आपकी आँखें नम हो जाती है. फिल्म में कमर्शियल पहलु हैं लेकिन सिनेमेटिक लिबर्टी की अति नहीं की गयी है. क्लाइमेक्स में आमिर के किरदार का एक बेबस वृद्ध की तरह कमरे में बंद रह जाना इसका अच्छा उदाहरण था.

अभिनय की बात करें तो एक बार फिर उन्होंने आमिर खान ने साबित कर दिया कि उन्हें परफेक्शनिस्ट खान क्यों कहते हैं. वह पूरी तरह से अपने किरदार में रच बस गए हैं. उन्होंने महावीर फोगाट के किरदार हवाले खुद को पूरी तरह से कर दिया है. यह कहना गलत न होगा आमिर खान ने युवा रेसलर से लेकर वृद्ध पिता और सख्त कोच की भूमिका को बखूबी हर दृश्य में जिया है. उसके लिए उनका शारीरिक कायापलट ध्यान आकर्षित करता है.

आमिर के साथ साथ यह फिल्म उन लड़कियों की भी कहानी है. इसके लिए आमिर की तारीफ करनी होगी. जो वह महिलाओं पर आधारित इस कहानी का आधार स्तम्भ बनने को राज़ी हुए. आमिर के बिना इस फिल्म की कल्पना नहीं की जा सकती हैं. हिंदी सिनेमा में आमिर खान विश्वसनीयता का दूसरा नाम क्यों हैं इस फिल्म ने इस बात को फिर साबित कर दिया है. बाल कलाकार ज़ायरा वसीम की जितनी तारीफ की जाए वह कम है. रेसलर के तौर पर उनका आत्मविश्वास परदे पर देखते बनता है. उनकी बॉडी लैंग्वेज से लेकर चेहरे के हाव भाव सभी कुछ खास है. सुहानी भटनागर ने उनका अच्छा साथ दिया हैं.

युवा गीता के किरदार में फातिमा सना शेख की मेहनत दिखती है. उन्होंने शानदार अभिनय किया है, सनाया मल्होत्रा के हिस्से में फातिमा के मुकाबले कम सीन्स हैं क्योंकि इस फिल्म में गीता की जर्नी को दिखाया गया है लेकिन वह भी अपने हिस्से के आये दृश्यों में पूरी ईमानदारी के साथ निभा गयी हैं फिल्म की कास्टिंग के लिए कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबरा की तारीफ करनी होगी. उनकी परफेक्ट कास्टिंग इस फिल्म को और ज़्यादा खास बना जाती है.

फिल्म का हर किरदार खास है फिर चाहे कोच की भूमिका गिरीश कुलकर्णी हो या कॉमेडी में हर दृश्य में परफेक्ट रहने वाले अपरशक्ति खुराना. साक्षी भी अपनी भूमिका को बखूबी निभा गयी हैं. वह प्रतिभाशाली और स्वाभाविक अदाकारा हैं फिल्म के कई सीन्स में उन्होंने इसका प्रदर्शन किया फिर चाहे उनकी बेटियों के बाल काटने वाला दृश्य को या चिकन पकाने वाला सिचुएशन.

प्रीतम का संगीत और अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे गीत भी पूरी तरह से इस फिल्म में रचा बसा है. दलेर मेहँदी की आवाज़ में गाया शीर्षक गीत एक अलग ही जोश से फिल्म को लबरेज़ कर देता है तो वही बापू गीत सुनते हुए चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी खास है. हरियाणा के गाँव की मिटटी की खुशबु ,बोली और सीन्स में बखूबी मिलाया गया है फिल्म के संवाद भी कहानी के अनुरूप हैं. चैंपियन पेड़ पर नहीं उगते बल्कि बनाये जाते हैं. फिल्म भले ही कुश्ती पर है लेकिन फिल्म में न तो ज़्यादा बयानबाज़ी की गयी है न ही भारीभरकम डायलाग रखे गए हैं. बल्कि कहानी को केटूजेटू के ज़रिये हलके फुल्के चुटीले संवाद के ज़रिए बयां किया है.

कुलमिलाकर दंगल स्पोर्ट्स पर बनी बेहतरीन फिल्म है. फिल्म में मैसेज भी है कि अगर महिलाओं को चूल्हे चौके में झोंका नहीं जाए तो वह हर कदम पर पुरुषों के साथ मुकाबला कर सकती है फिर चाहे पुरुषों की बादशाहत माने जाने वाले खेल कुश्ती की क्यों न हो. दंगल मौजूदा दौर की बेहतरीन फिल्मों में से एक है और इस साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म भी. फिल्म के एक गीत की लाइनें धाकड़ है ,धाकड़ है बड़ी धाकड़ है इस फिल्म को बखूबी साबित करता है.

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