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रांची में बोले आशुतोष राणा- ”हे भारत के राम जगो, मैं तुम्हें जगाने आया हूं..”

रांची: प्रभात खबर गुरु सम्मान समारोह में शनिवार को वक्ता, संवेदनशील लेखक और कवि के रूप में ख्यात अभिनेता आशुतोष राणा ने शिरकत की. ‘एक शाम आशुतोष राणा के नाम’ कार्यक्रम में उन्होंने अपनी कविताओं का पाठ किया. उन्होंने जैसे ही हे भारत के राम जगो की शुरुआत की तो रिम्स सभागार तालियों की गड़गड़ाहट […]

रांची: प्रभात खबर गुरु सम्मान समारोह में शनिवार को वक्ता, संवेदनशील लेखक और कवि के रूप में ख्यात अभिनेता आशुतोष राणा ने शिरकत की. ‘एक शाम आशुतोष राणा के नाम’ कार्यक्रम में उन्होंने अपनी कविताओं का पाठ किया. उन्होंने जैसे ही हे भारत के राम जगो की शुरुआत की तो रिम्स सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से न केवल शिक्षकों को प्रेरित किया, बल्कि पूरी सभा को अपनी ख्वाहिश और फरमाइश से सराबोर किया. लोगों को फरमाइश की जगह खुद की ख्वाहिश को साथ लेकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी.काव्य पाठ से पूर्व आशुतोष राणा ने सार्थक जीवन के लिए आचार और विचार को समझने की बात कही. कहा कि मीडिया इसी से समाचार बनाती है. जिससे लोग न केवल समाज में अपनी पहचान बना सकते हैं, साथ ही दूसरों को भी प्रेरित कर सकते हैं.

न्होंने जीवन के उतार-चढ़ाव में सशक्त रहने की प्रेरणा दी. उन्होंने जीवन को हाई वोल्टेज युक्त बनाने के लिए विशेष टिप्स दिये. हाई वोल्टेज युक्त जीवन बनाने के लिए कर्म, भाग्य और न्यूट्रल स्वभाव को थ्री पिन जैसा इस्तेमाल करने की बात कही. साथ ही पूरा करने के लिए गुरु, ईश्वर और मित्र को अपने हाई वोल्टेज का हिस्सा बनाने को कहा.

शुरुआत कलियुग और महामौन से
अब अशुद्धि के लिए मैं शुद्ध होना चाहता हूं,/ अबुद्धि के लिए बुद्ध होना चाहता हूं. / चाहता हूं इस जगत में शांति चारों ओर हो,/ और इस जगत के भिन्न, पर मैं क्रूद्ध होना चाहता हूं……..
आशुतोष राणा ने अपने काव्य संग्रह में से विभिन्न युगों के दानव में से कलियुग को सबसे विकराल बताया. कहा कि यही कारण है कि कली जैसे दानव के नाम पर युग जोड़ा गया है. उन्होंने अपने काव्य पाठ में कलियुग और परम ब्रह्म के बीच हुई वार्ता को मंच से साझा किया. जिसमें कली खुद को परम ब्रह्म के समक्ष बड़ा और बलवान बताने की कोशिश कर रहे हैं.
फरमाइश की पूरी
काव्य पाठ के बाद आशुतोष राणा ने लोगों की इच्छा की भी पूर्ति की. उन्होंने सभा के दौरान अपनी चर्चित काव्य रचना – ‘हे भारत के राम जगो’ भी पेश किया…
हे भारत के राम जगो, मैं तुम्हें जगाने आया हूं,
सौ धर्मों का धर्म एक, बलिदान बताने आया हूं.
सुनो हिमालय कैद हुआ है, दुश्मन की जंजीरों में
आज बता दो कितना पानी है भारत के वीरों में,
खड़ी शत्रु की फौज द्वार पर, आज तुम्हें ललकार रही
सोये सिंह जगो भारत के
माता तुम्हें पुकार रही.
रण की भेरी बज रही, उठो मोह निद्रा त्यागो.
पहला शीष चढ़ाने वाले, मां के वीर पुत्र जागो.
बलिदानों के वज्रदंड पर
देशभक्त की ध्वजा जगे
और रण के कंकण पहने हैं
वो राष्ट्रभक्त की भुजा जगे.

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