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बोलीं सुरुचि- दर्शक तभी याद रखते हैं जब आपके काम की तारीफ हो

माध्यम कोई भी हो, दर्शक तब ही याद रखते हैं जब आपके काम की तारीफ हो. यह कहना है छोटे व बड़े पर्दे पर अपनी अदाकारी का जलवा बिखेर रहीं सुरुचि वर्मा का. पटना सिटी की रहने वाली सुरुचि कहती हैं, मायानगरी काम को ही तवज्जो देती है. सुजीत कुमार से हुई बातचीत के प्रमुख […]

माध्यम कोई भी हो, दर्शक तब ही याद रखते हैं जब आपके काम की तारीफ हो. यह कहना है छोटे व बड़े पर्दे पर अपनी अदाकारी का जलवा बिखेर रहीं सुरुचि वर्मा का. पटना सिटी की रहने वाली सुरुचि कहती हैं, मायानगरी काम को ही तवज्जो देती है. सुजीत कुमार से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

-पटना सिटी से मायानगरी मुंबई जाने के बारे में बताएं.
मेरा मूल निवास पटना सिटी के चौक शिकारपुर इलाके में है. शुरुआती पढ़ाई से लेकर कॉलेज की स्टडी भी वहीं हुई. आरपीएम कॉलेज से स्टडी की. 2006 में मुंबई चली गयी. वहीं से थियेटर में पीजी किया. यह मेरा सफर है.

-थियेटर का शौक कैसे लगा?
सन दो हजार में मैंने दसवीं का एग्जाम दिया था. उसके बाद मेरे पास काफी वक्त भी रहता था. इसी बीच जानकारी मिली कि इप्टा की वर्कशॉप होने वाली है. मेरी इच्छा इसमें हिस्सा लेने की हुई. मैंने इस बारे मां से बात की, इजाजत भी मिल गयी. फिर मैंने ज्वाइन कर लिया. वर्कशाॅप में दो-तीन नाटक में काम करने का मौका मिला. जिसमें एक नाटक एक था गदहा भी था. वह कालिदास रंगालय में मंचित हुआ था. धीरे-धीरे नाटक की दुनिया आकर्षित करने लगी. फिर मैं एक ग्रुप से जुड़ गयी. इसके लिए भी मुझे घरवालों से इजाजत इसी शर्त पर मिली कि नाटक करने के दौरान पढ़ाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा. जब पढ़ने का वक्त आता था तो नाटक छोड़ देती थी और जैसे ही वक्त मिलता था, नाटक करने लगती थी. हालांकि तब का वक्त बहुत अलग भी था. कई दिक्कतें भी होती थी. सबसे बड़ी दिक्कत होती थी पटना सिटी से पटना हर रोज आना और जाना. खैर मैंने इसे पूरा किया.

-मुंबई में ही काम करना है? यह विचार कैसे आया?

मेरा ग्रेजुएशन जब पूरा हुआ तो साेचने लगी कि आगे क्या करना है? कुछ एेसी संस्थाओं के बारे में पता चला जो नाटक में कोर्स कराती थीं. घरवालों को मनाना पड़ा. इसी बीच में मुंबई यूनिवर्सिटी द्वारा चलाये जा रहे कोर्स के बारे में पता चला. तब तक ऐसा हुआ कि मेरी बड़ी बहन की जॉब मुंबई में ही लग गयी थी. मैंने घरवालों से इस बारे में बात की. चूंकि बड़ी बहन वहां थी तो थोड़ी बहुत ना नुकुर के बाद घरवाले मान गये. फिर मुंबई चली आयी और कोर्स करने लगी.

-कोर्स करने के बाद काम के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ी?

जब कोर्स पूरा हुआ तक मैंने ऑडिशन देना शुरू किया. वैसे लोगों से संपर्क करने लगी तो बिहार व पटना से ताल्लुक रखते हो. पंकज त्रिपाठी से बात हुई. फिर महुआ चैनल के लिए बाहुबली सीरियल में काम करने का मौका मिला. उसमें करीब 12 एपिसोड में काम की. काम पसंद आया. इसके बाद महुआ के लिए ही दो-तीन और सीरियल में काम की. भोजपुरी के भी कई ऑफर आये लेकिन मैंने उसे स्वीकार नहीं किया. ऑडिशन देने का दौर जारी रहा. 2011 में जीटीवी के लिए सीरियल भागोवाली में काम मिला. इसमें दो माह तक काम किया. फिर जीटीवी के लिए ही हाउसवाइफ, डोली अरमानों की. बिग मैजिक के लिए जय मां विंध्यवासिनी को किया. इसी बीच में आइडिया मोबाइल का विज्ञापन, दिवाकर बनर्जी की फिल्म लव सेक्स और धोखा में भी काम किया. पकडुआ विवाह पर आधारित फिल्म अंतर्द्धंद भी किया. इसे नेशनल अवॉर्ड भी मिला. सोनी चैनल के लिए मेरे सांई को भी किया.

-दर्शकों तक सशक्त पहचान बनाने के लिए कौन सा माध्यम ज्यादा कारगर होता है?
मेरे हिसाब से फिल्मों में फीमेल कैरेक्टर का स्कोप कम होता है क्योंकि कैरेक्टर रोल ज्यादा होते नहीं हैं. इससे अलग टीवी मैं ज्यादा मौका मिलता है. इससे घर-घर में पहुंचने का मौका मिलता है.

-आपके पति भी आपकी ही लाइन से जुड़े हुए हैं. उनसे कैसी मदद मिलती है?
वह मेरी अच्छी मदद करते हैं. मेरी गलतियों के बारे में भी बताते हैं और अच्छाइयों के बारे में भी बताते हैं. उनका साथ एक मार्गदर्शक के रूप में मिलता है.

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