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भारत में स्टेम एजुकेशन के बढ़ते चलन से युवाओं के लिए खुलेंगी करियर की नयी राहें

भारत की शिक्षा प्रणाली में आये दिन नये परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. आज भारतीय शिक्षकों द्वारा ऐसे कोर्स को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो छात्रों को इंडस्ट्री में काम करने के लिए तैयार करते हैं. इन कोर्सेज की ओर बढ़ने का नया रास्ता बन रही है स्टेम एजुकेशन. जाने इसके बारे में विस्तार से...

भारत की शिक्षा प्रणाली में आये दिन नये परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. आज भारतीय शिक्षकों द्वारा ऐसे कोर्स को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो छात्रों को इंडस्ट्री में काम करने के लिए तैयार करते हैं. इन कोर्सेज की ओर बढ़ने का नया रास्ता बन रही है स्टेम एजुकेशन. जाने इसके बारे में विस्तार से…

स्टेम एजुकेशन यानी एसटीईएम

स्टेम (एसटीईएम) एजुकेशन को साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग व मैथ्स के लिए जाना जाता है. भारतीय शिक्षा प्रणाली में स्टेम एजुकेशन शब्द अभी नया है. भारत उन देशों में से एक है, जहां बड़ी तादाद के युवा साइंस व इंजीनियरिंग के क्षेत्र में करियर बनाना पसंद करते हैं. ऐसे में चार अलग-अलग विषयों की पढ़ाई के बजाय स्टेम एजुकेशन के माध्यम से युवाओं को लगातार हो रहे परिवर्तनों के साथ इंडस्ट्री के लिए तैयार किया जा रहा है.

तेजी से बढ़ेगी स्टेम जॉब्स की संख्या

आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां स्टेम जॉब्स की संख्या दिन-ब-दिन तेजी से बढ़ रही है. नेशनल साइंस फाउंडेशन की मानें, तो आनेवाले दस वर्षों में 80 प्रतिशत ऐसी नौकरियां विकसित होंगी, जिनके लिए मैथ्स व साइंस स्किल्स की आवश्यकता होगी. ऐसे में शीर्ष गुणवत्ता की प्रतिभा होने के बावजूद पुराने परीक्षा-केंद्रित शिक्षा मॉडल से पढ़ाई करनेवाले छात्र इन जॉब्स के लिए मांगी गया योग्यता को पूरा नहीं कर पायेंगे. वहीं स्टेम एजुकेशन प्राप्त करनेवाले युवा इन नौकरियों के लिए आवश्यक स्किल को पूरा करने में सक्षम होंगे.स्टेम एजुकेशन को लेकर हुए सर्वेक्षणों के अनुसार बच्चे आठ साल की आयु में एसटीईएम क्षेत्रों में रुचि लेना शुरू करते हैं, क्योंकि इस उम्र से भी उनमें टेक्नोलॉजी, गैजेट्स व अन्य उपकरणों के प्रति रुझान विकसित होता है. लेकिन, टेक्नोलॉजी का प्रयोग करनेवाला आगे चलकर एक आविष्कारक बनें ऐसा जरूरी नहीं.

सामान्य विज्ञान व गणित से अलग है स्टेम

स्टेम एजुकेशन को सामान्य विज्ञान व गणित की पढ़ाई से अलग बनाने वाली अहम विशेषता यह है कि इसमें मिश्रित शिक्षा का माहौल तैयार कर छात्रों को यह बताया जाता है कि किस तरह से वे वैज्ञानिक पद्धतियों को रोजमर्रा के जीवन में शामिल कर सकते हैं. इसकी जरिये छात्रों में कंप्यूटेशनल सोच विकसित की जाती है, जिससे वे वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित कर समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करते हैं.

प्राथमिक स्कूल : इस शुरुआती स्तर पर छात्रों को स्टेम के चारों विषयों से संबंधित स्टैंडर्ड जानकारी दी जाती है, जिससे छात्र वास्तविक दुनिया की समस्याओं को समझने व इस शिक्षा के माध्यम से उनका हल निकालने की दिशा में सोचना शुरू करते हैं.

माध्यमिक स्कूल : इस स्तर पर कोर्स थोड़ा मुश्किल व चुनौतीपूर्ण हो जाता है. इस चरण में छात्र स्टेम क्षेत्रों और संबंधित व्यवसायों एवं इनमें काम करने के लिए आवश्यक शैक्षणिक ज्ञान प्राप्त कर रहे होते हैं.

हाई स्कूल : हाई स्कूल में स्टेम एजुकेशन का कार्यक्रम चुनौतीपूर्ण और कठोर अंदाज में विषयों के आवेदन पर केंद्रित होता है. इस चरण में ही छात्र स्टेम क्षेत्रों एवं व्यवसायों की ओर ले जानेवाले कोर्स व रास्ते का चयन करते हैं.

भारत में स्टेम एजुकेशन

पिछले कुछ वर्षों में पढ़ने व पढ़ाने के तरीकों में आये परिवर्तन का आप बखूबी आकलन कर सकते हैं. भारत और भारतीय शिक्षक अब पुराने स्कूल शिक्षण पद्धति को फिर से लागू करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. एसटीईएम या स्टेम एजुकेशन के माध्यम से वे शिक्षार्थियों को ऐसी शिक्षा प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं, जो कार्य क्षेत्र में उनके लिए उपयोगी हो. इसके लिए भारतीय शिक्षकों ने स्मार्ट क्लासरूम से परे देखना शुरू कर दिया है. अब कई शिक्षण संस्थान स्टेम एजुकेशन को बढ़ावा देने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जहां सरकार विविध शिक्षा समितियों को सहायता प्रदान करने के लिए कदम बढ़ा रही है. इस प्रयासों के सफल होने के साथ ही आने वाले दिनों में भारतीय शिक्षकों को स्टेम एजुकेशन को बड़े स्तर पर पेश करने का मौका प्राप्त हो सकता है.

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